आप यह जान चुके हैं कि जीवों के सारे गुण उनके DNA में पाए जानेवाले नाइट्रोजनी क्षारों के अनुक्रम (sequence of nitrogenous bases) पर निर्भर करता है। भिन्न-भिन्न जीवों या विभिन्न मानवों में पाया जानेवाला DNA अनुक्रम अलग-अलग होता है। विभिन्न प्रकार के आनुवंशिक रोगों से निदान के लिए वैज्ञानिकों ने मानव जीनोम परियोजना की परिकल्पना की। मानव कोशिका में मिलनेवाले सभी 46 क्रोमोसोम के संपूर्ण DNA अनुक्रम को पता लगाने की महत्त्वाकांक्षी योजना 1990 में शुरू हुई। आनुवंशिक अभियांत्रिक तकनीकों (genetic engineering techniques) में निरंतर विकास होने से DNA खंड को विलगित करना एवं इसका क्लोन तैयार किया जाना अब संभव हो गया है। मानव जीनोम परियोजना (human genome project, HGP) एक बहुत बड़ी योजना है जो विभिन्न मानव हितकारी उद्देश्यों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।
मनुष्य के जीनोम में 3164.7 मिलियन नाइट्रोजनी क्षार के जोड़े हैं। इस प्रकार के बृहत आँकड़ों की गणना एवं उसके विश्लेषण में उच्च गतिकीय संगणक साधनों (high-speed-computational devices) की जरूरत होती है। जीवविज्ञान के इस क्षेत्र के जैव सूचनाविज्ञान (bioinformatics) कहते हैं। इस विज्ञान के तहत जीवों के जीनोम संबंधित आँकड़ों का संग्रह, विश्लेषण एवं इसके उपयोग की जानकारी प्राप्त होती है।
मानव जीनोम परियोजना को शुरू करने के पीछे निम्नलिखित लक्ष्य को ध्यान में रखा गया था।
मानव जीनोम परियोजना को अमेरिकी ऊर्जा विभाग (US Department , US) एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (National Institute of Health, US) द्वारा समन्वित किया गया था। शुरू के कुछ वर्षों तक ब्रिटेन के वेलकम न्यास (Wellcome Trust, UK) की इस परियोजना में मुख्य भागीदारी रही। बाद में फ्रांस, जापान, जर्मनी, चीन एवं अन्य देशों ने भी इस परियोजना को सहयोग दिया। 1990 से शुरू होकर 2003 में यह परियोजना पूरी हो गई। कुल मिलाकर 13 वर्षों तक यह परियोजना सफलतापूर्वक चली। अलग-अलग मनुष्यों के DNA में पाई जानेवाली विभिन्नताओं (variations) के बारे में इससे अच्छी जानकारी प्राप्त हुई। इन विभिन्नताओं से उत्पन्न होनेवाली अनेक बीमारियों को जानने, उपचार करने एवं कुछ सीमा तक रोकने में सहायता मिली। इससे मानव जीवविज्ञान के सुरागों को समझने में मदद मिली। गैरमानवीय जीवों के DNA अनुक्रमों की जानकारी से उनकी प्राकृतिक क्षमताओं का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में करना संभव हुआ है। इससे मुख्यतः कृषि, ऊर्जा-उत्पादन, पर्यावरण-संरक्षण, स्वास्थ्य-सुरक्षा आदि से संबंधित चुनौतियों को हल करने में सफलता मिल सकती है। मानव जीनोम के अतिरिक्त अन्य जीवों, जैसे बैक्टीरिया, यीस्ट, ड्रोसोफिला (फलमक्खी), धान के पौधे आदि के जीनोम की भी जानकारी प्राप्त की गई है। इन जीवों के DNA अनुक्रमों की जानकारी से विभिन्न मानव कल्याणकारी कार्यों की असीम संभावनाएँ उत्पन्न हुई हैं।
एच॰जी॰पी॰ में दो मुख्य तरीकों का उपयोग किया जाता है। पहली विधि के अंतर्गत उन सभी जीनों की पहचान की जाती है जो RNA के रूप में व्यक्त होते हैं। इसे व्यक्त अनुक्रम पुंडी (expressed sequence tags, or ESTs) कहा जाता है। दूसरी विधि में जीन के सभी अनुक्रमों (कोडिंग एवं नॉनकोडिंग) की जानकारी प्राप्त की जाती है एवं इसके विभिन्न खंडों के कार्यों को निर्धारित किया जाता है। इसे अनुक्रम टिप्पण (sequence annotation) कहा जाता है। अनुक्रमण करने के लिए कोशिका के पूर्ण DNA को सर्वप्रथम विलगित कर छोटे-छोटे खंडों (fragments) में काटा जाता है। आप जानते हैं कि DNA कुंडली एक लंबी संरचना है जिसके अनुक्रमण में तकनीकी परेशानी होती है। अतः इसे छोटे खंडों में परिणत करना आवश्यक है। DNA के इन खंडों का क्लोन तैयार करने के लिए उचित होस्ट (host) एवं खास संवाहकों (specialized vectors) का उपयोग किया जाता है। क्लोनिंग से प्रत्येक DNA के प्रवर्धन में सहायता मिलती है। इससे DNA अनुक्रमों की जानकारी प्राप्त करने में आसानी होती है। बैक्टीरिया एवं यीस्ट सामान्य तौर पर होस्ट के रूप में प्रयुक्त होते हैं जबकि संवाहकों को बी०ए०सी० (bacterial artificial chromosomes, BAC) एवं वाइ.ए.सी. (yeast artificial chromosome,YAC) कहा जाता है।
DNA खंडों का अनुक्रमण स्वचालित DNA अनुक्रमक (automated DNA sequencer) द्वारा किया जाता है। यह अनुक्रमक फ्रेडरिक सेंगर (Frederick Sanger) के द्वारा विकसित विधि के सिद्धांत पर कार्य करता है। सेंगर ने ही प्रोटीन में मौजूद एमीनो अम्लों को निर्धारित करने की विधि का विकास किया है। DNA अनुक्रमण से ज्ञात अनुक्रमों को एक-दूसरे में स्थित ओबर लैपिंग (overlapping) के आधार पर व्यवस्थित किया जाता है। ओवर लैपिंग खंडों का निर्माण अनुक्रमण के लिए आवश्यक है। अनुक्रमण से जो आँकड़ा उपलब्ध होता है उसे पंक्तिबद्ध करने के लिए कम्प्यूटर-आधारित विशेष प्रोग्राम (program) की जरूरत पड़ती है।
DNA अनुक्रमों की प्राप्त जानकारी को प्रत्येक गुणसूत्र के साथ निर्धारित किया गया। क्रोमोसोम 1 का अनुक्रमण मई 2006 में पूर्ण हुआ। यह मानव के 22 जोड़े अलिंग क्रोमोसोम (autosome) एवं 2 लिंग क्रोमोसोम (X एवं Y) में अंतिम था। जीनोम का आनुवंशिक एवं भौतिक नक्शा तैयार करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज पहचान स्थल (recognition sites of restriction endonuclease) के बहुरूपण (polymorphism) की जानकारी तथा कुछ दोहराए गए DNA अनुक्रमों (माइक्रोसैटेलाइट) के ज्ञान से यह तैयार किया गया।
मानव जीनोम परियोजना की मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित हैं।
जैविक तंत्र (biological system) को अच्छी तरह से समझने में मानव जीनोम की जानकारी बहुत मददगार साबित हुई। DNA अनुक्रमों की सही जानकारी एवं इससे संबंधित अन्य प्रकार के शोधों से जीवों के विभिन्न कार्यों एवं इनमें पाई जानेवाली विभिन्नताओं को समझने में काफी सहुलियत हुई। इस वृहद कार्य में विश्वभर के सार्वजनिक एवं असार्वजनिक क्षेत्रों के हजारों विशेषज्ञों ने अपने अनुसंधानों से योगदान किया। इस परियोजना के बाद जैविक अनुसंधानों में नए आयामों का समावेश संभव हो पाया। पहले शोधकर्ता एक समय में एक या कुछ जीनों का ही अध्ययन कर सकते थे। मानव जीनोम की जानकारी होने के बाद व्यापक स्तर पर एवं सुव्यवस्थित तरीके से जीनों का अध्ययन करना संभव हो पाया है। इस कार्य में नई तकनीकों का भी योगदान रहा है। वैज्ञानिक अब एक साथ जीनोम के सभी जीनों का अध्ययन कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, अब यह जानना संभव हो गया है कि विशेष ऊतक या अंग या अर्बुद (tumour) में पाए जानेवाले हजारों जीन एवं प्रोटीन आपस में जुड़कर किस प्रकार कार्य करते हैं। इस प्रकार मानव जीनोम परियोजना के अनेक उपयोग हैं। भविष्य में अनेक चुनौतियाँ भी आनेवाली हैं खासकर मानव की क्लोनिंग से संबंधित।
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