किसी चालक की धारिता उसके आवेश एवं उसके विभव का अनुपात है।
धारिता = आवेश / विभव
जब आवेश का वितरण वस्तु के आयतन में होता है तो प्रति एकांक आयतन आवेश की मात्रा को आवेश का आयतन घनत्व कहते है।
इसका S.I. मात्रक (P)= कुलॉम / मीटर3 (cm-1) होता है।
ट्रांसफार्मर की कुंडलियों में जब धारा प्रवाहित की जाती है तो भीमीय प्रतिरोध के कारण ट्राँसफार्मर में ऊष्मा उत्पन्न होती है और इस ऊष्मा के रूप में इसमें ऊर्जा का क्षय होता है, इस प्रकार की हानि को ताम्र-क्षय कहते है।
सौर सेल वह अर्द्धचालक युक्ति है, जो सूर्य प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है। यह युक्ति फोटोवोल्टिक प्रभाव पर आधारित है। इस सन्धि में व क्षेत्र बहुत पतली परत के रूप में होता है, जिससे कि आपतित प्रकाश ऊर्जा का अल्प भाग सन्धि पर पहुँचने के पूर्व अवशोषित होता है।
संपोषी व्यतिकरण की दो आवश्यक शर्तें निम्नलिखित है-
(i) व्यतिकरण उत्पन्न करने वाली तरंगों का तरंगदैर्घ्य और उनकी आवृत्ति संख्या समान होनी चाहिए।
(ii) दो तरंगों की कलाओं का अंतर किसी निश्चित बिंदु पर समय के साथ कभी भी बदलना नहीं चाहिए।
अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित करके निकट तथा दूरस्थ वस्तुओं को रेटिना पर फोकसित कर लेता है. नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है
सन् 1820 ई. में बायो तथा सावर्त ने एक धारावाहिक चालक के समीप किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करने के लिए एक नियम का प्रतिपादन किया जिसे बायो-सावर्त नियम कहते हैं।
भौतिकी में बहुत से तंत्रों (सिस्टमस) की ऐसी प्रवृति होती है कि वे कुछ आवृतियों पर बहुत अधिक आयाम के साथ दोलन करते हैं। इस स्थिति को अनुनाद कहते है।
सभी प्रकार के कम्पनों या तरंगों के साथ अनुनाद की घटना जुड़ी हुई है। अर्थात् यांत्रिक, ध्वनि, विद्युत चुम्बकीय अथवा क्वांटम तरंग फलनों के साथ अनुनाद हो सकती है |
यह मूल लॉजिक Gate NOT Gate तथा AND Gate का संयोग है। इसमें AND Gate के निर्गम को NOT Gate का निवेश बना दिया जाता है। इसका बुलियन व्यंजक y = A B होता है।
जब वाहक की तरंग आवृति मूल सिग्नल या मॉडुलक सिग्नल के अनुसार परिवर्तित होता है. लेकिन वाहक तरंग का आयाम और कला अपरिवर्तित रहती है तो ऐसे मॉडुलन को आवृति मॉडुलन कहते हैं।
संस्तर तल तथा उसे काटने वाले काल्पनिक क्षैतिज तल के मध्य का वह कोण जो नमन की वास्तविक दिशा के अतिरिक्त किसी अन्य दिशा में निर्मित होता है, उसे आभासी नमन कोण कहते हैं। यह वास्तविक नमन से सदैव कम होता है।
बूस्टर के नियम के अनुसार एक कोण ऐसा होता है जिस पर परावर्तित प्रकाश पूर्णतया समतल ध्रुवित होता है, एक विशेष कोण पर प्रकाश के कंपन आपतन तल के लम्बवत् होते हैं। इसे ध्रुवण कोण कहते हैं। ध्रुवण कोण को बुस्टर कोण भी कहते हैं।
अतः बुस्टर के नियम के अनुसार µ = tan (i)
यहाँ µ = पारदर्शी माध्यम का अपवर्तनांक, i= ध्रुवण कोण।
ऐसे पदार्थ जो ना ही तो अच्छे चालक होते हैं और न ही अच्छे कुचालक, मतलब जिनका प्रतिरोध चालक से ज्यादा होता है और कुचालक से कम होता है, ऐसे पदार्थों को अर्द्धचालक कहा जाता है। कुछ धातु जिनका प्रतिरोध बहुत ज्यादा होता है जैसे कि कार्बन, सिलिकॉन और जर्मेनियम इनमें कुछ दूसरे पदार्थों की मात्रा मिला दी जाती है जिससे कि यह अर्द्धचालक के रूप में काम करने लगते हैं और इन्हें अर्द्धचालक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
मूल रूप से एक इन्द्रधनुष तब बनता है जब अपवर्तन होता है। किरण का फैलाव होता है क्योंकि पानी की छोटी बूँदों द्वारा दो आन्तरिक परावर्तन और दो प्रकाश के अपवर्तन के कारण द्वितीयक इन्द्रधनुष का निर्माण होता है।
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(i) B-किरणों की भेदन क्षमता -किरणों से अधिक होती है।
(ii) ये विद्युत और चुम्बकीय क्षेत्रों में विक्षेपित हो जाते हैं।
आंतरिक अर्द्धचालक में पंच संयोजी अशुद्धि मिलाने पर वह प्रकार के अर्द्धचालक में परिवतर्तित हो जाता है। n -प्रकार के अर्द्धचालक में इलेक्ट्रॉन अधिक पाए जाते हैं मतलब इसमें इलेक्ट्रॉन की मात्रा होल से अधिक होती है।
किसी विद्युत क्षेत्र में स्थित किसी पृष्ठ के लम्बवत् गुजरनेवाली वैद्युत बल रेखाओं की संख्या को उस पृष्ठ से सम्बद्ध विद्युत फलक्स कहते हैं। विद्युत फलक्स को से प्रदर्शित किया जाता है। यह एक अदिश राशि है अर्थात् इसको व्यक्त करने के लिए सिर्फ परिणाम की आवश्यकता होती है दिशा की नहीं।
(i) पूर्ण आंतरिक परावर्तन होने के लिए प्रकाश की किरण का सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाना चाहिए क्योंकि सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाने पर ही किरण अभिलंब से दूर हटती है। (ii) पूर्ण आंतरिक परावर्तन की दूसरी शर्तें हैं सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती हुई प्रकाश की किरण के आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण से अधिक होना चाहिए
इस श्रेणी मे निम्न कक्ष का 3 होता है | अतः उच्च श्रेणी 4,5,6, …. होगा | , इस प्रकार उत्सर्जित तरंग का तरंगदैर्ध्य λ का निम्न प्रकार से दिया जा सकता है |
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