Bihar Board Class 12th Hindi Book Solution पद्य chapter 13 ‘गाँव का घर’

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Bihar Board Class 12th Hindi Book Solution पद्य chapter 13 ‘गाँव का घर’

Hello, इस वेबसाइट के इस पेज पर आपको Bihar Board Class 12th Hindi Book के काव्य खंड के Chapter 13 के सभी पद्य के भावार्थ एवं प्रश्न- उत्तर (Question-Answer) पढने को मिलेंगे साथ ही साथ कवि परिचय एवं आपके परीक्षा के दृष्टिकोण से ओर भी महत्वपूर्ण जानकारियां पढने को मिलेंगे | इस पूरे पेज में क्या-क्या है उसका हेडिंग (Heading) नीचे दिया हुआ है अगर आप चाहे तो अपने जरूरत के अनुसार उस पर क्लिक करके सीधा (Direct) वही पहुंच सकते है |Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 13 ‘गाँव का घर’

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कवि परिचय

जीवनी – कविवर ज्ञानेंद्रपति का जन्म 1 जनवरी, 1950 को पत्थरगामा, गोड्डा, झारखंड में हुआ था । इनकी माता का नाम श्रीमती सरला देवी तथा पिता जी का नाम श्री देवेन्द्र प्रसाद चौबे है । आपकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में हुई । बी०ए० तथा एम० ए० (अंग्रेजी) की परीक्षा पटना विश्वविद्यालय से पास की। तत्पश्चात हिन्दी विषय में एम० ए० बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर से किया। अध्ययन समाप्त करने के पश्चात् बिहार लोकसेवा आयोग द्वारा चयनित होकर कारा – अधीक्षक के पद पर पदस्थापित हुए । अपने कार्यकाल में उन्होंने कैदियों के लिए अनेक कल्याणकारी कार्यक्रम चलाए । अन्ततः नौकरी छोड़कर पूर्णरूपेण कविता लेखन कार्य में लग गए । अपना निवास स्थान वाराणसी (उत्तरप्रदेश) को बनाया है ।

साहित्यिक विशेषताएँ – एक प्रखर एवं तेजस्वी युवा कवि के रूप में ज्ञानेन्द्रपति बीसवीं शती के आठवें दशक में उदित हुए । अपने शब्द चयन, भाषा संवेदना की ताजगी और रचना विन्यास में अद्वितीय क्षमता के कारण उन्होंने हिन्दी कविता के सुधी पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया । 1980 में आए अपने दूसरे कविता संग्रह से उन्होंने विचारशील पाठकों और विवेकवान आलोचकों को अपनी प्रतिभा, काव्य ऊर्जा और व्यक्तिगत सामर्थ्य मौलिक चिन्तन से आश्वस्त किया । “गंगा तट” नामक संग्रह के द्वारा अपने समकालीनों के बीच उन्होंने अदभुत सर्जनात्मक स्थैर्य और धैर्य प्रमाणित कर दिखाया है। उनकी कविता के उत्स बिपुल और बहुरूप ।

रचनाएँ – उनका कविता संग्रह, आँख हाथ बनते हुए, 1970 में प्रकाशित हुआ । सन् 1980 में ” शब्द लिखने के लिए ही यह कागज बना है” का प्रकाशन हुआ । इसके अतिरिक्त गंगातट (2000), संशयात्मा (2004), भिनसार (2006), कवि ने कहा (2007) इनके अन्य कविता संग्रह हैं। इसके अतिरिक्त गद्य लेखन में भी आपने अभिरूचि दिखाई। पढ़ते- गढ़ते, एकचक्रानगरी (काव्य नाटक) इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं। सन् 2006 में आप “पहल सम्मान से” . विभूषित हुए । ‘संशयात्मा’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार वर्ष 2006 में प्रदान किया गया ।

कविता का सारांश

“गाँव क घर” शीर्षक कविता में कवि ग्रामीण संस्कृति का विवरण देते हुए गाँव के घर की विशिष्टता का चित्रण कर रही है। गाँव के अन्तःपुर के बाहर की ड्योढ़ी पर एक चौखट रहा करता है। यह चौखट वह सीमा रेखा है जिसके भीतर आने से पहले परिवार के वरिष्ट नागरिकों (बुजुर्गों) को रूकना पड़ता है, अपनी खड़ाऊँ की खटपट आवाज से घर के अंदर की महिलाओं को अपने आने का संकेत देना पड़ता है। अन्य संकेत भी अपनाए जाते हैं खाँसना अथवा किसी का नाम लिए बगैर पुकारना आदि । चौखट के बगल में गेरू से रंगी हुई दीवार पर बूढ़े ग्वाल दादा (दूध देने वाला) के दूध से भींगे अँगूठे के निशान अंकित रहते जिसमें दूध का हिसाब उल्लिखित रहता है, पूरे महीना भर के महीना के अंत में उसकी गिनती करके दूध के बिल (राशि) का भुगतान किया जाता रहा है । यह है ग्रामीण परिवेश के परिवारों की जीवन-शैली की एक झलक ।
किन्तु अब परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं, गाँव का वह घर अपना वह स्वरूप खो चुका है। वह सादगी, वह नैसर्गिक स्वरूप अब स्वप्न की बातें हो गई हैं, अतीत की स्मृति बन कर रह गई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि गाँव का वह घर अपना गाँव खो चुका है, क्योंकि गाँव की वह प्राचीन परंपरा तिरोहित हो गई है। पंचायती राज के आते ही “पंच परमेश्वर” लुप्त हो गए, कहीं खो गए । न्यायोचित निर्णय देनेवाले कर्णधार अराजकता तथा अन्याय की बलि चढ़ गए | दीपक तथा लालटेनों का स्थान बिजली के प्रकाश ने ले लिया । लालटेन दीबार पर बने आलों के ऊपर टँगे कैलेंडरों से ढँक गई । बिजली है किन्तु वह स्वयं अधिकांशतः अंधकार में डूबी रहती है। वह बनी रहने की बजाय, “गई रहने वाली ” ही हो गई । इसके कारण रात प्रकाश से अधिक अंधकार फैला रही है। यह अंधकार एक प्रकार से साथ छोड़ दिए जाने की अनुभूति कराता है अर्थात् कोई स्व-जन साथ छोड़कर चला गया हो ।

दूसरी ओर इससे बिल्कुल भिन्न वातावरण है । धवल प्रकाश ( चकाचौंध रोशनी) में आर्केस्ट्रा की स्वर लहरी सप्तम-स्वर में बंद दरबाजों के अन्दर, वहाँ से काफी दूर पर गूँज रही है। दरवाजे भिड़े होने के कारण उसके स्वर नहीं सुनाई देते। आर्केस्ट्रा की ध्वनि तथा चकाचौंध प्रकाश दोनों ही कवि को दृष्टिगोचर नहीं होते ।

इस आधुनिकता के दौर में चैती, विरहा- आल्हा, होली गीत कवि को सुनाई नहीं देते । लोकगीतों की इस पावन जन्मभूमि में एक अनगाया, अनसुना सा शोकगीत शेष है दस कोस दूर स्थित शहर से आने वाला “सर्कस का प्रकास – बुलौआ” (सर्च लाइट) अब अपना दम तोड़ चुका है, लुप्त हो गया है। यह देखकर ऐसा अनुभव होता है, मानों अपने दाँतों को गँवाकर हाथी गिरा पड़ा हो । शहर की अदालतों और अस्पतालों में फैले हुए भ्रष्टाचार के वीभत्स मुख चबा जाने और लील (निगल) जाने को तत्पर है तथा बुला रहे हैं। इससे गाँव की जिन्दगी चरमरा रही है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर अति संक्षेप में दें

प्रश्न 1. ज्ञानेन्द्रपति जी किस काल के कवि हैं ? इनकी कविताओं की क्या विशेषताएँ हैं ?

उत्तर – ज्ञानेन्द्रपति जी अत्याधुनिक काल के चर्चित कवि हैं । ये बीसवीं सदी के आठवें दशक में उदित हुए । ज्ञानेन्द्रपति जी संभावनाशील युवा कवि हैं। अपने शब्द चयन, भाषा, संवेदना की ताजगी और रचना विन्यास में आत्मसजग संधान जैसी विशेषताओं के कारण उन्होंने हिन्दी कविता के सुधी पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया है। अपनी प्रतिभा, काव्य ऊर्जा व्यक्तिगत सृजनशीलता और और स्वाधीन सामर्थ्य से सबको आश्वस्त किया । वे एक अध्ययनशील एवं मनीषाधर्मी रचनाकार हैं ।

प्रश्न 2. ज्ञानेन्द्रपति जी की प्रमुख काव्य कृतियाँ कौन-कौन-सी हैं ?

उत्तर – ज्ञानेन्द्रपति जी की प्रमुख काव्य कृतियों में आँख हाथ बनते हुए (1970), शब्दलिखने के लिए ही यह कागज बना है (1980), गंगा-तट (2000), संशयात्मा (2004), मिनसार (2006), कवि ने कहा (2007), आदि प्रसिद्ध हैं। इनकी कविताएँ सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग भाव रखती हैं। समझ, संवेदना और दृष्टिकोण में ही नहीं जीवन-व्यवहार, संबंधों और रचनाशीलता में भी कवि की दृष्टि पैनी है ।

प्रश्न 3. ज्ञानेन्द्रपति की कविताओं में देशज शब्दों का प्रयोग बारीकी से हुआ है। उन शब्दों का चयन करें ।

उत्तर – ज्ञानेन्द्रपति जी ग्रामीण संस्कृति में पले हुए कवि हैं । अतः इनके पास ठेठ गँवई शब्दों का भंडार हैं। अपनी कविताओं में इसका प्रयोग कर अभिव्यक्ति में सशक्तता लाने में सफल रहे हैं ।

, चौखट, टिकुली, सहजन खड़ाऊँ, गेरू-लिपि भीत, उठौना, बिटौआ, आलों में, पट भिड़काए, होरी – चैती, बिरह- आल्हा, बुलौआ, लीलने वाले झुरझुराती है आदि देशज शब्दों का प्रयोग अत्यंत ही बारीकी से हुआ ।

प्रश्न 4. लोकगीतों की जगह गाँवों में शोकगीत की झलक प्रतिबिंबित होती है, कवि के व्यक्त भावों को स्पष्ट करें।

उत्तर – ज्ञानेन्द्रपति जी ‘गाँव का घर’ नामक अपनी कविता में वर्णित बढ़ती हुई अपसंस्कृति के चकाचौंध से काफी पीड़ित है। गाँव की पुरानी संस्कृति अब मिट रही है। हम अपने पुरखों (पूर्वजों) की विरासत को भूलते जा रहे हैं। फिल्मी गीतों, आर्केस्ट्रा आदि के आगे होरीं, चैती, बिरहा, आल्हा की गूंज अब गाँव के चौपालों में नहीं सुनाई पड़ती । लोकगीतों की जगह अनाप-शनाप अश्लील भावों से युक्त फूहड़गीतों अब ने गाँव को दूषित कर दिया है। ऐसे गीतों को कवि ने शोकगीत के रूप में चित्रित किया है ।

प्रश्न 5. ” अदालतों एवं अस्पतालों के फैले-फैले भी सँधते-गँधते अमित्र परिसर” का क्या भाव है ? इस पर प्रकाश डालें ।

उत्तर – कवि ज्ञानेन्द्रपति जी ने अदालतों एवं अस्पतालों के माध्यम से समाज में व्याप्त कलह, द्वेष, मुकदमें, अस्वस्थता, गरीबी, दुश्मनी आदि भावों को चित्रित किया है। अदालत के परिसर में अमैत्री – भाव दृष्टिगत होता है । आँसू एवं भर्राये कंठ से पीड़ा ही पीड़ा झलकती है। ग्रामीण लोग जो भोले-भाले एवं अनपढ़, गँवार हैं वे अस्पतालों एवं अदालतों में शोषण के शिकार होते हैं। मुकदमा और इलाज के चक्कर में वे ठगे जाते हैं । शोषित किए जाते हैं। इस प्रकार अदालत एवं अस्पताल परिसर का वातावरण दुर्गंधमय एवं अमित्र – भाव से युक्त है।

प्रश्न 6. ‘“छीज रहे हैं जंगल में, लीलने वाले मुँह खोले, शहर में बुलाते हैं बस’कविता का भाव स्पष्ट करें ।

उत्तर- ज्ञानेन्द्रपति जी ने ‘गाँव का घर’ कविता के माध्यम से ‘छीज रहे हैं जंगल’ की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है । कवि के कहने का भाव यह है कि अंधा धुँध जंगलों की कटाई की जा रही है | वहाँ विशाल भवन, कल-कारखाने खड़े हो रहे हैं । ये संस्कृति-संकट के लक्षण हैं। एक दिन मनुष्य अपने ही इन बनाए गए विकास तंत्र की अट्टालिकाओं में बेचैनी महसूस करेगा | ‘जंगलों का छीजना’ संस्कृति और सम्यता के लिए खतरा है । जंगलों की जगह भव्य इमारतें, अनेक प्रकार के कारखाने तथा बहुधंधी योजनाओं के निर्माण के कारण संकट के बादल घिरते नजर आ रहें हैं ।

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कवि की स्मृति में “घर का चौखट” इतना जीवित क्यों है ?

उत्तर – कवि की स्मृति में “घर का चौखट ” जीवन की ताजगी से लवरेज है । उसे चौखट इतना जीवित इसलिए प्रतीत होता है कि इस चौखट की सीमा पर सदैव चहल-पहल रहती है । कवि अतीत की अपनी स्मृति के झरोखे से इस हलचल को स्पष्ट रूप से देखता है अर्थात् ऐसा अनुभव करता है, क्योंकि उस चौखट पर बुजुर्गों को घर के अन्दर अपने आने की सूचना के लिए खाँसना पड़ता था तथा उनकी खड़ाऊँ की “खट-पट” की स्वर-लहरी सुनाई पड़ती थी । इसके अतिरिक्त बिना किसी का नाम पुकारे अन्दर आने की सूचना हेतु पुकारना पड़ता था। चौखट के बगल में गेरू से रंगी हुई दीवार थी । ग्वाल दादा ( दूध देने वाले) प्रतिदिन आकर दूध की आपूर्ति करते थे । दूध की मात्रा का विवरण दूध से सने अपने अंगूठे की उस दीवार पर छाप द्वारा करते थे, जिनकी गिनती महीने के अंत में दूध का हिसाब करने के लिए की जाती थी। यह गाँवों की पुरानी परिपाटी थी ।

उपरोक्त वर्णित उन समस्त औपचारिकताओं के बीच “घर की चौखट” सदैव जाग्रत रहती थी, जीवन्तता का अहसास दिलाती थी ।

प्रश्न 2. “पंच परमेश्वर” के खो जाने को लेकर कवि चिंतित क्यों है ?

उत्तर- “पंच परमेश्वर” का अर्थ है-‘पंच’ परमेश्वर का रूप होता है । वस्तुत: पंच के पद पर विराजमान व्यक्ति अपने दायित्व निर्वाह के प्रति पूर्ण सचेष्ट एवं सतर्क रहता है । वह निष्पक्ष न्याय करता है। उस पर सम्बन्धित व्यक्तियों की पूर्ण आस्था रहती है तथा उसका निर्णय “देव-वाक्य” होता है । कवि यह देखकर खिन्न है कि आधुनिक पंचायती राज व्यवस्था में पंच परमेश्वर का सार्थकता विलुप्त हो गई। एक प्रकार से अन्याय और अनैतिकता ने व्यवस्था को निष्क्रिय कर दिया है, पंगु बना दिया है। पंच परमेश्वर शब्द अपनी सार्थकता खो चुका है। कवि उपरोक्त कारणों से ही चिन्तित है ।

प्रश्न 3. “कि आवाज भी नहीं आती यहाँ तक, न आवाज की रोशनी न रोशनी की आवाज” यह आवाज क्यों नहीं आती ?

उत्तर – कवि का इशारा रोशनी के तीव्र प्रकाश में आर्केस्ट्रा के बज रहे संगीत से है रोशनी की चकाचौध में बंद कमरे में आर्केस्ट्रा की स्वर-लहरी गूँज रही है, किन्तु कमरा बंद होने के कारण यह बाहर में सुनी नहीं जा सकती । अतः कवि रोशनी तथा आर्केस्टा के संगीत दोनों से वंचित है । आवाज की रोशनी का संभवतः अर्थ आवाज से मिलनेवाला आनंद है उसी प्रकार रोशनी की आवाज का अर्थ प्रकाश से मिलने वाला सुख इसके अतिरिक्त एक विशेष अर्थ यह भी हो सकता है कि आधुनिक समय की बिजली का आना तथा जाना अनिश्चित और अनियमित है । कवि उसके बने रहने से अधिक “गई रहने वाली” मानते हैं। उसमें लालटेन के समान स्निग्धता तथा सौम्यता की भी उन्हें अनुभूति नहीं होती । उसी प्रकार आकेस्ट्रा में उन्हें उस नैसर्गिक आनन्द की प्रतीति नहीं होती जो लोकगीतों बिरहा- आल्हा, चैती तथा होरी आदि गीतों से होती है | कवि संभवतः आर्केस्ट्रा को शोकगीत की संज्ञा देता है । ।

इस प्रकार यह कवितांश द्विअर्थक प्रतीत होता है ।

प्रश्न 4. आवाज की रोशनी या रोशनी की आवाज का क्या अर्थ है ?

उत्तर – उपरोक्त उक्ति (कथन) कवि की काव्यगत जादूगरी का उदाहरण है, उनकी वर्णन शैली का उत्कृष्ट प्रमाण है। आवाज की रोशनी से संभवतः उनका अर्थ संगीत से है । संगीत में अभूतपूर्व शक्ति है, ऊर्जा है । वह व्यक्ति के हृदय को अपने मधुर स्वर से आलोकित कर देता है । इस प्रकार वह प्रकाश के समान धवल है तथा उसे रौशन करता है ।

रोशनी की आवाज से उनका तात्पर्य प्रकाश की शक्ति तथा स्थायित्व से है । प्रकाश में तीव्रता चाहे जितनी अधिक हो किन्तु यदि उसमें स्थिरता नहीं हो, अनिश्चितता अधिक हो वह असुविधा एवं संकट का कारण बन जाती है। संभव है कवि का आशय यही रहा है । कविता की पूरी पंक्ति है, ” कि आवाज भी नहीं आती यहाँ तक, न आवाज की रोशनी, न रोशनी की आवाज ” । – कवि के कथन की गहराइयों में जाने पर एक आनुमानित अर्थ यह भी है – दूर पर एक बंद कमरे में प्रकाश की चकाचौंध के बीच आर्केस्ट्रा का संगीत ऊँची आवाज में अपना रंग बिखेर रहा है किन्तु कमरा बंद होने के कारण अपने संकुचित परिवेश में सीमित श्रोताओं को ही आनंद बिखेर रहा है। उसके बाहर रहकर कवि स्वयं को उसके रसास्वादन ( अनुभूति) से वंचित पाता है।

प्रश्न 5. कविता में किस शोकगीत की चर्चा है ?

उत्तर – कवि उन गीतों को याद कर रहा है जिसे सुनकर प्रत्येक श्रोता का हृदय एक अपूर्व आनंद में निमग्न हो जाता था । ये लोकगीत – होरी – चैती, विरहा- आल्हा आदि जो कभी जन- समुदाय के मनोरंजन तथा प्रेरणा के श्रोत थे, बीते दिनों की बात हो गए । अब उनकी छटा की बहार उजड़े दयार में तब्दील हो गई। उनका स्थान शोक गीतों ने ले लिया । ये शोकगीत कवि के अनुसार आधुनिक शैली के गीत, आकेस्ट्रा की धुन आदि हैं जो कर्णकटु भी हैं तथा निरर्थक भी । उत्तेजना तथा अपसंस्कृति के वाहक मात्र हैं। उसमें नवस्फूर्ति एवं माधुर्य का सर्वथा अभाव है । अतः उसमें शोकगीत की अनुभूति होती है।

प्रश्न 6. सर्कस का प्रकाश-बुलौआ किन कारणों से भरा होगा ?

उत्तर – सर्कस में प्रकाश बुलौआ दूर-दराज के क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करता था। उसकी तीव्र प्रकाश तरंगों से लोगों को सर्कस के आने की सूचना प्राप्त हो जाया करती थी । यह प्रकाश बुलाओ एक प्रकार से दर्शकों को सर्कस में आने का निमंत्रण होता था। इस प्रकार उस क्षेत्र के निवासियों से अच्छी खासी रकम आसानी से सर्कस कम्पनी वाले प्राप्त कर लेते थे । यह सिलसिला एक लम्बे अरसे से चला आ रहा था। अचानक यह बन्द हो गया है | अब सर्कस का प्रकाश-बुलौआ लुप्त हो गया है, कहीं गुमनामी में खो गया है। ग्रामीणों की जेब खाली कराने की उसकी रणनीति भी उसके साथ ही बिदा हो गई है। प्रकाश- बुलौआ का गायब होना भी रहस्यमय है। संभवतः सरकार को उसकी यह नीति पसंद नहीं आई तथा इसी कारण अपने शासनादेश में प्रकाश बुलौआ पर प्रतिबंध लगा दिया गया । अब सर्कस इसका (प्रकाश – बुलौआ) का सहारा नहीं ले सकता । –

कवि का कथन “सर्कस का प्रकाश – बुलौआ तो कब का मर चुका है । ” इस परिपेक्ष्य में कहा गया लगता है ।

प्रश्न 7. गाँव के घर की रीढ़ क्यों झुरझुराती है ?

उत्तर – कवि ने गाँवों की वर्तमान स्थिति का वर्णन करने के क्रम में उपरोक्त बातें कही हैं। हमारे गाँवों की अतीत में गौरवशाली परंपरा रही है। सौहार्द, बंधुत्व एवं करुणा की अमृतमयी धारा यहाँ प्रवाहित होती थी । दुर्भाग्य से आज वही गाँव जड़ता एंव निष्क्रियता के शिकार हो गए हैं। इनकी वर्तमान स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गई है । अशिक्षा एवं अंधविश्वास के कारण परस्पर विवाद में उलझे हुए तथा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से त्रस्त हैं। शहर के अस्पताल तथा अदालतें इसकी साक्षी हैं । इसी संदर्भ में कवि विचलित होते हुए अपने विचार प्रकट करते है,

“लीलने वाले मुँह खोले शहर में बुलाते हैं बस

अदालतों और अस्पतालों के फैले- फैले भी रूंधते-गँधाते अमित्र परिवार “

कवि के कहने का आशय यह प्रतीत होता है कि शहर के अस्पतालों में गाँव के लोग रोगमुक्त होने के लिए इलाज कराने आते हैं। इसी प्रकार अदालतों में आपसी विवाद में झकर अपने मुकदमों के संबंध में आते हैं। ऐसा लगता है कि इन निरीह ग्रामीणों को निगल i ज के लिए नगरों के अस्पतालों तथा अदालतों का शत्रुवत परिसर मुँह खोल कर खड़ा है । इसका परिणाम ग्रामीण जनता की त्रासदी है । गाँव के लोगों की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति चरमरा गई है। अतः उनके घरों की दशा दयनीय हो गई है ।

कवि ने संभवतः इसी संदर्भ में कहा है, “कि जिन बुलौओं से गाँव के घर की रीढ़ झुरझुराती है” अर्थात् शहर के अस्पतालों तथा अदालतों द्वारा वहाँ आने का न्योता देने से उन गाँवों की रीढ़ झुरझुराती है। कवि की अपने अनुभव के आधार पर ऐसी मान्यता है कि गाँववालों का अदालतों तथा अस्पतालों का अपनी समस्या के समाधान में चक्कर लगाना दुःखद है। इसके कारण गाँव के घर की रीढ़ झुरझुरा गई है। गाँव में रहने वालों की स्थिति जीर्ण-शीर्ण हो गई है।

प्रश्न 8. मर्म स्पष्ट करें- “कि जैस गिर गया हो गजदंतों को गँवाकर कोई हाथी ” ।

उत्तर – “गजदंतों को गँवाकर कोई हाथी ” की तुलना सर्कस के प्रकाश बुलौआ से की गई है। सर्कस में प्रकाश – बुलौआ (सर्चलाइट) का प्रयोग शहर में सर्कस कंपनी के आने की सूचना के उद्देश्य से किया जाता है । इसके साथ ही इसके द्वारा दूर-दूर तक जन समुदाय को आकृष्ट करना भी एक लक्ष्य होता है ताकि दर्शकों की संख्या बढ़ सके। एक शासनादेश द्वारा प्रकाश- बुलौआ पर रोक लगा दी गई है तथा अनेक वर्षों से इसका प्रसारण बंद है। यह लुप्त हो गया है। इसी संदर्भ में कवि दृष्टान्त के रूप में उपरोक्त पंक्ति के द्वारा उसकी तुलना अपने दोनों दाँत खोकर भूमि पर गिरे हुए हाथी से कर रहे हैं। जिस प्रकार दोनों दाँत खोकर हाथी पीड़ा से भूमि पर गिर पड़ा है उसी प्रकार प्रकाश बुलौआ भी निस्तेज हो गया है ।

प्रश्न 9. कविता में कवि की कई स्मृतियाँ दर्ज हैं। स्मृतियों का हमारे लिए क्या महत्त्व होता है, इस विषय पर अपने विचार विस्तार से लिखें।

उत्तर – “गाँव का घर” शीर्षक कविता में कवि के जीवन की कई स्मृतियाँ दर्ज हैं। अपनी कविता के माध्यम से कवि उन स्मृतियों में खो जाता है। बचपन में गाँव का वह घर, घर की परंपरा, ग्रामीण जीवन-शैली तथा उसके विविध रंग, – इन सब तथ्यों को युक्तियुक्त ढंग से इस कविता में दर्शाया गया है ।

वस्तुतः स्मृतियों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। स्मृतियों के द्वारा हम आत्मनिरीक्षण करते हैं तथा वे अन्य व्यक्तियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत होती हैं। इसके द्वारा हमें अपने जीवन की कतिपय विसंगतियों से स्वयं को मुक्त करने का अवसर मिलता है | बाल्यावस्था की अनेक भूलें हमारे भविष्य को बुरी तरह प्रभावित करती है। अपने जीवन के ऊषाकाल में उपजी कुप्रवृत्तियाँ हमारी दिशा तथा दशा दोनों ही बुरी तरह प्रभावित करती हैं ।

प्रश्न 10. चौखट, भीत, सर्कस, घर, गाँव और साथ ही बचपन के लिए कवि की चिंता को आप कितना सही मानते हैं ? अपने विचार लिखें ।

उत्तर – कवि ने अपनी कविता ‘गाँव का घर’ शीर्षक कविता में चौखट, भीत, घर, गाँव आदि शब्दों का प्रयोग किया है। इन शब्दों द्वारा कवि ने ग्रामीण जीवन की विभिन्न समस्याओं को रेखांकित किया है। उन्होंने बचपन के अपने अनुभवों को भी सजीव ढंग से इस कविता में सजाया है ।

कवि ने ग्रामीण जीवन का सहज एवं स्वाभाविक विवरण उपरोक्त शब्दों द्वारा अपनी कविता में सही ढंग से किया है। घर का चौखट गाँव की रूढ़िवादी परंपरा का प्रतीक है, जहाँ से घर के अन्दर प्रवेश करने के लिए बुजुर्गों को खाँसकर, आवाज लगाकर जाना पड़ता था । गेरु लिपी भीत ( दीवार) अभाव एवं विपन्नता की ओर संकेत करती है। सर्कस अपने इर्द गिर्द बिखरे आकर्षण को दर्शाता है । दस कोस की दूरी से आपको (ग्रामीणों को) आमंत्रित करते हुए अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए, अर्थात् पैसे कमाने के लिए धूर्तता ( प्रकाश बुलौआ) का सहारा लेता है तथा ग्रामीणों की जेब खाली कराता है । घर गाँव की जीवन शैली का चित्र है जो सादगी और अभाव का प्रतिरूप है। गाँव हमारी बदहाली तथा दकियानूसी (रूढ़िवादी) मानसिकता को रेखांकित करता है। बचपन जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जीवन की आधारशिला है। उसे निरर्थक खोकर अर्थात् उसका दुरूपयोग करके मनुष्य अपना सर्वस्व खो देता है । कवि का इशारा उसी ओर है, उसे निरूद्देश्य नष्ट करने के लिए नहीं सार्थक बनाने के लिए है।

अतः कवि की चिन्ता इन सबके लिए सर्वथा उपयुक्त तथा सोद्देश्य है । मैं उनके विचारों तथा चिंता को पूर्णतः सही मानता हूँ ।

प्रश्न 11. जिन चीजों का विलोप हो चुका है, जिनके लिए शोक है, उनकी एक सूची बनाएँ ।

उत्तर – वर्त्तमान समय में अनेकों प्राचीन परंपराओं तथा अनेकों अन्य वस्तुओं का लोप हो गया है। कुछ चीजों के लिए हम शोक मनाते हैं। जिन चीजों का लोप हो गया है उनमें निम्नांकित वस्तुएँ मुख्य हैं

(i) गाँव का पुराना घर, (ii) अंतःपुर की चौखट, (iii) बुजुर्गों की खड़ाऊँ, (iv) बचपन में कवि के भाल पर दुग्ध तिलक, (v) गेरू से रंगी दीवार पर दूध से सने अंगूठे की छाप, (vi) पंच परमेश्वर, (vii) होरी-चैती, बिरहा- आल्हा आदि लोकगीत, (viii) सरकस का प्रकाश – बुलौआ आदि ।

जिन वस्तुओं के लिए शोक है, उनमें निम्नांकित प्रमुख हैं

(i) कवि का बचपन, (ii) पंच परमेश्वर के स्थान पर भ्रष्ट पंचायती राज व्यवस्था, (iii) बिजली की अनियमित आपूर्ति (कवि के शब्दों में, बिजली बत्ती आ गई कब की, बनी रहने से अधिक गई रहनेवाली । (iv) होरी चैती बिरहा- आल्हा आदि लोकगीतों की मरन्नासन्न स्थिति (उनके न होने पर कवि के शब्दों में “एक शोकगीत अनगाया अनसुना”) (v) अदालतों तथा अस्पतालों द्वारा निरीह ग्रामवासियों का शोषण तथा धोखाधड़ी (कवि के अनुसार-“अदालतों और अस्पतालों के फैले-फैले भी रुँधते – गँधाते अमित्र परिसर”)

प्रश्न 12. “गाँव का घर” शीर्षक कविता का सारांश लिखें ।

उत्तर – उत्तर के लिए पाठ का सारांश देखें ।

भाषा की बात

प्रश्न 1. कविता से देशज शब्दों को चुनकर लिखें ।

उत्तर – काव्य पाठ से देशज शब्द इस प्रकार हैं(1) चौखट, (2) सहजन, (3) लिपी-भीत, (4) उठौना, (5) बिटौआ, (6) टिकुली, ) भिड़काए, (8) बुलौआ, (9) लीलनेवाला आदि ।

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solution पद्य chapter 13 ‘गाँव का घर’

इस आर्टिकल में आपने Bihar Board Class 12th hindi Book के काव्य खंड के Chapter 13 ‘गाँव का घर’’ में के भावार्थ एवं प्रश्न- उत्तर (Question-Answer) पढ़ा | अगर कोई सुझाव या परेशानी हो तो नीचे कमेंट में अपनी राय अवश्य दें | धन्यवाद |

इसे भी पढ़ें –  

Chapter :- 1 कड़बक
Chapter :- 2 सूरदास के पद
Chapter :- 3 तुलसीदास के पद
Chapter :- 4 छप्पय
Chapter :- 5 कवित्त
Chapter :- 6 तुमुल कोलाहल कलह में
Chapter :- 7 पुत्र वियोग
Chapter :- 8 उषा
Chapter :- 9 जन-जन का चेहरा एक
Chapter :- 10 अधिनायक
Chapter :- 11 प्यारे नन्हें बेटे को
Chapter :- 12 हार-जीत
Chapter :- 13 गाँव का घर

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