Bihar Board Class 10th Hindi Book Solution पद्य Chapter 7 ‘हिरोशिमा’ | 10th Hindi NCERT Solution | 10th hindi Hiroshima| BSEB 10th Hindi solution | BSEB Solution | 10 Hindi Bseb padykhand | Bihar Board Class 10th Hindi pady solution chapter 6| Hiroshima
Hello, SarkariCity के इस पोस्ट पर आपका स्वागत है । इस पोस्ट पर आपको Bihar Board Class 10th Hindi Book Solutions गोधूलि भाग 2 ka Chapter 7 ‘हिरोशिमा’ पढ़ने को मिलेंगे । यहां आपको बिहार बोर्ड कक्षा 10 के हिन्दी पुस्तक गोधूलि भाग 2 के सभी Chapters (अध्याय) का वस्तुनिष्ठ(Objectives) एवं गैर-वस्तुनिष्ठ(Subjectives) प्रश्न-उत्तर पढ़ने को मिलेंगे । यदि आप ये सभी जानकारी अपने मोबाईल पर सबसे पहले और आसानी से पाना चाहते है तो कृपया ऊपर दिए गए हमारे Whatsap Channel तथा Telegram Channel से अवश्य जुड़ जाईए |
सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन ‘अज्ञेय’ का जन्म 7 मार्च 1911 ई० में कसेया, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ, किंतु उनका मूल निवास कर्तारपुर (पंजाब) था। अज्ञेय की माता व्यंती देवी थीं और पिता डॉ० हीरानंद शास्त्री एक प्रख्यात पुरातत्त्वेत्ता थे । अज्ञेय की प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ में घर पर हुई। उन्होंने मैट्रिक 1925 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से, इंटर 1927 ई० में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से, बी० एससी० 1929 ई० में फोरमन कॉलेज, लाहौर से और एम० ए० (अंग्रेजी) लाहौर से किया ।
अज्ञेय बहुभाषाविद् थे। उन्हें संस्कृत, अंग्रेजी, हिन्दी, फारसी, तमिल आदि अनेक भाषाओं का ज्ञान था । वे आधुनिक हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, कथाकार, विचारक एवं पत्रकार थे । उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – काव्य : भग्नदूत’, ‘चिंता’, ‘इत्यलम’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’, ‘सदानीरा’ आदि; कहानी संग्रह : ‘विपथगा’, ‘जयदोल’, ‘ये तेरे प्रतिरूप’, ‘छोड़ा हुआ रास्ता’, ‘लौटती पगडडियाँ’ आदि; उपन्यास : ‘शेखर : एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’, यात्रा-साहित्यः अरे यायावर रहेगा याद’, ‘एक बूँद सहसा उछली’; निबंध : ‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘अद्यतन’, ‘भवंती’, ‘अंतरा’, ‘शाश्वती’ आदि; नाटक : ‘उत्तर प्रियदर्शी’; संपादित ग्रंथ : ‘तार सप्तक’, ‘दूसरा सप्तक’, ‘तीसरा सप्तक’, ‘चौथा सप्तक’, ‘पुष्करिणी’, ‘रूपांबरा’ आदि । अज्ञेय ने अंग्रेजी में भी मौलिक रचनाएँ की और अनेक ग्रंथों के अनुवाद भी किए । वे देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे । उन्हें साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ, नुगा (युगोस्लाविया) का अंतरराष्ट्रीय स्वर्णमाल आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए । 4 अप्रैल 1987 ई० में उनका देहांत हो गया ।
अज्ञेय हिंदी के आधुनिक साहित्य में एक प्रमुख प्रतिभा थे। उन्होंने हिंदी कविता में प्रयोगवाद का सूत्रपात किया । सात कवियों का चयन कर उन्होंने ‘तार सप्तक’ को पेश किया और बताया कि कैसे प्रयोगधर्मिता के द्वारा बासीपन से मुक्त हुआ जा सकता है । उनमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है।
1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज क्या है ? वह कैसे निकलता है?
उत्तर-
कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज आण्विक बम का प्रचण्ड गोला है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह क्षितिज से न निकलकर धरती फाड़कर निकलता है। अर्थात् हिरोशिमा की धरती पर बम गिरने से आग का गोला चारों ओर फैल जाता है, चारों ओर आग की लपटें फैल जाती हैं। धरती पर भयावह दृश्य उपस्थित हो जाता है। आण्विक बम नरसंहार करते हुए उपस्थित होता है।
2. छायाएं दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
सूर्य के उगने से जो भी बिम्ब-प्रतिबिम्ब या छाया का निर्माण होता है वे सभी निश्चित दिशा में लेकिन बम-विस्फोट से निकले हुए प्रकाश से जो छायाएँ बनती हैं वे दिशाहीन होती
हैं। क्योंकि आण्विक शक्ति से निकले हुए प्रकाश सम्पूर्ण दिशाओं में पड़ता है। उसका कोई निश्चित दिशा नहीं है। बम के प्रहार से मरने वालों की क्षत-विक्षत लाशें विभिन्न दिशाओं में जहाँ-तहाँ पड़ी हुई हैं। ये लाशें छाया-स्वरूप हैं परन्तु चतुर्दिक फैली होने के कारण दिशाहीन छाया कही गयी है। बम के रूप में सूरज की छायाएँ दिशाहीन सब ओर पड़ती हैं।
3. प्रज्ज्वलित क्षण की दोपहरी से कवि का आशय क्या है ?
उत्तर-
हिरोशिमा में जब बम का प्रहार हुआ तो प्रचण्ड गोलों से तेज प्रकाश निकला और वह चतुर्दिक फैल गया। इस अप्रत्याशित प्रहार से हिरोशिमा के लोग हतप्रभ रहे गये। उन्हें सोचने का अवसर नहीं मिला। उन्हें ऐसा लगा कि धीरे-धीरे आनेवाला दोपहर आज एक क्षण में ही उपस्थित हो गया। बम से प्रज्वलित अग्नि एक क्षण के लिए दोपहर का दृश्य प्रस्तुत कर दिया। कवि उस क्षण में उपस्थित भयावह दृश्य का आभास करते हैं जो तात्कालिक था। वह दोपहर उसी क्षण वातावरण से गायब भी हो गया।
4. मनुष्य की छायाएँ कहाँ और क्यों पड़ी हुई हैं?
उत्तर-
मनुष्य की छायाएँ हिरोशिमा की धरती पर सब ओर दिशाहीन होकर पड़ी हुई हैं।
जहाँ-तहाँ घर की दीवारों पर मनुष्य छायाएँ मिलती हैं। टूटी-फूटी सड़कों से लेकर पत्थरों पर छायाएँ प्राप्त होती हैं। आण्विक आयुध का विस्फोट इतनी तीव्र गति में हुई कि कुछ देर के लिए समय का चक्र भी ठहर गया और उन विस्फोट में जो जहाँ थे वहीं उनकी लाश गिरकर सट गयी। वही सटी हुई लाश अमिट छाया के रूप में प्रदर्शित हुई।
5. हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में क्या है ?
उत्तर-
आज भी हिरोशिमा में साखी के रूप में अर्थात् प्रमाण के रूप में जहाँ-तहाँ जले हुए पत्थर दीवारें पड़ी हुई हैं यहाँ तक कि पत्थरों पर, टूटी-फूटी सड़कों पर, घर के दीवारों पर लाश के निशान छाया के रूप में साक्षी है। यही साक्षी से पता चलता है कि अतीत में यहाँ अमानवीय दुर्दान्तता का नंगा नाच हुआ था।
6. व्याख्या करें:
(क) “एक दिन सहसा / सूरज निकता’
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश हिन्दी प्रयोगवादी विचारधारा के महान प्रवर्तक कवि अज्ञेय द्वारा लिखित ‘हिरोशिमा’ नामक शीर्षक से अवतरित है। प्रस्तुत अंश में हिरोशिमा में हुए बम विस्फोट के बाद दुष्परिणाम का जो अंश उपस्थित हुआ है उसी का मार्मिक चित्रण है। – कवि कहना चाहते हैं कि जब हिरोशिमा में आण्विक आयुध का प्रयोग हुआ उस समय प्रकृति के शाश्वत तत्त्व भी कुंठित हो गये। सूरज जैसा ब्रह्माण्ड का शक्ति सनव को ही वाष्प बनाकर सांख गया। उस समय सड़कों, गलियों में चल-फिर रहे लोग, वाष्प की भाँति विलीन हो गए। आस-पास के पत्थरों पर, सड़कों पर, दीवारों पर उस त्रासदी के फलस्वरूप बनी मानव छायाएँ दुर्दान्त मानव के कुकृत्य की साक्षी हैं।
(ख) ‘काल-सूर्य के रथ के पहियों के ज्यों अरे टूट कर / बिखर गये हों / दसों दिशा में’
उत्तर- यह धूप अंतरिक्ष के स्थल से नहीं निकलकर धरती की छाती को फोड़कर निकली और अपनी प्रचण्डता को बिखरती हुई पूरे हिरोशिमा को जलाने लगी। बम विस्फोट से चारों ओर इतनी ज्वाला फैली कि समस्त जन-जीवन क्रूरता के गाल में समाहृत हो गया। प्रकृति प्रदत्त सूरज जब पूरब से उगता है तब एक निश्चित दिशा में निश्चित छाया बनती है लेकिन इस आण्विक बम रूपी सूर्य के उगने से समस्त जीवों की छायाएँ जहाँ-तहाँ पड़ी हुई मिलीं। जैसे लगा कि पूर्व दिशा का एक सूरज नहीं उगा है चारों ओर सूर्य ही सूर्य उगा हुआ है। कवि साक्ष्य के आधार पर कहते हैं कि जैसे लगता है महाकाल-रूपी सूर्य के रथ के पहिये टूटकर दसों दिशाओं के साथ शहर के केन्द्र में बिखर गये हैं। अर्थात् चारों ओर हाहाकार और कोहराम की ध्वनि गुजित हो रही है। आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका चित्र दिखाई पड़ रहे थे। विनाश का भीषणतम लीला का रूप मुंह बाये खड़ा था।
(ग) ‘मानव का रचा हुआ सूरज / मानव को भाप बनाकर सोख गया।
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश में जापान के प्रमुख शहर हिरोशिमा पर अमरीका द्वारा क्रूरता से जब आण्विक आयुध का प्रयोग किया गया तो हिरोशिमा तो क्या संपूर्ण विश्व की सभ्यता कराह उठी। उस भीषणतम आण्विक शक्ति के प्रयोग के बाद जो हिरोशिमा की स्थिति हुई उसी स्थिति का वर्णन कवि साक्ष्य के धरातल पर करते हैं। कवि कहते हैं कि अचानक एक प्रचण्ड ज्वाला से प्रज्वलित धरातल को फोड़ता हुआ आण्विक बम रूपी सूरज निकला। हिरोशिमा नामक शहर के खबूसरत चौक चौराहे पर प्रचण्ड ताप लिये हुए धूप निकली।
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कविता में प्रयुक्त निम्नांकित शब्दों का कारक स्पष्ट कीजिए-
क्षितिज – अधिकरण कारक
अंतरिक्ष – अपादान कारक
चौक – संबंधकारक
मिट्टी – अपादान कारक
बीचो-बीच – संबंध कारक
नगर – संबंध कारक
रथ – संबंध कारक
गच – अधिकरण
छाया – कृर्ता कारक
कविता में प्रयुक्त क्रियारूपी का चयन करते हुए उनकी काल रचना स्पष्ट कीजिए।
निकला – वर्तमान काल
पड़ी – भूतकाल
उगा था – भूतकाल
गये हां – भूतकाल
लिखी हैं – भूतकाल
लिखी हुई – भूतकाल
है – वर्तमान काल
कविता से तद्भव शब्द चुनिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
सूरज – सूरज निकल आया।
धूप – धूप निकल गया।
मिट्टी – मिट्टी गीली है।
पहिया – पहिया टूट गया।
पत्थर – पत्थर बड़ा है।
सड़क – सड़क चौड़ी है।
कविता से संज्ञा पद चुनें और उनकी प्रकार भी बताएँ।
सूरज – व्यक्तिवाचक
नगर – जातिवाचक
चौक – जातिवाचक
मानव – जातिवाचक
रथ – जातिवाचक
पहिया – जातिवाचक
अरे – जातिवाचक
पत्थर – जातिवाचक
सड़क – जातिवाचक
निम्नांकित के वचन परिवर्तित कीजिए-
छायाएँ – छाया
पड़ीं – पड़ी
उगा – उगे
हैं – है
पहियों – पहिया
अरे – अरें
पत्थरों – पत्थर
साखी – साखियाँ
Chapter :- 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै
Chapter :- 2 प्रेम अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं
Chapter :- 3 अति सूधो सनेह को मारग है, मो अंसुवानिहिं लै बरसौ
Chapter :- 4 स्वदेशी
Chapter :- 5 भारतमाता
Chapter :- 6 जनतंत्र का जन्म
Chapter :- 7 हिरोशिमा
Chapter :- 8 एक वृक्ष की हत्या
Chapter :- 9 हमारी नींद
Chapter :- 10 अक्षर-ज्ञान
Chapter :- 11 लौटकर आऊँग फिर
Chapter :- 12 मेरे बिना तुम प्रभु
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