Bihar Board Class 10th Hindi Solution पद्य Chapter 3 ‘अति सुधो सनेह को मारग है’ | 10th Hindi NCERT Solution | 10th hindi Ati Sudho Saneh Ko Marag Hai | BSEB 10th Hindi solution | BSEB Solution | 10 Hindi Bseb padykhand | Bihar Board Class 10th Hindi pady solution chapter 1| Ati Sudho Saneh Ko Marag Hai
Hello, SarkariCity के इस पोस्ट पर आपका स्वागत है । इस पोस्ट पर आपको Bihar Board Class 10th Hindi Book Solutions गोधूलि भाग 2 ka Chapter 3 ‘अति सुधो सनेह को मारग है’ पढ़ने को मिलेंगे । यहां आपको बिहार बोर्ड कक्षा 10 के हिन्दी पुस्तक गोधूलि भाग 2 के सभी Chapters (अध्याय) का वस्तुनिष्ठ(Objectives) एवं गैर-वस्तुनिष्ठ(Subjectives) प्रश्न-उत्तर पढ़ने को मिलेंगे । यदि आप ये सभी जानकारी अपने मोबाईल पर सबसे पहले और आसानी से पाना चाहते है तो कृपया ऊपर दिए गए हमारे Whatsap Channel तथा Telegram Channel से अवश्य जुड़ जाईए |

कवि परिचय
रीतियुगीन काव्य में घनानंद रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर कवि हैं । इनका जन्म 1689 ई० के आस-पास हुआ और 1739 ई० में वे नादिरशाह के सैनिकों द्वारा मारे गये । ये तत्कालीन मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले के यहां मीरमुंशी का काम करते थे। ये अच्छे गायक और श्रेष्ठ कवि थे । किवदंती है कि सुजान नामक नर्तकी को वे प्यार करते थे । विराग होने पर ये वृंदावन चले गये और वैष्णव होकर काव्य रचना करने लगे । सन् 1939 में जब नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया तब उसके सिपाहियों ने मथुरा और वृंदावन पर भी धावा बोला । बादशाह का मीरमुंशी जानकर घनानंद को भी उन्होंने पकड़ा और इनसे जर, जर, जर (तीन बार सोना, सोना, सोना) माँगा । घनानंद ने तीन मुट्ठी धूल उन्हें यह कहते हुए दी, ‘रज, रज, रज’ (धूल, धूल, धूल) । इस पर क्रुद्ध होकर सिपाहियों ने इनका वध कर दिया।
घनानंद ‘प्रेम की पीर’ के कवि हैं। उनकी कविताओं में प्रेम की पीड़ा, मस्ती और वियोग सबकुछ है । आचार्य शुक्ल के अनुसार, “प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जबाँदानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ है।” वियोग में सच्चा प्रेमी जो वेदना सहता है, उसके चित्त में जो विभिन्न तरंगे उठती हैं, उनका चित्रण घनानंद ने किया है। घनानंद वियोग दशा का चित्रण करते समय अलंकारों, रूढ़ियों का सहारा लेने नहीं दौड़ते, वे बाह्य चेष्टाओं पर भी कम ध्यान देते हैं । वे वेदना के ताप से मनोविकारों या वस्तुओं का नया आयाम, अर्थात् पहले न देखा गया उनका कोई नया रूप-पक्ष देख लेते हैं। इसे ही ध्यान में रखकर शुक्ल जी ने इन्हें ‘लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और प्रयोग वैचित्र्य’ का ऐसा कवि कहा जैसे कवि उनके पौने दो सौ वर्ष बाद छायावाद काल में प्रकट हुए। घनानंद की भाषा परिष्कृत और शुद्ध ब्रजभाषा है । इनके सवैया और घनाक्षरी अत्यंत प्रसिद्ध हैं । घनानंद के प्रमुख ग्रंथ हैं – ‘सुजानसागर’, ‘विरहलीला’, ‘रसकेलि बल्ली’ आदि।
कविता के साथ
कवि प्रेममार्ग को अति सूधों क्यों कहता है ? इस मार्ग की विशेषता क्या है ?
उत्तर- क्रवि प्रेम की भावना को अमृत के समान पवित्र एवं मधुर बताए हैं। ये कहते हैं कि प्रेम मार्ग पर चलना सरल है। इस पर चलने के लिए बहुत अधिक छल-कपट की आवश्यकता नहीं है। प्रेम पथ पर अग्रसर होने के लिए अत्यधिक सोच-विचार नहीं करना पड़ता और न ही किसी बुद्धि बल की आवश्यकता होती है। इसमें भक्त की भावना प्रधान होती है। प्रेम की भावना से आसानी से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में सर्वस्व देने की बात होती है लेने की अपेक्षा लेश मात्र भी नहीं होता। यह मार्ग टेढ़ापन से मुक्त है। प्रेम में प्रेमी बेझिझक निःसंकोच भाव से सरलता से; सहजता से प्रेम करने वाले से एकाकार कर लेता है। इसमें दो मिलकर एक हो जाते हैं। दो भिन्न अस्तित्व नहीं बल्कि एक पहचान स्थापित हो जाती है।
‘मन लेह पै देह छटाँक नहीं’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- मन’ माप-तौल की दृष्टि से अधिक वजन का सूचक जबकि ‘छटाँक’ बहुत ही अल्पता का सूचक है। कवि कहते हैं कि प्रेमी में देने की भावना होती है लेने की नहीं। प्रेम में प्रेमी अपने इष्ट को सर्वस्व न्योछावर करके अपने को धन्य मानते हैं। इसमें संपूर्ण समर्पण की भावना उजागर किया गया है। प्रेम में बदले में लेने की आशा बिल्कुल नहीं होती।
द्वितीय छंद किसे संबोधित हैं और क्यों?
उत्तर- द्वितीय छंद बादल को संबोधित है। इसमें मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना की अभिव्यक्ति है। मेघं का वर्णन इसलिए किया गया है कि मेघ विरह-वेदना में अश्रुधारा प्रवाहित करने का जीवंत उदाहरण है। प्रेमी अपनी प्रेमाश्रुओं की अविरल धारा के माध्यम से प्रेम प्रकट करता है। इसमें निश्छलता एवं स्वार्थहीनता होता है। बादल भी उदारतावश दूसरे के परोपकार के लिए अमृत रूपी जल वर्षा करता है। प्रेमी के हृदय रूपी सागर में प्रेम रूपी अथाह जल होता है जिसे इष्ट के निकट पहुँचाने की आवश्यकता है। बादल को कहा जा रहा है कि तुम परोपकारी हो। जिस प्रकार सागर के जल को अपने माध्यम से जीवनदायनी जल के रूप में वर्षा करते हो उसी प्रकार मेरे प्रेमाश्रुओं को भी मेरी इष्ट के लिए, उसके जीवन के लिए प्रेम सुधा रस के रूप में बरसाओ। विरह-वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को मेघ के माध्यम से अत्यंत कलात्मक । रूप में अभिव्यक्त किया गया है।
परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- परहित के लिए ही देह, बादल धारण करता है। बादल जल की वर्षा करके सभी प्राणियों को जीवन देता है। प्राणियों में सुख-चैन स्थापित करता है। उसकी वर्षा उसके विरह के आँसू के प्रतीक स्वरूप हैं। उसके विरह के आँसू, अमृत की वर्षा कर जीवनदाता हो जाता है। बादल शरीर धारण करके सागर के जल को अमृत बनाकर दूसरे के लिए एक-एक बूंद समर्पित कर देता है। अपने लिए कुछ भी नहीं रखता। वह सर्वस्व न्योछावर कर देता है। बदले में कुछ । भी नहीं लेता है। निःस्वार्थ भाव से वर्षा करता है। उसका देह केवल परोपकार के लिए निर्मित हुआ है।
कवि कहाँ अपने आसुओं को पहुंचाना चाहता है और क्यों ?
उत्तर- कवि अपने प्रेयसी सुजान के लिए विरह-वेदना को प्रकट करते हुए बादल से अपने प्रेमाश्रुओं को पहुंचाने के लिए कहता है। वह अपने आँसुओं को सुजान के आँगन में पहुंचाना चाहता है। क्योंकि वह उसकी याद में व्यथित है और अपनी व्यथा की आँसुओं से प्रेयसी को भिगो देना चाहता है। वह उसके निकट आँसुओं को पहुंचाकर अपने प्रेम की आस्था को शाश्वत रखना चाहता है।
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व्याख्या करें:
(क) यहाँ एक ते दूसरौ ऑक नहीं
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य पुस्तक के कवि घनानंद द्वारा रचित ‘अति सधो सनेह को मारग है” पाठ से उद्धृत है। इसके माध्यम से कवि प्रेमी और प्रेयसी का एकाकार करते हुए कहते हैं कि प्रेम में दो की पहचान अलग-अलग नहीं रहती, बल्कि दोनों मिलकर एक रूप में स्थित हो जाते हैं। प्रेमी निश्चल भाव से सर्वस्व समर्पण की भावना रखता है और तुलनात्मक अपेक्षा नहीं करता है। मात्र देता है, बदले में कुछ लेने की आशा नहीं करता है।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करते हैं कि हे सुजान सुनो! – यहाँ अर्थात् मेरे प्रेम में तुम्हारे सिवा कोई दूसरा चिह्न नहीं है। मेरे हृदय में मात्र तुम्हारा ही चित्र अंकित है।
(ख) कछु मेरियो पीर हिएं परसौ
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के पाठ्य-पुस्तक से कवि घनानंद-रचित “मो अंसुवानिहिं लै बरसौ” पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि परोपकारी बादल से निवेदन किये हैं कि मेरे हृदय की पीड़ा को भी कभी स्पर्श किया जाय और मेरे हार्दिक विरह-वेदना को प्रकट करने वाली आंसुओं को अपने माध्यम से मेरे प्रेयसी सुजान के आँगन तक वर्षा के रूप में पहुंचाया जाय।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कहते हैं कि हे घन ! तुम जीवनदायक हो, परोपकारी हो, दूसरे के हित के लिए देह धारण करने वाले हो। सागर के जल को अमृत में परिवर्तित करके वर्षा के रूप , में कल्याण करते हो। कभी मेरे लिए भी कुछ करो। मेरे लिए इतना जरूर करो कि मेरे हृदय को स्पर्श करो। मेरे दुःख दर्द को समझो, जानो और मेरे ऊपर दया की दृष्टि रखते हुए अपने परोपकारी स्वभाववश मेरे हृदय की व्यथा को अपने माध्यम से सुजान तक पहुँचा दो। मेरे प्रेमाश्रुओं को लेकर । सुजान की आँगन में प्रेम की वर्षा कर दो।
भाषा की बात
निम्नांकित शब्द कविता में संज्ञा अथवा विशेषण के रूप में प्रयुक्त है। इनके प्रकार बताएँ-
- सूधो – गुणवाचक विशेषण
- मारग – जातिवाचक संज्ञा
- नेक – गुणवाचक विशेषण
- बॉक – भाववाचक संज्ञा
- कपटी – गुणवाचक विशेषण
- निसॉक – गुणवाचक विशेषण
- पाटी – भाववाचक संज्ञा जथारथ
- जथरथ – भाववाचक संज्ञा
- जीवनदायक – गुणवाचक विशेषण
- पीर – भाववाचक संज्ञा
- हियें – जातिवाचक संज्ञा
- बिसासी – गुणवाचक विशेषण
कविता में प्रयुक्त अव्यय पदों का चयन करें और उनका अर्थ भी बताएं।
- अति – बहुत
- जहाँ – स्थान विशेष
- नहीं – न
- तति – छोड़कर
- यहाँ – स्थानविशेष
- नेक – तनिक भी
निम्नलिखित के कारक स्पष्ट करें-
- सनेह को मार्ग – संबंध कारक
- प्यारे सुजान – संबंध कारक
- मारया पीर – अधिकारण कारक
- हियें – अधिकरण कारक
- आँसुवानिहि – करण कारक
- मों – कर्म कारक
शब्दार्थ
- नेकु : तनिक भी
- सयानप : चतुराई
- बाँक : टेढ़ापन
- आपन पौ : अहंकार, अभिमान
- झझक : झिझकते हैं ।
- निसांक : शंकामुक्त
- आक : अंक, चिह्न
- परजन्य : बादल
- सुधा : अमृत
- सरसी : रस बरसाओ
- परसौ : स्पर्श करो
- बिमासी : विश्वासी
- मन : माप-तौल का एक पैमाना
- छटाँक : माप-तौल का एक छोटा पैमाना
BSEB Class 10th Hindi काव्य-खंड (पद्य) Solutions
Chapter :- 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै
Chapter :- 2 प्रेम अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं
Chapter :- 3 अति सूधो सनेह को मारग है, मो अंसुवानिहिं लै बरसौ
Chapter :- 4 स्वदेशी
Chapter :- 5 भारतमाता
Chapter :- 6 जनतंत्र का जन्म
Chapter :- 7 हिरोशिमा
Chapter :- 8 एक वृक्ष की हत्या
Chapter :- 9 हमारी नींद
Chapter :- 10 अक्षर-ज्ञान
Chapter :- 11 लौटकर आऊँग फिर
Chapter :- 12 मेरे बिना तुम प्रभु
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