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Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 4 छप्पय
कवि परिचय
जीवनी – कवि नाभादास का जन्म संभवतः 1570 ई० में दक्षिण भारत में हुआ था। इनके पिता बचपन में ही चल बसे और इलाके में अकाल पड़ गया, जिस कारण वे अपनी माताजी के साथ राजस्थान में रहने आ गये । दुर्भाग्यवश कुछ समय पश्चात् इन्हें माता का विछोह भी सहना पड़ा। तत्पश्चात ये भगवान की भक्ति में लीन रहने लग गये और अपने गुरु और प्रतिपालक की देखरेख में स्वाध्याय और सत्संग के माध्यम से ज्ञानार्जन करने लग गये । कवि नाभादास स्वामी रामानंद शिष्य परम्परा के स्वामी अग्रदासजी के शिष्य थे । वे वैष्णवों के निश्चित सम्प्रदाय में दीक्षित थे। जबकि अधिकांश विद्वानों के अनुसार कवि जन्म से दलित वर्ग के रहनेवाले थे किन्तु अपने गुण, कर्म, स्वभाव और ज्ञान से एक विरक्त जीवन जीने वाल सगुणोपासक रामभक्त थे।
रचनाएँ – कवि नाभादास की अविचल भगवद्भक्ति, भक्त चरित्र और भक्तों की स्मृतियाँ का अनुभव ही सर्वस्व है। इनकी मुख्य रचनाएँ भक्तमाल, अष्टयाम (ब्रजभाषा गद्य) अष्टयाम (‘रामचरित’ की दोहा शैली में), रामचरित संबंधी प्रकीर्ण पदों का संग्रह है।
साहित्यिक विशेषताएँ – कवि नाभादास गोस्वामी तुलसीदासजी के समकालीन सगुणोपासक रामभक्त कवि थे जिनमें मर्यादा के स्थान पर माधुर्यता अधिक मिलती है। इनकी सोच और मान्यताओं में किसी प्रकार की संकीर्णता नहीं थी, ये पक्षपात, दुराग्रह, कट्टरता से मुक्त, एक भावुक, सहृदय, विवेक- सम्पन्न सच्चे भक्त कवि हैं। कवि ने अपनी अभिरुचि, ज्ञान, विवेक, भाव-प्रसार आदि के द्वारा प्रतिभा का प्रकर्ष उपस्थित किया है।
कवि की रचना ‘छप्पय’ ‘कबीर’ और ‘सूर’ पर लिखे गये छ: पंक्तियों वाले गेय पद्य हैं। कवि द्वारा रचित ‘छप्पय’ भक्तभाल में संकलित 316 छप्पयों और 200 भक्तों का चरित्र वर्णित ग्रंथ से उद्धृत है। ‘छप्पय’ एक छंद है जो छः पक्तियों का गेय पद होता है। ये ‘छप्पय’ नाभादास की तलस्पर्शिणी अंतर्दृष्टि, मर्मग्राहणी प्रज्ञा और सारग्रही चिंतनशैली के विशेष प्रमाण हैं।
कविता का सारांश
प्रश्न 1. ‘छप्पय’ शीर्षक पदों का सारांश अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर – ‘छप्पय’ शीर्षक पद कबीरदास एवं सूरदास पर लिखे गये छप्पय ‘भक्तमाल’ से संकलित है । छप्पय एक छंद है जो छः पंक्तियों का गेय पद होता है। ये छप्पय नाभादास की अन्तर्दृष्टि, मर्मग्राहणी प्रज्ञा, सारग्रही चिंतन और विदग्ध भाषा-शैली के नमूने हैं ।
प्रस्तुत छप्पय में वैष्णव भक्ति की नितांत भिन्न दो शाखाओं के इन महान भक्त कवियों पर लिखे गये छंद हैं। इसमें इन कवियों से सम्बंधित अबतक के संपूर्ण अध्ययन – विवेचन के सार-सूत्र स्पष्ट अंकित हैं । इन पंक्तियों में कवि की दूरदृष्टि दिखायी पड़ती है, जो विस्मयकारी और प्रीतिकर है । ऐसा प्रतीत है कि आगे की सदियों में इन कवियों पर अध्ययन – विवेचन की रूपरेखा जैसे तय कर दी गई हो ।
पाठ के प्रथम छप्पय में नाभादास ने आलोचनात्मक शैली में कबीर के प्रति अपने भाव व्यक्त किये हैं |
कवि के अनुसार कबीर ने भक्ति विमुख तथाकथित धर्मों की धज्जी उड़ा दी है। उन्होंने वास्तविक धर्म को स्पष्ट करते हुए योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन के महत्त्व का बार-बार प्रतिपादन किया है। उन्होंने अपनी सबदी साखियों और रमैनी में क्या हिन्दू और क्या तुर्क सबके प्रति आदर भाव व्यक्त किया है। कबीर के वचनों में पक्षपात नहीं है। उनमें लोक मंगल की भावना है । कबीर मुँह देखी बात नहीं करते। उन्होंने वर्णाश्रम के पोषक षट-दर्शनों की दुर्बलताओं को तार-तार करके दिखा दिया है। ।
दूसरे छप्पय में कवि नाभादास ने सूरदासजी का कृष्ण के प्रति भक्तिभाव प्रकट किया है। कवि का कहना है कि सूर की कविता सुनकर कौन ऐसा कवि है जो उनके साथ हामी नहीं भरेगा। सूर की कविता में श्रीकृष्ण की लीला का वर्णन है। उनके जन्म से लेकर स्वर्गधाम तक की लीलाओं का मुक्त गुणगान किया गया है। उनकी कविता में क्या नहीं है ? गुण – माधुरी और रूप- माधुरी सब कुछ भरी हुई है। सूर की दृष्टि दिव्य थी । वही दिव्यता उनकी कविताओं में भी प्रतिबिंबित है। गोप-गोपियों के संवाद में अद्भुत प्रीति का निर्वाह दिखायी पड़ता है। शिल्प की दृष्टि से उक्ति-वैचित्र्य, वर्ण्य – वैचित्र्य और अनुप्रासों की अनुपम छटा सर्वत्र दिखायी पड़ती है।
पदों का भावार्थ
कबीर :
भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए ।
योग, यज्ञ, व्रत, दान, भजन बिनु तुच्छ दिखाए ।
हिन्दू, तुरक, प्रमान रमैनी, सबदी, साखी ।
पक्षपात नहिं बचन सबहिके हितकी भाखी ॥
आरूढ़ दशा है जगत पै, मुख देखि नाहिन मनी ।
कबीर कानि राखि नहिं, वर्णाश्रम षट् दर्शनी ॥
– भक्तकवि नाभादास
भावार्थ – कबीर ने भक्ति विमुख तथाकथित धर्मों की धज्जी उड़ा दी है। उन्होंने वास्तविक धर्म को स्पष्ट करते हुए योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन के महत्त्व का बार-बार प्रतिपादन किया है। उन्होंने अपनी सबदी साखियों और रमैनी में क्या हिन्दू और क्या तु सबके प्रति आदर भाव व्यक्त किया है। कबीर के वचनों में पक्षपात नहीं है। उनमें लोक मंगल की भावना है । कबीर मुँह देखी बात नहीं करते। उन्होंने वर्णाश्रम के पोषक षट-दर्शनों की दुर्बलताओं को तार-तार करके दिखला दिया है ।
सूरदास :
उक्ति चौज, अनुप्रास, वरन, अस्थिति, अतिभारी ।
वचन प्रीति, निंर्वही, अर्थ अद्भुत तुकधारी ॥
प्रतिबिंवित दिवि दृष्टि हृदय हरि-लीला भासी ।
जनम कर्म गुन रूप सबहि रसना परकासी ॥
विमल बुद्धि होत सुकी, जो वह गुन श्रवननि धेरै ।
सूर कवित सुनि कौन कवि, जो नहि शिरचालन करै ॥
– संत नाभादास जी
भावार्थ -सूर की कविता सुनकर कौन ऐसा कवि है जो उनके साथ हामी नहीं भरे । सुर की कविता में श्रीकृष्ण की लीला का वर्णन है । उनके जन्म से लेकर स्वर्ग – धाम तक की लीलाओं का मुक्त गुणगान किया गया है। उनकी कविता में क्या नहीं है ? गुण – माधुरी और रूप-माधुरी सब कुछ भरी हुई है । सूर की दृष्टि दिव्य थी । वही दिव्यता उनकी कविताओं में भी प्रतिबिंबित है। गोप-गोपियों के संवाद में अद्भुत प्रीति का निर्वाह दिखायी पड़ती है। शिल्प की दृष्टि उक्ति-वैचित्र्य, वर्ण्यवैचित्र्य और अनुप्रासों की अनुपम छटा सर्वत्र दिखायी पड़ता है।
Class 12 Hindi chapter 4 छप्पय
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
1. इनमें नाभादास की कौन-सी रचना है ?
उत्तर – छप्पय
2. नाभादास का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर – 1570 ई० (अनुमानित)
3. नाभादास किसके शिष्य थे ?
उत्तर – अग्रदास
4. कबीरदास किस शाखा के कवि हैं ?
उत्तर – निर्गुण शाखा
5. नाभादास जी किस धारा के संत थे ?
उत्तर – बैष्णव- दर्शन के
6. नाभादास जी किस समाज के विद्वान हैं ?
उत्तर – दलित वर्ग
7. नाभादास जी कैसे कवि थे ?
उत्तर – सगुणोपासक
8. कवि नाभादास जी किसके समकालीन थे ?
उत्तर – तुलसीदास
9. ‘भक्तमाल’ किनकी रचना है ?
उत्तर – नामदास की
10. नाभादास जी कैसे संत थे ?
उत्तर – विरक्त जीवन जीते हुए
11. ‘भक्तमाल’ किस प्रकार की रचना है ?
उत्तर – भक्त चरित्रों की माला
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘भक्तमाल’ के रचयिता नाभादास जी हैं, इस काव्य कृति में किन-किन कवियों की विशेषताओं की चर्चा है ?
उत्तर – ‘भक्तमाल’ भक्तकवि नाभादास के शील, सोच और मानस का निर्मल दर्पण है । इस काव्य कृति में संकलित दो छप्पय में कबीर और सूर के जीवन-चरित का वर्णन है।
प्रश्न 2. नाभादास जी किस परंपरा के कवि थे ?
उत्तर – नाभादास जी सगुणोपासक रामभक्त कवि थे । इनकी भक्ति में मर्यादा के स्थान पर माधुर्य का पुट था । वे तुलसीदास के समकालीन थे । वे रामानंद की ही शिष्य परंपरा के संत कृष्ण दास पयहारी और भक्त कवि अग्रदास के शिष्य थे । इस प्रकार वे वैष्णवों के एक निश्चित संप्रदाय में दीक्षित थे ।
प्रश्न 3. ‘भक्तमाल’ की रचना किस छंद में हुई है ?
उत्तर – संपूर्ण ‘भक्तमाल’ की रचना ‘छप्पय’ छंद में हुई है। छप्पय एक छंद होता है जो छह पंक्तियों का ‘गेय पद’ होता है ।
प्रश्न 4. ‘भक्तमाल’ की साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालें:-
उत्तर – भकतमाल जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, भक्त चरित्रों की माला है। उसमें नाभादास के पूर्ववर्ती वैष्णव भक्तों के चरित वर्णित हैं । भक्तों के चयन में धर्म-संप्रदाय, जाति – लिंग और निर्गुण – सगुण आदि के विभेदकारी आग्रहों को महत्व न देते हुए केवल वैष्णव भक्तों की महिमा ( गाथा) को ही ध्यान में रखा गया है। इस कृति में कवि के विशाल अध्ययन, सूक्ष्म पर्यवेक्षण, प्रदीर्घ मनन और अंतरंग अनुशीलन छिपे हुए ।
प्रश्न 5. “भक्तमाल’ मध्ययुग के वैष्णव आन्दोलन की रूपरेखा समझने के लिए सबसे अधिक प्रामाणिक और महत्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करता है” इस उक्ति का सही विवेचन करें ।
उत्तर – ‘भक्तमाल’ में वैष्णव भक्त चरित्रों का जीवन वृत्त है। भक्तों के चयन में धर्म-संप्रदाय-जाति-लिंग और निर्गुण- सगुण आदि के विभेदकारी आग्रहों को महत्व नहीं दिया गया है। केवल वैष्णव मत के भक्तों के जीवन सेसंबंधित विवरण का ध्यान रखा गया है। इस कृति में नाभादास की आलोचनात्मक प्रतिभा के भी दर्शन होते हैं। नाभादास एक क्रांतिकारी काव्य शास्त्रीय चिंतक थे । मर्यादा की जगह माधुर्य भाव का दर्शन भक्तमाल में स्पष्ट रूप से होता है ।
प्रश्न 6. ‘भक्तमाल’ में कितने भक्तों का चरित्र वर्णन एवं कितने ‘छप्पय’ का प्रयोग हुआ है ?
उत्तर- ‘ भक्तमाल’ में दो सौ भक्तों के जीवन चरित्र संकलित हैं जो हिन्दी साहित्य की अनमोल निधि है । तीन सौ सोलह छप्पय में इन भक्तों का जीवन-वृत संकलित है ।
प्रश्न 7. “हिन्दू, तुरक, प्रमान, रमैनी, सबदी, साखी ।” काव्य पंक्ति पर प्रकाश डालें ।
उत्तर- इन पंक्तियों में महाकवि नाभादास जी ने कबीर के क्रांतिकारी एवं न्याय संगत विचार का समर्थन किया है। नाभादास जी कहते हैं कि कबीर दास ने हिन्दू और तुरक के संबंध में किसी भी प्रकार के भेदभाव या पक्षपात पूर्ण चर्चा नहीं की है। उनके सबदी, साखियाँ और रमैनी में क्या हिन्दू और क्या तुर्क सबके प्रति आदरभाव मिलता है ।
व्याख्याएँ
प्रश्न 1.
आरूढ़ दशा है जगत पै, मुख देखी नाहिन भनी ।
कबीर कानि राखी नहिं, वर्णाश्रम षट दर्शनी ॥
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगन्त भाग- II के नाभादास के ‘छप्पय’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में नाभादास जी कबीर के तल्ख विचारों, पाखंड विरोधी बातों का समर्थन करते हुए उनकी काव्य – प्रतिभा एवं निर्मल व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हैं। यह प्रसंग कबीर की कथनी-करनी से संबंधित है ।
प्रस्तुत पंक्तियों में नाभादास जी कहते हैं कि कबीर की कथनी और करनी में कहीं अंतर दिखाई नहीं पड़ता। वे यथार्थ, कटु यथार्थ की चर्चा करने में तनिक भी संकोच नहीं करते ।
कबीर की वाणी के बारे में नाभादास जी कहते हैं कि दुनिया की यह रीति चली आ रही है कि लोग सुनी-सुनाई बातों पर झट विश्वास कर लेते हैं लेकिन आँखों देखी बातों पर विश्वास नहीं करते जबकि कबीर दास जी इसके विपरीत आचरण करते हैं। कबीर कहते हैं कि मैं मुँह देखी बातें नहीं करता बल्कि प्रत्यक्ष देखी हुई बातों को ही कहता हूँ ।
कबीर की दृष्टि में वर्णाश्रम व्यवस्था का पोषक धर्म था षड्दर्शन । कबीर ने षड्दर्शन की बातों पर ध्यान नहीं दिया यानि कानों से सुनकर ग्रहण नहीं किया बल्कि उसके द्वारा पोषित वर्णाश्रम धर्म की बुराइयों की कटु निंदा की।
उक्त पंक्तियों में कबीर ने सत्य का पक्ष लिया है। यथार्थवादी बातों का समर्थन किया है। पाखंडपूर्ण एवं अतिशयोक्ति पूर्ण बातों पर ध्यान नहीं दिया ।
प्रश्न 2.
प्रतिबिंबित दिवि दृष्टि हृदय हरि लीला भासी ।
जनम, कर्म गुन रूप सबहि रसना परकासी ॥
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगन्त भाग-II के नाभादास के ‘छप्पय’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में नाभादास जी ने सूरदास जी की काव्य प्रतिभा एवं कृष्ण के लिए किए गए गुणगान का वर्णन किया है।
प्रस्तुत पंक्तियों में नाभादास जी कहते हैं कि सूरदास की दृष्टि दिव्य थी । वही दिव्यता का प्रतिबिंब उनकी कविताओं में दिखाई पड़ता है। सूरदास जी के हृदय में सदैव हरि लीला का आभास होता है । यानि सूरदास जी सदैव कृष्ण भक्ति में डूबे रहते हैं। सूरदास जी ने कृष्ण के जन्म, कर्म, गुण, रूप, सबको अपनी जिह्वा से प्रकाशित किया है यानि गुणगान किया है। इस प्रकार सूरदास महान कवि हैं। वे सबके लिए प्रणम्य हैं ।
सूरदास जी ने कृष्ण चरित का अपने काव्य में वर्णन कर सारे लोकमानस को उपकृत किया है। वे सदैव कृष्ण लीला या कृष्ण चरित का गुणगान करते दीखते हैं।
पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. नाभादास ने छप्पय में कबीर की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ? उनकी क्रम से सूची बनाइए ।
उत्तर- अपने ‘छप्पन’ कविता में नाभादासजी ने कबीर की जिन-जिन विशेषताओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया है – वे निम्नांकित हैं
कबीर का व्यक्तित्व अक्खड़ था । उन्होंने भक्ति विमुख तथा कथित धर्मों की खूब धज्जी उड़ा दी है।
कबीर ने धर्म की स्पष्ट व्याख्या की है। उन्होंने योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन के महत्व का सटीक वर्णन किया है। उन्होंने अपनी काव्य कृतियों यानी साखी, शब्द, रमैनी में हिन्दू-तुर्क के बीच समन्वय और एकता का बीज बोया है ।
कबीर पक्षपात नहीं करते हैं। वे मुँह देखी बात भी नहीं करते हैं। उन्होंने वर्णाश्रम व्यवस्था की कुरीतियों की ओर सबका ध्यान खींचा है। उन्होंने षट्दर्शन की दुर्बलताओं की पुरजोर आलोचना की है। उपर्युक्त विवेचना के आधार पर कबीर का व्यक्तित्व प्रखर स्पष्टवादी एवं क्रांतिकारी कवि का है। इन्होंने अपने काव्य-सृजन कर्म द्वारा सामाजिक कुरीतियों को करने और समन्वय संस्कृति की रक्षा करने में महती भूमिका निभायी है ।
प्रश्न 2. ‘मुख देखी नाहिन भनी’ का क्या अर्थ है ? कबीर पर यह कैसे लागू होता है ?
उत्तर – प्रस्तुत पद्यांश में कबीर के अक्खड़ व्यक्त्वि पर प्रकाश डाला गया है । कबीर ऐसे प्रखर चेतना संपन्न कवि हैं जिन्होंने कभी भी मुँह देखी बातें नहीं की। उन्हें सच को सच कहने में तनिक भी संकोच नहीं था । राज सत्ता हो या समाज की जनता, पंडित हों या मुल्ला-मौलवी सबकी बखिया उधेड़ने में उन्होंने तनिक भी कोताही नहीं की। उन्होंने इसीलिए अपनी अक्खड़ता, स्पष्टवादिता, पक्षपातरहित कथन द्वारा लोकमंगल के लिए अथक संघर्ष किया।
प्रश्न 3. सूर के काव्य की किन विशेषताओं का उल्लेख कवि ने किया है ?
उत्तर- सूरदासजी की कविता में श्रीकृष्ण लीला का वर्णन है। उन्होंने कृष्ण के जीवन से लेकर स्वर्गधाम तक की लीलाओं का सम्यक् वर्णन किया है। उनकी कविता में क्या नहीं है यानी रूप माधुरी और गुण माधुरी सबका समन्वय है। सूर की काव्य दृष्टि प्रशंसनीय है। अपनी दिव्यता का सम्यक परिचय उन्होंने अपनी कविता में दिया है। गोप-गोपियों के बीच के गणित इन्होंने अपनी कविताओं द्वारा जनमानस को कराया है ।
कृष्ण की बाललीला हो या रासलीला सर्वत्र सूरदास की काव्य प्रतिभा दृष्टिगत होती है। सूरदास वात्सल्य औरंगार के बेजोड़ कवि हैं। इनकी कविताओं में प्रेम, त्याग और समर्पण का चित्रण सांगोपांग हुआ है। इस प्रकार सूरदास की कविताएँ अत्यंत ही मनोमुग्धकारी है उनकी शिल्पगत विशेषताएँ भी विवेचनीय है। कथन को प्रस्तुत करने की कलाकारी कोई सूरदासजी से सीखे। सूरदास भारतीय वाङ्गमय के महान कवि हैं ।
प्रश्न 4. अर्थ स्पष्ट करें
( क ) सूर कवित्त सुनि कौन कवि, जो नहीं शिरचालन करै |
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादासजी द्वारा रचित कविता पाठ से ली गयी हैं इन पंक्ति में नाभादासजी ने महकवि सूरदास जी की काव्य प्रतिभा की प्रशंसा की है। नाभादासजी क हैं कि सूरदासजी की कविता सुनकर कौन ऐसा कवि है जो अपनी प्रसन्नता नहीं जाहिर करे। रासलील यानि भाव-विभोर हो सिर न हिलाने लगे । सूर की कविता में लालित्य, वात्सल्य, का सांगोपांग वर्णन हुआ है जिसका रसास्वादन कर रसिक जन भाव विभोर हो जाते हैं । झ प्रकार नाभादासजी ने उनके सफल कवि होने का ठोस उदाहरण दिया है।
( ख ) भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए ।
उत्तर–प्रस्तुत पंक्तियाँ महाकवि नाभादासजी द्वारा विरचित काव्य कृति भक्तमाल से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में नाभादासजी ने महाकवि कबीर के काव्य-प्रतीक की चर्चा की है। कबीर की अक्खड़ता स्पष्टवादिता, पक्षपातरहित कथन की ओर कवि ने जनमानस का ध्यान आकृष्ट किया है ।
उपरोक्त पंक्तियों में कवि का कथन है कि कबीर ने भक्ति विमुख तथाकथित धर्मों की धज्जी उड़ा दी है। उन्होंने धर्म की सही और लोकमंगलकारी व्याख्या की है। पाखंड का पर्दाफाश किया है | इस प्रकार कबीर अक्खड़ कवि थे ।
प्रश्न 5. ‘पक्षपात नहीं वचन सबहिके हित की भाखी ।’ इस पंक्ति में कबीर के किस गुण का परिचय दिया गया है ?
उत्तर–प्रस्तुत पंक्तियाँ महाकवि नाभादासजी द्वारा विरचित ‘भक्तभाल’ काव्य कृति से कि ली गयी हैं। इन पंक्तियों में भक्त कवि ने महाकवि कबीर के व्यक्तित्व का स्पष्ट चित्रण किय, वि है । कबीर के जीवन की विशेषताओं की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है ।
क्या हिन्दू और क्या तुरक, सभी के प्रति कबीर ने आदर भाव प्रदर्शित किया और मानवीय पक्षों के उद्घाटन में महारत हासिल की। कबीर के वचनों में पक्षपात नहीं है । वे सबके हित की बातें सोचते हैं और वैसा ही आचरण करने के लिए सबको कविता द्वारा जगाते हैं। सत्य को सत्य कहने में तनिक झिझक नहीं, भय नहीं, लोभ नहीं। इस प्रकार क्रांतिकारी कबीर का जीवन-दर्शन सबके लिए अनुकरणीय और वंदनीय है। लोकमंगल की भावना जगानेवाले इस तेजस्वी कवि की जितनी प्रशंसा की जाय, थोड़ी ही होगी ।
कबीर क्रांतिकारी कवि, प्रखर चिंतक तथा महान दार्शनिक थे ।
प्रश्न 6. कविता में तुक का क्या महत्त्व है ? इनका छप्पयों के संदर्भ में स्पष्ट करें
उत्तर – कविता में ‘तुक’ का अर्थ अन्तिम वर्णों की आवृत्ति है । कविता के चरणों के अंत में वर्णों की आवृत्ति को ‘तुक’ कहते हैं । साधारणतः पाँच मात्राओं की ‘तुक’ उत्तम मानी गयी है ।
संस्कृत छंदों में ‘तुक’ का महत्व नहीं था, किन्तु हिन्दी में तुक ही छन्द का प्राण है
‘छप्पय’ – यह मात्रिक विषम और संयुक्त छंद है। इस छंद के छह चरण होते हैं इसलिए इसे ‘छप्पय’ कहते हैं ।
प्रथम चार चरण रोला के और शेष दो चरण उल्लाला के, प्रथम द्वितीय और तृतीय चतुर्थ के योग होते हैं। छप्पय में उल्लाला के सम-विषम (प्रथम-द्वितीय और तृतीय-चतुर्थ) चरणों का यह योग 15 + 13 = 28 मात्राओं वाला ही अधिक प्रचलित है। जैसे-
भगति विमुख जे धर्म सु सब अधरम करि गाए ।
योग, यज्ञ, व्रत, दान, भजन बिनु, तुच्छ, दिखाओ ।
प्रश्न 7. ‘कबीर कानि राखी नहिं’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – कबीरदास महान क्रांतिकारी कवि थे। उन्होंने सदैव पाखंड का विरोध किया। भारतीय षड्दर्शन और वर्णाश्रम की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। वर्णाश्रम व्यवस्था का पोषक धर्म था – षडदर्शन । भारत के प्रसिद्ध छः दर्शन हिन्दुओं के लिए अनिवार्य थे । इनकी ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कबीर ने षड्दर्शन की बुराइयों की तीखी आलोचना की और उनके विचारों की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया यानी कानों से सुनकर ग्रहण नहीं किया बल्कि उसके पाखंड की धज्जी-धज्जी उड़ा दी । कबीर ने जनमानस को भी षड़दर्शन द्वारा पोषित वर्णाश्रम की बुराइयों की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया और उसके विचारों को मानने का प्रबल विरोध किया ।
प्रश्न 8. कबीर ने भक्ति को कितना महत्व दिया ?
उत्तर-कबीर ने अपनी सबदी, साख और रमैनी द्वारा धर्म की सटीक व्याख्या प्रस्तुत की। लोक जगत में परिव्याप्त पाखंड, व्यभिचार, मूर्तिपूजा, जाति-पाँति और छुआछूत का प्रबल विरोध किया। उन्होंने योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन की सही व्याख्या कर उसके समक्ष उपस्थित किया ।
कबीर ने भक्ति में पाखंडवादी विचारों की जमकर खिल्लियाँ उड़ायी और मानव-मानव के बीच समन्वयवादी संस्कृति की स्थापना की। लोगों के बीच भक्ति के सही स्वरूप की व्याख्या की । भक्ति की पवित्र धारा को बहाने, उसे अनवरत गतिमय रहने में कबीर ने अपने प्रखर विचारों से उसे बल दिया। उन्होंने विधर्मियों की आलोचना की । भक्ति विमुख लोगों द्वारा की परिभाषा गढ़ने की तीव्र आलोचना की । भक्ति के सत्य स्वरूप का उन्होंने उद्घाटन और जन-जन के बीच एकता, भाईचारा प्रेम की अजस्र गंगा बहायी । वे निर्गुण के तेजस्वी कवि थे। उन्होंने ईश्वर के निर्गुण स्वरूप का चित्रण किया । उसका सही व्याख्या की। सत्य स्वरूप का सबको दर्शन कराया ।
भाषा की बात
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखें :
शब्द | विपरीतार्थक शब्द |
तुच्छ | उत्तम, भला |
हित | अहित |
पक्षपात | विरोध, तटस्थता, अनासक्त |
गुण | अवगुण |
उक्ति | अनुक्ति, अकथन |
प्रश्न 2. वाक्य प्रयोग द्वारा इन शब्दों का लिंग निर्णय करें ।
उत्तर –
वचन ( पु० ) – महापुरुषों के आप्त वचन हितकारी होते हैं ।
मुख्य: – गांधीजी का मुख्य कार्य हरिजन सेवा था ।
यज्ञ – राजा जनक के धनुष यज्ञ में अनेक भूप आए थे ।
अर्थ – कविताओं का अर्थ सरल तथा सहज है।
कवि – वे एक अच्छे कवि हैं ।
बुद्धि – न जाने क्यों उनकी बुद्धि मारी गयी ।
प्रश्न 3. विमल में ‘वि’ उपसर्ग है । इस उपसर्ग से पाँच अन्य शब्द बनाएँ:
उत्तर –
वि + कारी = विकारी
वि + मुक्त = विमुक्त
वि + नाश = विनाश
वि + शाल = विशाल
वि + प्लव = विप्लव
वि + दग्ध = विदग्ध
वि + हित = विहित
वि + लास = विलास
वि + कल = विकल
वि + वश = विवश
प्रश्न 4. पठित छप्पय से अनुप्रास अलंकार के उदाहरण चुनें ।
उत्तर – अनुप्रास, अस्थिति अति, अर्थ- अद्भूत, दिवि – दृष्टि, हृदय – हरि, विकल- बुद्धि, कौन कवि, ये प्रथम छप्पय के अनुप्रास अलंकार में प्रयुक्त हैं । अतः ये अनुप्रास अलंकार हैं।
छप्पय 2. सु सब, योग यज्ञ, सबदी, साखी, कबीर कानि का अनुप्रास अलंकार में प्रयोग । अतः ये अनुप्रास अलंकार हैं ।
प्रश्न 5. रसना ( जिह्व) का पर्यायवाची शब्द लिखें
जीभ, जबान, जुबान, रसज्ञा, रसाला, रसा, रसिका, स्वादेन्द्रिय, रसनेंद्रिय, आदि ।
इस आर्टिकल में आपने Bihar Board Class 12th hindi Book के काव्य खंड के Chapter 4 के सभी छप्पय के भावार्थ एवं प्रश्न- उत्तर (Question-Answer) पढ़ा | अगर कोई सुझाव या परेशानी हो तो नीचे कमेंट में अपनी राय अवश्य दें | धन्यवाद |
Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 4 छप्पय
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Chapter :- 2 सूरदास के पद
Chapter :- 3 तुलसीदास के पद
Chapter :- 4 छप्पय
Chapter :- 5 कवित्त
Chapter :- 6 तुमुल कोलाहल कलह में
Chapter :- 7 पुत्र वियोग
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Chapter :- 11 प्यारे नन्हें बेटे को
Chapter :- 12 हार-जीत
Chapter :- 13 गाँव का घर