SarkariCity के ऑफिशियल वेबसाइट पर आपका स्वागत है । यहां आप जानेंगे कि परासरण नियंत्रण किसे कहते है तथा परासरण नियंत्रण से जुड़ी अन्य कई बातें आपको जानने को मिलेंगे ।
शरीर के अंत:कोशिकीय द्रव एवं बाह्य कोशिकीय द्रव (रुधिर) के बीच संतुलन स्थापन करने को परासरणनियंत्रण (Osmoregulation) कहते हैं। रुधिर का परासरण दाब का नियंत्रण वृक्क द्वारा होता है। जब जंतु के शरीर में अधिक जल हो जाता है तब इसे हाइपोटोनिक (hypotonic) मूत्र त्याग करना चाहिए तथा इसके विपरीत यदि शरीर में जल-संरक्षण करना जरूरी है तब इसे हाइपरटोनिक (hypertonic) मूत्र त्याग करना चाहिए जिससे शरीर से कम जल निकल जाए। इस तरह रुधिर का परासरण सांद्रता का नियंत्रण किया जा सकता है। उदाहरणस्वरूप, मृदुजलीय मछलियों के शरीर के अंदर इनका मुख एवं बाह्य सतह से जल का अत्यधिक प्रवेश होता है। अतः ऐसे जंतुओं को अपने शरीर से अधिक जल की मात्रा को बाहर निकालना जरूरी है। इसके लिए बोमैन-संपुट से आइसोटोनिक फिल्ट्रेट फिल्टर होता है एवं यह वृक्क नलिकाओं से गुजरने के समय इससे कुछ लवणों का पुनरवशोषण हो जाता है। इसके फलस्वरूप फिल्ट्रेट रुधिर से भी पतला हो जाता है एवं मूत्र हाइपोटोनिक होकर बाहर निकलता है। इससे रुधिर का परासरण सांद्रता साधारण (normal) हो जाता है।
इसके विपरीत जब शरीर में जल-संरक्षण की विशेष जरूरत है (जैसे कुछ स्थलीय या समुद्री जंतुओं एवं स्तनी में) तब आइसोटोनिक ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट से वृक्क-नलिकाओं में अधिक जल का अवशोषण हो जाता है एवं उससे बहुत कम मात्रा में लवणों का अवशोषण होता है। इससे मूत्र रुधिर से ज्यादा गाढ़ा, अर्थात हाइपरटोनिक होकर बाहर निकल जाता है।
हम यह जानते हैं कि मूत्रसांद्रता का विपरीतधारा सिद्धांत (countercurrent theory of urine concentration) के अनुसार वृक्क-नलिकाओं तथा वृक्क में मौजूद वासारेक्टी (vasa reactae) रुधिर वाहिनियों द्वारा मूत्र गाढ़ा हो जाता है। जानते हैं कि अवशोषण की क्रिया पश्च पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा स्रावित वेसोप्रेसीन (vasopressin) या एंटीड्यूरेटिक हॉर्मोन (antidiuretic hormone, ADH) से नियंत्रित होता है। यह हॉर्मोन दूरस्थ संग्राहक नलिका एवं संग्राहक नली के पारगम्यता को नियंत्रित करता है।
जब शरीर में जल की मात्रा जरूरत से ज्यादा रहता है तब दूरस्थ कुंडलिका नलिका, संग्राहक नलिका एवं संग्राहक नली के दीवार जल के लिए अपारगम्य हो जाता है, क्योंकि इस अवस्था में ADH स्रावित नहीं होता है। इसलिए जल का पुनरवशोषण नहीं होता है एवं इन नलिकाओं में Na+ का सक्रिय अवशोषण होते रहता है। इससे फिल्ट्रेट क्रमशः पतला होते रहता है एवं अंत में हाइपोटोनिक मूत्र बाहर निकलता है।
इसके विपरीत जब शरीर से जल की मात्रा कम नहीं होनी चाहिए तब पश्च पिट्यूटरी से ADH हॉर्मोन स्रावित होता है। इस समय दूरस्थ कुंडलित नलिका, संग्राहक नलिका एवं संग्राहक नली (duct) के दीवार जल के लिए पारगम्य हो जाता है तथा Na+ तथा यूरिया की मौजूदगी में अंतराली ऊतकों हाइपरटोनिक हो जाता है। इस कारण दूरस्थ कुंडलित नलिका, संग्राहक नलिका एवं संग्राहक नली से ऊतकों में जल का क्रमशः अवशोषण होते रहता है एवं फिल्ट्रेट संग्राहक नली (collecting duct) में गाढ़ा हो जाता है एवं हाइपरटोनिक मूत्र शरीर से बाहर निकलता है।
इस तरह वृक्क शरीर के उत्सर्जन के साथ-साथ शरीर के प्रयोजन के अनुसार मूत्र को हाइपोटोनिक या हाइपरटोनिक बनाकर जल तथा लवणों की मात्रा का नियंत्रण करता है, अर्थात परासरण नियंत्रण में विशेष भाग लेता है।
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