रुधिर या रक्त या खून क्या है ? परिभाषा, अर्थ, कार्य, प्रकार एवं रुधिरवर्ग – SarkariCity

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 SarkariCity के ऑफिशियल वेबसाइट पर आपका स्वागत है । यहां आप जानेंगे कि रक्त या रुधिर या खून क्या है तथा रुधिर या रक्त या खून (blood) से जुड़ी अन्य कई बातें आपको जानने को मिलेंगे ।

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रुधिर (Blood) या खून या रक्त

रुधिर एक लाल संयोजी ऊतक है जो एक सामान्य मनुष्य के शरीर में लगभग 6 लीटर विद्यमान रहता है। रुधिर भोजन, विटामिन, खनिज लवण, ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड को निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचाता है, हॉर्मोन को निर्दिष्ट स्थान पर वहन करता है, अधिक भोजन को संचय करनेवाले अंगों तक ले जाता है, कोशिकाओं से उत्सर्जित पदार्थों को उत्सर्जी अंगों तक पहुँचाना, शरीर का तापमान नियंत्रण करना, जीवाणुओं तथा अन्य पदार्थ को नष्ट करना इसका कार्य है।


रुधिर के दो भाग हैं :- 

1. रुधिर-प्लाज्मा एवं 

2. रुधिर कणिकाएँ। 


रुधिर कणिकाएँ पुनः तीन तरह की होती हैं :—

(i) लाल रुधिर कणिका, 

(ii) श्वेत रुधिर कणिका एवं 

(iii) रुधिर प्लेटलेट्स। 


मनुष्य के शरीर में सारे रुधिर का 55% प्लाज्मा एवं शेष 45% रुधिर कणिका एवं प्लेटलेट्स मौजूद होते हैं।

                   प्लाज्मा में 90% जल है और शेष 10% में रुधिर, प्रोटीन तथा कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ मौजूद होते हैं। प्रोटीन में ग्लोब्यूलिन और एलब्यूलिन, कार्बनिक पदार्थ में ग्लूकोज, ऐमीनो अम्ल, वसा, अंतःस्रावी एन्जाइम तथा यरिया और अकार्बनिक पदार्थ में, सोडियम, बाइकार्बनिट और फॉस्फेट मौजूद होते हैं। थोड़ी मात्रा में कैल्सियम भी होता है। इन सभी की मात्रा हमेशा नियत नहीं होती। विभिन्न प्रकार के रोगों में इनकी मात्रा बदलती रहती है।


                    लाल रुधिर कणिकाएँ अस्थि-मज्जा (bone marrow) में बनती हैं एवं इनका विनाश 90-120 दिनों के बाद प्लीहा में होते रहता है। उत्पत्ति और विनाश का क्रम जीवनभर जारी रहता है। ऑक्सीजनयुक्त लाल रुधिर कणिका धमनियों (arterics) द्वारा ऊतकों में जाते हैं, इसलिए धमनियों के रुधिर का रंग चमकीला लाल होता है। इस रुधिर को शुद्ध रुधिर तथा धमनी-रुधिर भी कहते हैं। कार्बन डाइऑक्साइडयुक्त रुधिर जिसे साधारणतः अशुद्ध रुधिर या शिरा-रुधिर कहते हैं, शिराओं द्वारा हृदय में पहुँचता है। इसलिए शिराओं का रुधिर नीला या बैंगनी एवं धमनियों का रुधिर लाल या गुलाबी रंग का होता है। फुस्फुस-शिरा (pulmonary vein) के अतिरिक्त सभी शिराओं के रुधिर में CO2 तथा फुस्फुस- -धमनी (pulmonary artery) के अतिरिक्त सभी धमनियों के रुधिर में 02 रहता है। 


(i) लाल रुधिर कणिका का सतह गोलाकार होता है एवं इसका केंद्रक दिखाई नहीं देता है। इसका औसत व्यास 7.7 μm एवं मोटाई 2 μm होती है तथा चारों ओर एक पतली लचीली झिल्ली होती है। इस लचीलीपन के कारण कण पतली वाहिनियों में प्रवेश कर सकता है। नर में प्रति घन-मिलीमीटर रुधिर में 50,000,000 और मादा में 45,000,000 लाल रुधिर कण विद्यमान होते हैं। लाल रुधिरकण में एक प्रोटीन एवं रंजन हीमोग्लोबिन होता है जिसके कारण इन कण के रंग लाल होता है एवं इनमें O2 लेने तथा देने की क्षमता होती है।


(ii) श्वेत रुधिर कणिकाएँ (Leucocytes)- अनियमित आकृति की होती है। इसमें केंद्रक होता है, लेकिन हीमोग्लोबिन नहीं रहता है। प्रति घनमिलिमीटर रुधिर में 8.000 (6,000-10,000) श्वेत रुधिर कणिकाएँ होती हैं। जीवाणुओं को नष्ट करना इसका प्रधान कार्य है। सूक्ष्म कणों की उपस्थिति के आकार पर इन्हें दो प्रकार का कहा जाता है— (क) ग्रेनुलोसाइट, जिसमें कण पाए हैं। ग्रेनुलोसाइट तीन प्रकार का होता है1. न्यूट्रोफिल 2. इओसिनोफिल और 3. बेसोफिल। केंद्रक पालिवत होता है, इसलिए इनको बहुरूप-केंद्रकीय श्वेत कणिका (polymorphonuclear leucocyte) कहते है। ये सभी अस्थि-मज्जा में बनते हैं। (ख) एग्रेनुलोसाइट, जिसमें कण नहीं पाए जाते हैं। एग्रेनुलोसाइट दो प्रकार का होता है- 1. लिम्फोसाइट एवं 2. मोनोसाइट। ये लिम्फनोड में बनते हैं।


(iii) रुधिर प्लेटलेट्स (Blood platelets)- ये सूक्ष्म, रंगहीन, केंद्रकहीन लगभग 24॥ व्यास के होते है। ये अस्थि-मज्जा में मेगाकैरियोसाइट से बनता है एवं कई दिनों के पश्चात इनका विनाश हो जाता है। इनकी संख्या प्रति घनमिलिमीटर रुधिर में 2,00,000 से 3.00,000 तक होती है।

Image source: google WebMD.com
  स्तनो में रुधिरकाणकाएँ ।

  शरीर के किसी अंग के कट या फट जाने से रुधिर प्लेटलेट्स अधिक संख्या में एकत्र होकर आपस में चिपक जाते हैं एवं रुधिर-स्राव (bleeding) को बंद कर देते हैं।


रुधिर वर्ग (Blood Groups)

1901 में कार्ल लैण्डस्टोनर ने पता लगाया कि एक मनुष्य का सीरम यादे अन्य मनुष्य के रुधेर में मिलाया जाए तो रुधिर में उपस्थित लाल रक्तकणिकाएँ समूह में चिपकने लगती है। इस क्रिया को समूहन या एग्लूटिनेशन (agglutination) कहते है। उन्होंने यह भी पता लगाया कि यह क्रिया एंटीजेन-एंटीबॉडी के फलस्वरूप होता है ।

                मनुष्य को लाल रुधेिर काणकाओं की झिल्ली में दो प्रकार के एंटीजेन्स होते हैं जिन्हें A एवं B कहते है। किसी भी मनुष्य में केवल एक ही प्रकार क या दोनों प्रकार के एंटीजेन्स रह सकते हैं या दोनों प्रकार के एंटीजेन्स अनुपस्थित भी हो सकते है। प्लाज्मा में भी दो प्रकार के एंटोबॉडोज होते हैं जिन्हें व या एंटी-A एवं B या एंटी-B कहते हैं।

                  एंटीजेन A का संगत (corresponding) एंटीबॉडी ६ या एंटी-4 एवं एंटीजेन B का संगत (corresponding) एंटीबॉडी B या एंटो-B होता है। यादे किसी मनुष्य में एक विशेष एंटीजेन अनुपस्थित है तो उसमें इसका संगत एंटीबॉडी होगा। इसे लैंडस्टोनर नियम (Landsteiner’s rule एंटो-A) कहते है। किसी भी मनुष्य में ऐसा एंटीबॉडी नहीं होगा जिसका संगत एंटीजेन उसके रुधिर में है। इन एंटोजेन्स एवं एंटीबॉडो को उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर लैंडस्टीनर ने मनुष्य को निम्नांकित चार रुधिरवों में बाँटा है।


    रुधिरवर्गएंटीजेन्स या ऐग्लूटीनेजेन्सएंटीबॉडीज या ऐग्लूटिनिन्स
        O            None            α एवं β
        A              A                β
        B              B               α
      AB         A एवं B           None


                  लैंडस्टीनर के नियमानुसार आधुनिक चिकित्सक स्वस्थ मनुष्य का रुधिरवर्ग जाँच कर रोगियों में रुधिर चढ़ाते हैं जिसे रुधिर आधान (blood transfusion) कहते हैं। 

(i) यदि रुधिरवर्ग A का रुधिर, रुधिरवर्ग A अथवा रुधिरवर्ग AB में चढ़ाया जाय तो कोई खतरा नहीं उत्पन्न होगा, क्योंकि ऐसे मनुष्य के साधर मे 4 एंटीबॉडी अनुपस्थित है। इसे निम्नांकित प्रकार से दिखाया जा सकता है।


A(β) + A(B)

A(β) + A(B) (none) 

ऐग्लूटिनेशन नहीं होगा।


(ii) यदि रुधिरवर्ग A का रुधिर, रुधिरवर्ग C एवं B वाले व्यक्तियों के शरीर मे अंतःक्षिप्त किया जाय तो उनका रुधिर जम जाएगा  एवं उनकी मृत्यु हो जाएगी, क्योकि उनके रक्त में A का संगत एंटीबॉडी उपस्थित रहता है। इसे निम्नलिखित प्रकार से दिखाया जा सकता है।


A(β) + O(α एवं β)

A(β) + A(α)

 ऐग्लूटिनेशन होगा।


इसी प्रकार, O वर्ग वाले व्यक्ति के रुधिर में एंटीजेन्स की अनुपस्थिति के कारण इनका रुधिर सभी वर्ग वाले व्यक्तियों को चढ़ाया जा सकता है। O वर्ग वाले व्यक्ति के रुधिर में दोनों एंटीबॉडीज की उपस्थिति के कारण किसी अन्य वर्ग वाले व्यक्ति का रुधिर इस वर्ग वाले मनुष्य को नहीं दिया जा सकता है। इसलिए O वर्ग वाले मनुष्य को सर्वदाता (universal doner) कहा जाता है।


AB वर्ग वाले मनुष्य के रुधिर में दोनो एंटीजेन्स है, इसलिए यह रुधिर अन्य वर्ग वाले मनुष्य के लिए उपयोगी नहीं है, लेकिन दोनों एंटीबॉडीज की अनुपस्थिति के कारण AB वर्ग वाले मनुष्य में सभी वगों वाले व्यक्तियों का रुधिर चढ़ाया जा सकता है। इसलिए AB वर्ग वाले मनुष्य को सर्वग्राही (universal receiver) कहा जाता है।


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