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Hello, इस वेबसाइट के इस पेज पर आपको Bihar Board Class 12th Hindi Book के काव्य खंड के Chapter 3 के सभी पद्य के भावार्थ एवं प्रश्न- उत्तर (Question-Answer) पढने को मिलेंगे साथ ही साथ कवि परिचय एवं आपके परीक्षा के दृष्टिकोण से ओर भी महत्वपूर्ण जानकारियां पढने को मिलेंगे | इस पूरे पेज में क्या-क्या है उसका हेडिंग (Heading) नीचे दिया हुआ है अगर आप चाहे तो अपने जरूरत के अनुसार उस पर क्लिक करके सीधा (Direct) वही पहुंच सकते है |
Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 3 पद
कवि परिचय
जीवनी – गोस्वामी तुलसीदास को हिंदी साहित्य का ‘सूर्य’ कहा जाता है । उनका जन्म सन् 1543 में हुआ। कुछ विद्वान उनका जन्म राजापुर (बाँदा जिला) को मानते हैं। उनकी माता का नाम हुलसी तथा पिता का नाम आत्माराम दुबे था ।
तुलसी का बचपन घोर कष्ट में बीता। उन्हें माता-पिता से बिछुड़ कर अकेले जीना पड़ा। आरंभ में वे भीख माँगकर गुजारा करते थे। उनके गुरु का नाम नरहरि था । उनका विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ। उसी के उपदेश से वे भगवान की भक्ति में लगे । उन्होंने अयोध्या, काशी, चित्रकूट आदि नाना तीर्थों की यात्रा की । लंबे समय तक वे रामगुणगान करते रहे । सन् 1623 में उनका गोलोकवास हुआ ।
रचनाएँ – तुलसीदास ने अनेक रचनाएँ लिखीं। उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं :- ‘रामलला नहछु’ , जानकी मंगल’, ‘पार्वती मंगल’, ‘रामचरितमानस’, गीतावली’, ‘विनयपत्रिका,’ ‘बरवै रामायण, ‘दोहावली’, कवितावली, ‘हनुमान बाहुक’ और ‘बैराग्य संदीपनी’ । ‘रामचरितमानस’ तुलसीदास की प्रसिद्धि और लोकप्रियता का सबसे बड़ा आधार है ।
काव्यगत बिशेषताएँ – तुलसी के काव्य का एक ही विषय है – मर्यादा पुरुषोत्म राम की भक्ति । उनके राम शक्ति, शील और सौंदर्य के अबतार हैं। उन्होंने रामचरितमानस में राम के सपूर्ण जीवन की झाँकी प्रस्तुत की है । ‘विनय-पत्रिका’ में उन्होंने अपनी भक्ति-भावना को सुमधुर गीतों में प्रस्तुत किया है। ।
भाषा-शैली – तुलसी को ब्रज तथा अवधी पर समान अधिकार प्राप्त है। उन्होंने रामचरितमानस की रचना अवधी में की है और विनयपत्रिाका ब्रज में । उनकी भाषा इतनी सरस है कि आज भी उनकी कविता पाठकों का कंठहार बनी हुई है। उन्होंने महाकाव्य भी लिखा और मुक्तक छंद भी लिखे । उनके गीत संगीत की कसौटी पर खरे उतरते हैं । तभी ये गायकों को प्रिय हैं ।
उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि अलंकार उन्हें विशेष रूप से प्रिय हैं। उपमा का एक उदाहरण देखिए- ‘पारबती सम पतिप्रिय होहू ।
अनुप्रास तो उनकी प्रत्येक पंक्ति में बिखरा पड़ा है । दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त और सवैया उनके प्रिय छंद हैं ।
पदों का भावार्थ
तुलसीदास के पद अर्थ सहित Class 12
प्रश्न – तुलसीदासजी के प्रथम पद का भावार्थ ।
पद-1
कबहुँक अंब अवसर पाइ ।
मेरिओ सुधि द्याइबी कछु करुन-कथा चलाई ॥
दीन, सब अँगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ ।
नाम लै भरै उदर एक प्रभु दासी दास कहाई ॥
बूझि हैं ‘सो है कौन’, कहिबी नाम दसा जनाई ।
सुनत रामकृपालु के मेरी बिगारिऔ बनी जाई ॥
जानकी जगजननि जन की किए बचन-सहाइ ।
तरै तुलसीदास भव तव नाथ-गुन-गान गाइ ॥
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘विनय पत्रिका’ काव्य कृति से ली गयी हैं। विनय पत्रिका की रचना करने के पीछे कवि का उद्देश्य है कि कविता रूपी पत्र के माध्यम से अपनी दीनता पीड़ा-व्यथा को प्रभु श्रीराम के चरणों में पहुँचाना। इसमें सभी देवों की स्तुतियाँ की गयी हैं और उन्हीं के माध्यम से प्रभु के प्रति भक्ति-भावना भी प्रदर्शित की गयी है ।
उपर्युक्त पंक्तियों में माँ सीता की वंदना करते हुए कवि विनती करता है कि हे माँ ! कभी अवसर पाकर मेरी विनती प्रभु श्रीराम के चरणों में प्रस्तुत करना । मेरी करुण कथा की चर्चा करते हुए मेरे प्रति प्रभु-कृपा के लिए याद दिलाना । उन्हें याद दिलाते हुए कहिएगा कि आपकी दासी का एक भक्त आपका नाम जप एवं भजन के द्वारा अपनी जीविका चला रहा है। मेरी दीन-हीन अवस्था की सुधि श्रीराम को छोड़कर और कौन लेगा ? श्रीराम की कृपा अगर हो जाएगी तो मेरी दीन-दशा सुधर जाएगी। हे जगत की जननी, मेरी तुमसे विनती है कि अपनी कृपा कर मुझ असहाय की सहायता करें । तुलसीदास भवसागर पार करानेवाले प्रभु श्रीराम का गुण-गान करते हुए दीनता से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं ।
प्रश्न – तुलसीदासजी के दूसरा पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें ।
Class 12 Hindi chapter 3 तुलसीदास के पद
पद- 2
द्वार हौं भोर ही को आजु ।
रटत रिरिहा आरि ने, कौर ही तें काजु ॥
कलि कराल दुकाल दारुन, सब कुभाँति कुसाजु ।
नीच जन, मन ऊँच, जैसी कोढ़ में की खाजु ।
हहरि हिय में सदय बूझयो जाई साधु-समाजु ॥
मोहुसे कहुँ कतहुँ कोउ, तिन्ह कहयो कोसल राजु । दीनता – दारिद दलै को कृपाबारिधिं बाजु ।
दानि दसर परायके, तू बानइत सिरताजु ॥
जनमको भूखो भिखारी हौं गरीबनिवाजु ।
पेट भरि तुलसिहि जेंवाइय भगति – सुधा सुनाजु ॥
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियों में तुलसीदासजी ने अपनी दीनता का वर्णन करते हुए उस समय के भीषण दुर्भिक्ष काल का भी यथार्थ चित्रण किया है । तुलसीदासजी को उनके सगे-संबंधियों ने ऐसा छोड़ दिया है कि फिर कभी उनकी ओर भूलकर भी देखा नहीं । उनके हृदय में इसका जो संताप था इसको दूर करने के लिए उनको संतों की शरण में जाना पड़ा और उनका आश्वासन भी मिला | तब उनको विश्वास हो गया कि राम की शरण में जाने से सब संकट दूर हो जाते हैं। तुलसीदास ने इसका भी उल्लेख किया है ।
अकालों की कोई ऐसी सूची हमारे सामने प्रस्तुत नहीं है जिससे कि हम उस समय की वस्तुस्थिति को ठीक-ठीक समझ सकें । तो भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि जो कराल दारुण, दुकाल संवत 1613 में पड़ा था और जिसमें मनुष्य मनुष्य को खाने तक लगा था वहीं तुलसीदास की इस यातना का भी कारण रहा होगा, और इसी क्रूरता से दहलकर ही वे संत शरण में गए होंगे। इस संकट को इन पंक्तियों में, संत कवि तुलसीदासजी ने माँ सीता को भगवान श्रीरामचन्द्र के सामने बड़ी चतुराई से उपस्थित करने को कहा है । वे कहते हैं कि हे माँ आप कहिएगा कि आपका दास (तुलसी नाम वाला व्यक्ति) आपका ही नाम लेकर जी रहा है। यह अस्पष्ट बात सुनकर श्रीरामजी को स्वभावतया नाम जानने की उत्सुकता होगी । वंदना प्रकरण के द्वारा तुलसीदासजी ने अपने स्वामी से दैन्य- निवेदन आरंभ किया है । अपने प्रभु महत्त्व, औदार्य, शील और शील स्वयं के असामर्थ्य को दिखाते हुए उसके उद्धार की याचना की है। उन्होंने बीच-बीच में अपने नैतिक उत्थान की अभिलाषा भी व्यक्त की है।
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ –
1. इनमें तुलसीदास की कौन-सी रचना है ?
उत्तर :- पद
2. तुलसीदास का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:- 1543 ई०
3. तुलसीदास के शिक्षा गुरु कौन थे ?
उत्तर:- शेष सनातन जी
4. शेष सनातन जी कहाँ के विद्वान थे ?
उत्तर:- काशी के
5. काशी में कितने वर्ष रहकर तुलसीदास ने विद्याध्ययन किया ?
उत्तर:- 15 वर्षों तक
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी के शीर्षस्थ जातीय कवि हैं, विवेचन करें।
उत्तर – सार्वभौम काव्य प्रतिभा से संपन्न महाकवि पर और इनके काव्य पर हिन्दी भाषा, साहित्य और समाज को गर्व है । हिन्दी समाज और संस्कृति पर इनकी गहरी छाप है। इनका रामचरित मानस हिन्दी का श्रेष्ठतम प्रबंध काव्य है । इस महाकाव्य में संपूर्ण परंपरा, युगजीवन, समाज एवं संस्कृति की समन्वित संश्लिष्ट अभिव्यक्ति हुई है। रामचरित मानस – सर्वाधिक सफल, लोकप्रिय एवं उत्कृष्ट कृति है । इन्हीं गुणों के कारण तुलसीदास हिन्दी के शीर्षस्थ जातीय कवि हैं ।
प्रश्न 2. गोस्वामी तुलसीदास का जीवन अत्यंत यातना एवं संघर्ष में गुजरा था । प्रकाश डालें ।
उत्तर – तुलसीदास जी बचपन में ही अनाथ हो गए । वे साधुओं की मंडली में शामिल हो की, गए । भिक्षाटन एवं देशाटन सर्वत्र करते रहे । युवावस्था में इनका विवाह भी हुआ था । वे कथावाचन वृत्ति से घर-गृहस्थी चलाते थे । इस प्रकार रामानंदी परंपरा के एक गुरु ने इन्हें शिष्य बनाया। बाद में गृहस्थ जीवन से विरक्त होकर साधु जीवन में चले गए। बचपन कष्टों, अभावों में बीता । बाद में शेष जीवन लोकसंस्कृति और लोकजीवन के विविध पक्षों पर काव्य के सृजन में बीता ।
प्रश्न 3. “गोस्वामी जी की संवेदना गहरी और अपरिमित थी, अन्तर्दृष्टि सूक्ष्म और व्यापक थी, विवेक प्रखर और क्रांतिकारी था ।” इन पंक्तियों के आधार पर उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – तुलसीदास जी की संवेदना गहरी और अपरिमित थी । आंतरिक दृष्टि पैनी और व्यापक थी | विचार – चिंतन प्रवाह में प्रखरता, क्रांतिकारिता, और ओजस्विता थी । कवि में इतिहास एवं संस्कृति का व्यापक परिप्रेक्ष्य बोध और लोकप्रेक्षा थी । इस युगान्तकारी बौद्धिक रचनाओं द्वारा कवि ने ऐसा आदर्श उपस्थित कर दिया जो अतुलनीय है । साहित्य भाषा विकास, संप्रेषण एवं संवाद की क्षमता में तुलसी की कोई तुलना नहीं ।
प्रश्न 4. तुलसीदास जी की काव्य शैलियों पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – तुलसीदास जी ने प्रबंध और गीतिशैली के आधार पर अपने युग की दो महान कृतियाँ- रामचरित मानस और विनय पत्रिका की रचना कर साहित्य जगत को अनमोल निधि भेंट की। दोहा, सोरठा, चौपाई, कविता आदि छंदों का प्रयोग किया। व्यापक सूझबूझ, उदारता, मनस्थिता और लोकवाद का परिचय दिया। लोक संस्कृति के चित्रण में सोहर, झूमर, नहछु, विवाह आदि रीति-रिवाजों, आचार-व्यवहारों का चित्रण किया। अनुराग और भक्ति की पावन गंगा बहा दी। अपने समय के प्रचलित सभी शास्त्रीय एवं लोक छंदों को अपनाया ।
प्रश्न 5. तुलसीदास का काव्य मध्य कालीन उत्तर भारत का सबसे प्रामाणिक संदर्भ कोश है। सांगोपांग विवेचन करें ।
उत्तर – गोस्वामी तुलसीदास ने मध्यकालीन भारत की समस्त अच्छाइयों, बुराइयों, रीति-रिवाजों, आचार-व्यवहारों, सभ्यता-संस्कृति को पैनी दृष्टि से देखा और उनपर सूक्ष्म ढंग से चिंतन करते हुए अपने काव्य में चित्रित किया। सुख-दुख, आशा-आकांक्षा, दीनता- दरिद्रता, उत्सव महोत्सव सबका सम्यक् चित्रण करते हुए अपने काव्य में स्थान दिया। इस प्रकार तुलसी के सारे काव्य उत्तर भारत के जनजीवन की सर्वोत्कृष्ट रचना हैं, संदर्भ कोश हैं।
प्रश्न 6. गोस्वामी जी ने अपनी काव्य रचना में किन-किन भाषाओं को अपनाया ? इस पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – तुलसी दास जी ने अपनी काव्य रचना में अवधी एवं दोनों भाषाओं को अपनाया । सामान्यतः प्रबंध रचना के लिए उन्होंने अवधी और गीति रचना के लिए ब्रजभाषा को अपनाया । किन्तु उन्होंने इन काव्य भाषाओं में अन्य बोलियों के शब्दों, मुहावरों और अन्य भाषा तत्वों के समिश्रण से एक ऐसी व्यापक साहित्यिक- भाषा विकसित की जिसमें संप्रेषण और संवाद की अधिक क्षमता थी और जो आगे की भाषा के लिए आधार बनी ।
प्रश्न 7. “बूझि हैं ‘सो है कौन’ कहिबी नाम दसा जनाई” पंक्तियों के आधार तुलसीदास के कहने का क्या भाव है स्पष्ट करें ।
उत्तर – तुलसीदास जी अपने प्रथम पद में माँ सीता के माध्यम से अपनी दारुण व्यथाकथा को राम के समक्ष प्रस्तुत करने की याचना करते हैं। उपरोक्त पंक्तियों में कवि का कहने का आशय है कि अगर श्री राम आपसे (माँ सीता से) मेरे बारे में पूछेंगे कि वह कौन है ? तब आप मेरी दीन-दशा की चर्चा करते हुए मेरी सही स्थिति को प्रभु के समक्ष प्रस्तुत कीजिए | राम कृपालु हैं। उनके द्वारा यह सुनते ही मेरी बिगड़ी बात बन जाएगी । इन पंक्तियों में कवि की निजता के साथ, देश-धर्म की चिंता भी सन्निहित है ।
प्रश्न 8. “जानकी जग जननि जन की किए वचन-सहाइ ।” इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है कि हे जगत जननी माँ ! मेरी आपसे यही विनती है कि आप अपनी कृपा मुझ असहाय की सहायता करें। तुलसीदास जी, माँ के नाथ यानि श्रीराम के गुणगान करते हुए भवसागर से मुक्ति चाहते हैं। कहने का भाव यह है कि तुलसीदास जी अपनी दीनता से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। परोक्ष रूप से इसमें राष्ट्रीय हित के लिए प्रार्थना है। यानि भारतीय जन जीवन को दीनता, दरिद्रता से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना ।
प्रश्न 9. ‘तरै तुलसीदास भव तव नाथ गुन-गान गाई’ इन काव्य पंक्तियों में तुलसीदास ने क्या कहा है। वर्णन करें:
उत्तर – गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि माँ सीते! आपके नाथ यानि भगवान श्रीराम का गुणगान करते हुए उनके द्वारा भवसागर से तरने यानि मुक्ति की याचना मैं करता हूँ। सहायता की याचना करता हूँ। इन पंक्तियों में तुलसीदास की निजी व्यथा दूर करने की ही प्रार्थना नहीं है बल्कि परोक्ष रूप से भारतीय जन-जीवन को दासता, दरिद्रता, दीनता, भुखमरी से मुक्ति दिलाने की भी प्रार्थना है।
प्रश्न 10. “कलि कराल दुकाल दारून, सब कुभाँति कुसाजु” काव्य पंक्तियों द्वारा कवि क्या कहना चाहता है, स्पष्ट करें ।
उत्तर – तुलसीदास ने अपने समय के कलियुग के भीषण बुरे समय का जो असहनीय था, मार्मिक वर्णन किया है। उस समय सभी बुरी तरह अव्यवस्थित यानि दुर्गतिग्रस्त थे । कवि ने अपने काल का सच्चा चित्र खींचा है। सामाजिक अव्यवस्था, भीषण कष्ट, कठिन अकाल से पीड़ित जन-जीवन ने कवि को अपनी निजी व्यथा से जोड़कर वर्णन किया है। इन पंक्तियों के द्वारा उस समय की लोकजीवन की वेदना, पीड़ा, अभावग्रस्ता, शोषण-दमन, भुखमरी, अकाल का सही प्रतिबिंब हमें दिखता है।
प्रश्न 11. “दीनता – दारिद दलै को कृपाबारिधि बाजु” इन पंक्तियों के भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर – महाकवि तुलसीदास जी उक्त पंक्तियों में अपनी गरीबी और दरिद्रता का चित्रण करते हुए कृपासिंधु श्रीराम से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। वे कहते हैं कि दीनता और दरिद्रता मुझे सता रही है। आप कृपा के सिंधु हैं। दशरथ के पुत्र हैं। आप मेरा दुःख दूर करें। इन पंक्तियों में भी कवि की निजता में राष्ट्रीयता छिपी हुई है। यह केवल कवि की समस्या नहीं है, उस काल की देश की जनता की समस्या भी है। उसे दूर करने के लिए वे कविता के माध्यम से प्रभु से प्रार्थना करते हैं।
प्रश्न 12. “जनम को भूखो भिखारी हैं। गरीब निवाजु” के द्वारा तुलसीदास के कहने का क्या भाव है ?
उत्तर- तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं जनम-जनम का भूखा हूँ, भिखारी हूँ । आप यानि श्रीराम जी गरीबों के दुःख को हरनेवाले हैं। जब पेट भरेगा तभी तो भक्ति होगी । इन पंक्तियों में तुलसीदास जी तद्युगीन सामाजिक कष्टों, अव्यवस्थाओं का वर्णन कर उनसे मुक्ति के लिए श्रीराम से प्रार्थना करते हैं।
व्याख्याएँ
प्रश्न 1. “दीन, सब अँगहीन, छीन, मलीन, अधी अधाई” पंक्तियों की व्याख्या करें ।
उत्तर– प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक दिगन्त भाग- II के ‘तुलसीदास के पद’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इसमें तुलसीदास जी अपनी निज-व्यथा को माँ सीता के माध्यम से श्रीराम के चरणों में प्रस्तुत करवाना चाहते हैं। यह प्रसंग उसी संदर्भ से जुड़ा हुआ है ।
विनय पत्रिका की उक्त पंक्तियों के माध्यम से महाकवि तुलसीदास जी कहते हैं, हे माँ सीते ! प्रभु से मेरी प्रार्थना को प्रस्तुत करते हुए कहना कि उनका भक्त दीन है, अंग विहीन है, क्षीणकाय है, मलीन है, और पापी भी है। इन पंक्तियों में कवि अपनी निजी पीड़ा साधन विहीन जीवन, मन मलीन, दुर्बल और पापी मनुष्य के रूप में स्वयं को चित्रित करते हुए मुक्ति के लिए प्रार्थना करता है। साथ ही माँ सीता के माध्यम से सिफारिश भी करवाने के लिए सविनय विनती करता है। तुलसीदास जी ने अपनी इन कविताओं के माध्यम से समग्र भारत की पीडा, व्यथा, दीन-हीनता, दुर्बलता, घोरपापी मन की व्यथा का चित्रण करते हुए अपने काल की दीन-दशा का सही रेखांकन किया है।
उक्त पंक्तियों में कवि ने तद्युगीन सामाजिक विसंगतियों, पीड़ाओं, अभावों, शोषण दमन, अत्याचार का सटीक वर्णन किया है।
प्रश्न 2. “तरै तुलसीदास भव तव नाथ गुन-गान गाई ।” पंक्तियों की व्याख करें ।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगन्त भाग- II के ‘तुलसीदास के पद’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग तुलसीदास का माँ सीता की सहायता द्वारा भवसागर से मुक्ति के लिए श्रीराम की कृपा-याचना से है ।
विनय पत्रिका की उक्त पंक्तियों में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि हे जगत जननी माँ सीते ! आप मेरी सहायता करें। आपकी सहायता एवं वचनों द्वारा मैं तर जाऊँगा, भवसागर पार कर जाऊँगा क्योंकि मैं श्रीराम का गुणगान करता हूँ। आप अपने वचनों द्वारा सहायता करते हुए मेरी विनती को श्रीराम के चरणों में पहुँचाने की कृपा करें । इन पंक्तियों के द्वारा गोस्वामी तुलसीदास जी ने राष्ट्रहित, लोकहित के दुःखों, कष्टों, शोषण दमन से मुक्ति के लिए भी प्रार्थना किया है ।
उक्त पंक्तियों में कवि की निजी पीड़ा तो सम्मिलित है ही, परोक्ष रूप से उसमें समग्र भारतीय जन-जीवन की व्यथा कथा भी है जिससे मुक्ति के लिए कवि श्रीराम से प्रार्थन करता है ।
प्रश्न 3. “नीच जन, मन ऊँच, जैसी कोढ़ में की खाजु ।”
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगन्त भाग- II के ‘तुलसीदास के पद शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग नीच जनों के दुर्व्यवहार एवं अशिष्ट लोक-व्यवहार से जुड़ा हुआ है। उसी प्रसंग को कवि ने अपनी कविताओं में रेखांकित किया है। विनय पत्रिका की उक्त पंक्तियों में कवि ने अपने समय के जन जीवन एवं लोक व्यवहार में अशिष्टता की फैलती संक्रामकता की ओर ध्यान आकृष्ट किया है ।
महाकवि तुलसीदास जी का कहने का आशय है कि कलियुगी मनुष्यों की करतूत तो नीच है। दिन-रात वे विषय – भोग में लिप्त रहकर पाप किया करते हैं और उनका मन भी ऊँच अ रहता है। वे सच्चे सुख की चाह तो रखते हैं किन्तु सच्चा मोक्षरूपी सुख बिना भगवद्-भक्ति के संभव नहीं, जैसे–कोढ़ की खाज जिसे खुजलाने पर तो सुख मिलता है पर पीछे मवाद निकलने पर जलन पैदा होती है। ठीक उसी के समान इन्द्रियों के साथ विषय का संयोग होने पर आरम्भ में तो सुख मिलता है, परन्तु परिणाम में महादुःख होता है । इस प्रकार कवि कलि काल के प्रभाव से बहुत दुःखी है । उससे मुक्ति के लिए श्रीराम से प्रार्थना करता है । उक्त पंक्तियों में भारतीय जन-जीवन की दारुण स्थिति के चित्रण के साथ लोक व्यवहार में अशिष्टगत आचार-विचार से भी कवि की आत्मा पीड़ित है।
प्रश्न 4. “हहरि हिय में सदय बूझयो जाइ साधु-समाजु ।”
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक दिगन्त भाग- II के ‘तुलसीदास के पद शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने साधु-समाज का आश्रय लेने के कतिपय कारणों पर प्रकाश डाला है। ये कविताएँ उसी प्रसंग से जुड़ी हुई हैं ‘विनय पत्रिका’ की उक्त कविता में तुलसीदास जी ने अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों, दुःखों, कष्टों का जिक्र बड़े ही मार्मिक शब्दों में किया है ।
विनय पत्रिका की उक्त काव्य पंक्तियों में व्यक्त अपने विचार के अनुसार तुलसीदास जी ने विषय भोग को दुःखदायी मानते हुए किसी भी उद्यम में अपने मन को नहीं लगाया। तुलसीदास कहते हैं कि इसी बात से चिंतित होकर हृदय से डरकर कृपालु संत-समाज से पुछा कि कहिए मुझ जैसे उद्यमहीन को भी कोई शरण में लेगा। संतों ने एक स्वर से यही उत्तर दिया कि एक कोसलपति महाराज श्रीरामचंद्रजी ही ऐसे को शरण में रख सकते हैं।
उक्त काव्य पंक्तियों में कवि ने तदयुगीन सामाजिक कष्टों का वर्णन कर उनसे मुक्ति लिए श्रीराम प्रभु से प्रार्थना की है।
पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. “कबहुँक अंब अवसर पाई ।” यहाँ ‘अंब” संबोधन किसके लिए है ? इस संबोधन का मर्म स्पष्ट करें।
उत्तर– उपर्युक्त पंक्ति में ‘अंब’ का संबोधन “माँ सीता” के लिए किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने सीताजी के लिए सम्मानसूचक शब्द ‘अंब’ के द्वारा उनके प्रति सम्मान की भावना प्रदर्शित की है
प्रश्न 2. प्रथम पद में तुलसीदास ने अपना परिचय किस प्रकार दिया है ? लिखिए ।
उत्तर– प्रथम पद में तुलसीदास ने अपने विषय में हीनभाव प्रकट किया है। अपनी भावना को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि वह दीन, पापी, दुर्बल, मलिन तथा असहाय व्यक्ति हैं। वे अनेकों अवगुणों से युक्त हैं। ‘अंगहीन’ से उनका आशय संभवतः ‘असहाय’ होने से है।
प्रश्न 3. अर्थ स्पष्ट करें
(क) नाम लै भरे उदर एक प्रभु दासी दास कहाई ।
(ख) कलि कराल दुकाल दारुन, सब कुभाँति कुसाजु ।
नीच जन, मन ऊँच, जैसी कोढ़ में की खाजु ॥
(ग) पेट भरि तुलसि द्वि जेंवाइय भगति-सुधा सुनाजु ।
उत्तर- (क) प्रस्तुत पद्यांश का अर्थ निम्नांकित है- भगवान राम का गुणगान करके, उनकी कथा कहकर जीवन-यापन कर रहे हैं, अर्थात् सीता माता का सेवक बनकर राम कथा द्वारा परिवार का भरण-पोषण हो रहा है
(ख) कलियुग का भीषण अकाल का समय असहय है तथा पूर्णरूपेण बुरी तरह अव्यवस्थित समाज कष्टदायी है। निम्न कोटि का व्यक्ति होकर बड़ी-बड़ी (ऊँची) बातें सोचना कोढ़ में खाज के समान है अर्थात् ‘छोटे मुँह बड़ी बात” कोढ़ में खुजली के समान हैं।
(ग) कवि (तुलसीदास) को भक्ति-सुधा रूपी अच्छा भोजन करा कर उसका पेट भरें अर्थात् क्षुधा की पूर्ति करें। गरीबों के मालिक श्रीराम भगवान से उन्हीं के भक्त तुलसीदास के द्वारा इसमें प्रार्थना की गयी है।
प्रश्न 4. तुलसी सीता से कैसी सहायता मांगते हैं ?
उत्तर – तुलसीदास माँ सीता से भवसागर पार कराने वाले श्रीराम को गुणगान करते हुए मुक्ति-प्राप्ति की सहायता की याचना करते हैं । हे जगत की जननी ! अपने वचन द्वारा मेरी सहायता कीजिए ।
प्रश्न 5. तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते थे ?
उत्तर- ऐसा संभवत: तुलसीदास इसलिए चाहते थे क्योंकि – (i) उनको अपनी बातें स्वयं राम के समक्ष रखने का साहस नहीं हो रहा होगा, वे संकोच का अनुभव कर रहे होंगे । (ii) सीता जी सशक्त ढंग से (जोर देकर) उनकी बातों को भगवान श्रीराम के समक्ष रख सकेंगी। ऐसा प्रायः देखा जाता है कि किसी व्यक्ति से उनकी पत्नी के माध्यम से कार्य करवाना आसान अधिक होता है (iii) तुलसी ने सीताजी को माँ माना है तथा पूरे रामचरितमानस में अनेकों बार माँ कहकर ही संबोधित किया है। अतः माता सीता द्वारा अपनी बातें राम के समक्ष रखना ही उन्होंने श्रेयस्कर समझा ।
प्रश्न 6. राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी, तुलसी के इस भरोसे का क्या कारण है ?
उत्तर – गोस्वामी तुलसीदास राम की भक्ति में इतना अधिक निमग्न थे कि वह पूरे जगत को राममय पाते थे – “सिया राममय सब जग जानी ” उनका मूलमंत्र था। अतः उनका यह दृढ़ विश्वास था कि राम दरबार पहुँचते ही उनकी बिगड़ी बातें बन जाएँगी । अर्थात् राम ज्योंही उनकी बातों को जान जाएँगे, उनकी समस्याओं एवं कष्टों से परिचित होंगे, वे इसका समाधान कर देंगे। उनकी बिगड़ी हुई बातें बन जाएँगी ।
प्रश्न 7. दूसरे पद में तुलसी ने अपना परिचय किस तरह दिया है लिखिए।
उत्तर – दूसरे पद में तुलसीदास ने अपना परिचय देते हुए बड़ी बड़ी (ऊँची) बातें करनेवाला अधम ( क्षुद्र जीव) कहा है। छोटा मुँह बड़ी बात (बड़बोला) करने वाला व्यक्ति के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया है, जो कोढ़ में खाज (खुजली) की तरह है ।
प्रश्न 8. दोनों पदों में किस रस की व्यंजना हुई है ?/प्रथम पद में किस रस की व्यंजना हुई है
उत्तर – दोनों पदों में भक्ति- रस की व्यंजना हुई है । तुलसीदासजी ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम तथा जगत जननी सीता की स्तुति द्वारा भक्तिभाव की अभिव्यक्ति इन पदों में की है ।
प्रश्न 9. तुलसी के हृदय में किसका डर है ?
उत्तर – तुलसी की दयनीय अवस्था में उनके सगे-संबंधियों आदि किसी ने भी उनकी सहायता नहीं की । उनके हृदय में इसका संताप था । इससे मुक्ति पाने के लिए उन्हें संतों की शरण में जाना पड़ा और उन्हें वहाँ इसका आश्वासन भी मिला कि श्रीराम की शरण में जाने से सब संकट दूर हो जाते हैं । भौतिक अर्थ है – संसार के सुख-दुःख से भयभीत हुए और आध्यात्मिक अर्थ है- विषय वासना से मुक्ति का भय । कवि की उक्त पंक्तियां द्विअर्थी हैं। क्योंकि कवि ने भौतिक जगत की अनेक व्याधियों से मुक्ति और भगवद्-भक्ति के लिए समर्पण भाव की ओर ध्यान आकृष्ट किया है ।
प्रश्न 10. राम स्वभाव से कैसे हैं ? पठित पदों के आधार पर बताइए ।
उत्तर – प्रस्तुत पदों में राम के लिए संत तुलसीदासजी ने कई शब्दों का प्रयोग किया है। जिससे राम के चारित्रिक गुणों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।
श्रीराम को कवि ने कृपालु कहा है। श्रीराम का व्यक्तित्व जन-जीवन के लिए अनुकरणीय और वंदनीय है। प्रस्तुत पदों में तुलसी ने राम की कल्पना मानव और मानवेतर दो रूपों में की है । राम के कुछ चरित्र प्रगट रूप में और कुछ चरित्र गुप्त रूप में दृष्टिगत होते हैं । उपर्युक्त पदों में परब्रह्म राम और दाशरथि राम के व्यक्तित्व की व्याख्या की गयी है। राम में सर्वश्रेष्ठ मानव गुण है। राम स्वभाव से ही उदार और भक्तवत्सल हैं । दाशरथि राम का दानी के रूप में तुलसीदासजी ने चित्रण किया है । पहली कविता में प्रभु, बिगड़ा काम बनाने वाले, भवनाथ आदि शब्द श्रीराम के लिए आए हैं । इन शब्दों द्वारा परब्रह्म अलौकिक प्रतिभा संपन्न श्रीराम की चर्चा है ।
दूसरी कविता में कोसलराजु, दाशरथि, राम, गरीब निवाजू, आदि शब्द श्रीराम के लिए प्रयुक्त हुए हैं। अतः, उपर्युक्त पद्यांशों के आधार पर हम श्रीराम के दोनों रूपों का दर्शन पाते हैं। वे दीनबंधु, कृपालु, गरीबों के त्राता के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होते हैं। दूसरी ओर कोसलराजा, दसरथ राज आदि शब्द मानव राम के लिए प्रयुक्त हुआ है ।
इस प्रकार राम के व्यक्तित्व में भक्तवत्सलता, शरणागत वत्सलता, दयालुता अमित ऐश्वयं वाला, अलौकिकशील और अलौकिक सौन्दर्यवाला के रूप में हुआ है ।
प्रश्न 11. तुलसी को किस वस्तु की भूख है ?
उत्तर – तुलसीजी गरीबों के त्राता भगवान श्रीराम से कहते हैं कि हे प्रभु , मैं आपकी भक्ति का भूखा जनम-जनम से हूँ। मुझे भक्तिरूपी अमृत का पान कराकर क्षुधा की तृप्ति कराइए ।
प्रश्न 12. पठित पदों के आधार पर तुलसी की भक्ति-भावना का परिचय दीजिए।
उत्तर – प्रस्तुत पद्यांशों में कवि तुलसीदास अपनी दीनता तथा दरिद्रता से मुक्ति पाने के लिए माँ सीता के माध्यम से प्रभु श्रीराम के चरणों में विनय से युक्त प्रार्थना प्रस्तुत करते हैं। वे स्वयं को प्रभु का दास कहते हैं। नाम लै भरै उदर द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि श्रीराम का नाम-जप ही उनके लिए सबकुछ है। नाम-जप द्वारा उनकी लौकिक भूख भी मिट जाती है। संत तुलसीदास अपने को अनाथ कहते हुए कहते हैं कि मेरी व्यथा गरीबी की चिंता श्रीराम के सिवा दूसरा कौन बूझेगा ? श्रीराम ही एकमात्र कृपालु हैं जो मेरी बिगड़ी बात बनाएँगे। माँ सीता से तुलसीदासजी प्रार्थना करते हैं कि हे माँ आप मुझे अपने वचन द्वारा सहायता कीजिए यानि आशीर्वाद दीजिए कि मैं भवसागर पार करानेवाले श्रीराम का गुणगान सदैव करता रहूँ ।
दूसरे पद्यांश में कवि अत्यंत ही भावुक होकर प्रभु से विनती करता है कि हे प्रभु आपके सिवा मेरा दूसरा कौन है जो मेरी सुधि लेगा। मैं तो जनम-जनम से आपकी भक्ति का भूखा हूँ। मैं तो दीन-हीन दरिद्र हूँ। मेरी दयनीय अवस्था पर करुणा कीजिए ताकि आपकी भक्ति में सदैव तल्लीन रह सकूँ ।
प्रश्न 13. ‘रटत रिरिहा आरि और न, कौर हीं ते काजु’- यहाँ ‘और’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर – प्रस्तुत काव्य पंक्ति तुलसी के दूसरे पद से ली गयी हैं। इसमें ‘औरन’ का प्रयोग-दूसरा कोई नहीं के अर्थ में हुआ है। लेकिन भाव राम भक्ति से है। यानि श्रीराम से है।
तुलसी दास कहते हैं कि हे श्रीरामचंद्रजी ! आज सबेरे से ही मैं आपके दरवाजे पर अड़ा बैठा हूँ | रें- रें करके रट रहा हूँ, गिड़गिड़ाकर भीख माँग रहा हूँ, मुझे और कुछ नहीं चाहिए एक कौर टुकड़े से ही काम बन जाएगा। यानि आपकी जरा-सी कृपा दृष्टि से मेरा सारा काम पूर्ण हो जाएगा । यानि जीवन सार्थक हो जाएगा । औरन का प्रयोग भक्ति के लिए प्रभु-कृपा जरूरी है के संदर्भ में हुआ है । यानि श्रीराम ही एकमात्र सहारा है, नहीं है । दूसरा कोई
प्रश्न 14. दूसरे पद में ‘दीनता’ और ‘दरिद्रता’ दोनों का प्रयोग क्यों किया गया ?
उत्तर – तुलसी ने अपने दूसरे पद में दीनता और दरिद्रता दोनों शब्दों का प्रयोग किया है । शब्दकोश के अनुसार दोनों शब्दों के अर्थ एक-दूसरे से सामान्य तौर पर मिलते-जुलते हैं, किन्तु प्रयोग और कोशीय आधार पर दोनों में भिन्नता है ।
(i) दीनता का शाब्दिक अर्थ है- निर्धनता, पराधीनता, हीनता, दयनीयता आदि ।
(ii) दरिद्रता का शाब्दिक अर्थ है- अपवित्रता, अरुचि, अशुद्धता, दरिद्रता और घोर गरीबी में जीनेवाला । निर्धनता के कारण समाज में व्यक्ति को प्रतिष्ठा नहीं मिलती है इससे भी उसे अपवित्र माना जाता है ।
(iii) दरिद्र दुर्भिक्ष और अकाल के लिए भी प्रयुक्त होता है ।
संभव है तुलसीदासजी अपनी दीन-हीन दशा के कारण अपने को अशुद्ध/ अशुचि के रूप में देखते हैं। एक का अर्थ गरीबी, बेकारी, बेबसी के लिए और दूसरे का प्रयोग अशुद्धि, अपवित्रता के लिए हुआ हो । तीसरी बात भी है- तुलसीदास जी जब इस कविता की रचना कर रहे थे तो उस समय भारत में भयंकर अकाल पड़ा था जिसके कारण पूरा देश घोर गरीबी, भुखमरी का शिकार हो गया था। हो सकता है कि अकाल के लिए भी प्रयोग किया हो । कवि अपने भावों के पुष्टीकरण के लिए शब्दों के प्रयोग में चतुराई तो दिखाते ही हैं । ।
प्रश्न 15. प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर – इस प्रश्न के उत्तर के लिए प्रथम पद का भावार्थ देखें ।
प्रश्न 16. तुलसदास का कवि परिचय लिखिए ।
उत्तर – इस प्रश्न के उत्तर के लिए कवि परिचय देखिए |
भाषा की बात
प्रश्न 1. दोनों पदों से सर्वनाम पद चुनें ।
उत्तर – (i) कवि तुलसी के प्रथम पद के सर्वनाम – कबहुँक, कछु, मोरियो, मोरिया कछु, सब , सो, कौन, मेरो, तब आदि सर्वनाम पद हैं ।
(ii) तुलसी के दूसरे पद में – हौं (मैं) और न (दूसरा कोई) सब, जैसी मोहुसे, कोउ, तिन्ह, तू, हौं, आदि पद सर्वनाम हैं ।
प्रश्न 2. दूसरे पद से अनुप्रास अलंकार के उदाहरण चुने |
उत्तर – तुलसी के प्रथम पद में अब अवसर, कछु, करुन कथा, अघी अघाई, दासी-द जानकी जग जननी, तरै तुलसी दास, गुन-गान आदि का अनुप्रास में प्रयोग हुआ है । अतः अनुप्रास अलंकार हैं। तुलसी के द्वितीय पद में रटत रिरिहा, आदि और, कलि कराल काल दारुन, कुभौति, कुसाजु हहरि हिय, साधु-समाजु, कतहुँ- कोउ, दानि दसरथ, ‘भूखा- भिखारी’ सुधा-सुनाजु का अनुप्रास प्रयोग हुआ है, अतः ये अनुप्रास अलंकार हैं ।
प्रश्न 3. पठित अंशों से विदेशज शब्दों को चुनें ।
उत्तर – गरीब निवाजु ।
प्रश्न 4. पठित पद किस भाषा में है ? उत्तर- पठित पद अवधी भाषा में लिखित है ।
प्रश्न 5 ‘कोढ़ में खाज होना’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर –दुःख पर दुःख होना यानि संकट पर संकट होना । घोर कष्ट के लिए प्रयुक्त हुआ है ।
प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों का खड़ी बोली रूप लिखें | –
उत्तर-
जनमको – जन्म से
तुलसिहि – तुलसी की
मोहुसे – मुझसे
कतहुँ – कहीं
हौं – मैं
भगति – भक्ति
कहूँ – कहना
इस आर्टिकल में आपने Bihar Board Class 12th hindi Book के काव्य खंड के Chapter 3 के सभी पद्य के भावार्थ एवं प्रश्न- उत्तर (Question-Answer) पढ़ा | अगर कोई सुझाव या परेशानी हो तो नीचे कमेंट में अपनी राय अवश्य दें | धन्यवाद |
Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 3 पद
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