Class 12 Hindi chapter 5 कवित्त | Bihar Board |BSEB 12th Hindi पद्यखंड Solution

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Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 5 कवित्त

Hello, इस वेबसाइट के इस पेज पर आपको Bihar Board Class 12th Hindi Book के काव्य खंड के Chapter 5 के सभी पद्य के भावार्थ एवं प्रश्न- उत्तर (Question-Answer) पढने को मिलेंगे साथ ही साथ कवि परिचय एवं आपके परीक्षा के दृष्टिकोण से ओर भी महत्वपूर्ण जानकारियां पढने को मिलेंगे | इस पूरे पेज में क्या-क्या है उसका हेडिंग (Heading) नीचे दिया हुआ है अगर आप चाहे तो अपने जरूरत के अनुसार उस पर क्लिक करके सीधा (Direct) वही पहुंच सकते है |Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 5 कवित्त

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Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 5 कवित्त

कवि परिचय

वीर रस के प्रसिद्ध कवि भूषण के जन्म-मृत्यु के बारे में विद्वानों में मतभेद है। उनका जन्म 1613 में माना जाता है। उनका वास्तविक नाम घनश्याम था। ‘भूषण’ उनकी उपाधि है, जो चित्रकूट के सोलंकी राजा रुद्र ने उन्हें दी थी । ये कानपुर के पास तिकवाँपुर के रहने वाले थे और जाति के कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे । भूषण को रीतिकाल के प्रसिद्ध कवियों – चिंतामणि तथा मतिराम का भाई म है। किन्तु कई विद्वानों को इसमें संदेह है। भूषण कई राजदरबारों में गये, किन्तु उन्हें सबसे अधिक संतुष्टि शिवाजी के दरबार में मिली। इन्हें शिवाजी के पुत्र शाहूजी एवं पन्ना के बुंदेला राजा छत्रसाल के दरबार में रहने का सौभाग्य मिला । ऐसी मान्यता है कि 102 वर्ष की दीर्घायु में सन् 1715 में उनका देहावसान हुआ।

रचनाएँ – उनकी तीन प्रसिद्ध रचनाएँ हैं- शिवराज भूषण, शिवाबावनी तथा छत्रसाल दशक । इनमें ‘शिवराज भूषण’ उनकी कीर्ति का आधार है।

काव्यगत विशेषताएँ- भूषण की वाणी में ओज और वीरता के भाव व्यक्त हुए उन्होंने अपने आश्रयदाताओं- शिवाजी तथा छत्रसाल की प्रशंसा में बहुत सुन्दर कवित्त लिखे हैं।
भाषा-शैली – भूषण की भाषा ओजमयी है। उनके शब्द सैनिकों की भाँति दौड़ते-भागते प्रतीत होते हैं। शब्दों की ध्वनि को सुनकर ही लगता है कि हाथी-घोड़े दौड़ रहे हैं । भूषण ने अपनी कविता में अलंकारों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है। अनुप्रास Kadu उनकी हर पंक्ति में बिखरा पड़ा है। रुपक, उपमा, यमक के उदाहरण भी देखते बनते हैं। एक उदाहरण देखिए
ऐल फैल खैल भैल, खलक में गैल- गैल गजन के ठेल पेल सैल उसलत है ।

कविता का भावार्थ

(1.)
इंद्र जिमि जंभ पर बाड़व ज्यौं अंभ पर,
रावन सदंर्भ पर रघुकुल राज है ।
पौन बारिबाह पर संभु रतिनाह पर,
ज्यौं सहस्रबाहु पर राम द्विजराज है ।
दावा द्रुम-दंड पर चीता मृग-झुंड पर,
भूषन बितुंड पर जैसे मृगराज हैं ।
तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर,
यौं मलेच्छ बंस पर सेर सिवराज हैं ।

भावार्थ- प्रस्तुत ‘कवित्त’ में महाकवि भूषण ने राष्ट्रनायक छत्रपति शिवाजी की महिमा का गुणगान किया है। कवि कहता है कि जिस प्रकार इन्द्र का जम-यम पर आधिपत्य है, वाड़वाग्नि जैसे सागर के जल का शमन करते रहती है, ठीक उसी प्रकार रघुकुल के राजा श्री रामचन्द्रजी का घमंडी रावण पर राज है ।

जिस प्रकार पवन बादलों को तितर-वितर कर देता है, तथा भगवान शिव को कामदेव पर अधिकार प्राप्त है। जैसे सहस्रार्जुन पर परशुराम ने विजय पायी थी ।

जंगल की आग यानि दावाग्नि जिस प्रकार जंगल के वृक्षों की टहनियों को जला देती है । जिस प्रकार चीता (शेर) मृग – झुंड पर वार करता है, भूषण कवि कहते हैं कि ठीक उसी प्रकार हाथी पर सवार हमारे क्षत्रपति शिवाजी मृगराज की तरह सुशोभित हो रहे हैं, यानि शेर बनकर गर्जना कर रहे हैं

जिस प्रकार तेज (सूर्य) के आगे तम का साम्राज्य विनष्ट हो जाता है जिस प्रकार कृष्ण ने कंस का विनाश कर विजय पायी थी ठीक उसी प्रकार मलेच्छ वंश पर यानि औरंगजेब पर शेरों के शेर हमारे क्षत्रपति शिवाजी का भय व्याप्त है। यानि क्षत्रपति शिवाजी का व्यक्तित्व एक सूरमा का है, एक महान योद्धा के गुणों से श्री संपन्न हैं। उनमें अटूट देशभक्ति है। संस्कृति के प्रति रक्षा का भाव है। दीन-हीन अबलाओं के प्रति न्यायोचित भाव एवं व्यवहार हैं । महाराज शिवाजी का व्यक्तित्व हमारे लिए वंदनीय है, पूजनीय है ।

प्रस्तुत ‘कवित्त’ में शिवाजी का चरित्र एक राष्ट्रनायक का चरित्र है । एक देशभक्त का चरित्र है | जुझारू संकल्प शक्ति से पूर्ण महामानव का चरित्र है। भूषण की दृष्टि में क्षत्रपति शिवाजी महाराज एक जननायक हैं, लोकनायक हैं। धीरता, वीरता, गंभीरता के प्रतीक पुरुष हैं। वे सच्चे अर्थ में एक राष्ट्रवीर हैं ।

निकसत म्यान ते मयूखें, प्रलै- भानु कैसी,
फारै तम- तोम से गयंदन के जाल को ।
लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिनि सी,
रुद्रहि रिझावै दै दै मुंडन की माल को ।
लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,
कहाँ लौं बखान करौं तेरी करवाल को ।
प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,
कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल को ।

भावार्थ – इस कविता में राजा छत्रसाल की वीरता का सांगोपांग वर्णन है । रणक्षेत्र में छत्रसाल की तलवार प्रलयंकारी सूर्य की किरणों के समान प्रखर और प्रचण्ड रूप धारण कर म्यान से निकलती है। वह विशाल हाथियों के समूह जैसे गहन अंधकार को छिन्न-भिन्न का डालते हैं। कहने का भाव यह है कि गाजर-मूली की भाँति हाथियों को काट गिराती है। शत्रुओं की गर्दन से यह नागिन की तरह लपक कर जा लिपटती है । इस प्रकार देखते-देखते मुंडों का ढेर लगा देती है । कवि कहता है कि हे बलिष्ठ और विशाल भुजावाले महाराजा छत्रसाल ! मैं आपकी तलवार का गुणगान कहाँ तक करूँ । आपकी तलवार शत्रु- योद्धाओं के कटक-जाल को काट-काट कर रणचण्डी की भाँति किलकारी भरती हुई काल ( मृत्यु, विनाश) को ग्रास (भोजन) बनाती है ।

प्रस्तुत कविता वीर रस की है । इस कविता में युद्धक्षेत्र का सफल चित्रण हुआ है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. भूषण हिन्दी कविता में रीतिकाल के किस धारा के कवि हैं ? इनका हिन्दी जनता में बहुत सम्मान का कारण क्या है ?

उत्तर- भूषण हिन्दी कविता में रीतिकाल के रीतिमुक्त काव्यधारा के कवि हैं । ये हिन्दी साहित्य में जातीय स्वाभिमान, आत्मगौरव, शौर्य एवं पराक्रम के कवि हैं। वीर रस के इस महान कवि ने फड़कती हुई मुक्तक शैली में छत्रपति शिवाजी और बूंदेल वीर राजा छत्रसाल की वास्तविकता पर आधारित विरुदावलियाँ गाई हैं, इसी कारण हिन्दी जनता में सम्मान है ।

प्रश्न 2. भूषण की प्रमुख कृतियों का उल्लेख करें ?

उत्तर- महाकवि भूषण द्वारा रचित शिवराज भूषण (384 छंदों में 105 अलंकारों का निरुपण और छत्रपति शिवाजी की प्रशस्ति करने वाले मुक्तकों का संग्रह) उत्कृष्ण काव्य ग्रंथ है । शिव व वावनी ( 52 मुक्तकों में शिवाजी की वीरता का बखान) छत्रसाल दशक (10 छंदों में छत्रसाल की वीरता का यशोगान ) प्रमुख हैं । अप्राय – भूषण हजारा, भूषण उल्लास, दूषण उल्लास, कुछ स्फुट पद्य आदि भी हैं ।

प्रश्न 3. भूषण की पारिवारिक पृष्ठभूमि का परिचय दें ।

उत्तर- भूषण का जन्म 1613 ई० में उत्तरप्रदेश के तिवकवाँपुर ग्राम कानपुर के निकट में हुआ था। पिता रत्नाकर त्रिपाठी थे । रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि चिंतामणि त्रिपाठी और मतिराम संभवत: भूषण के भाई थे ।

प्रश्न 4. ‘शिवराज भूषण’ कैसी कृति है ? उल्लेख करें ।

उत्तर- महाकवि भूषण रचित ‘शिवराज भूषण’ छत्रपति शिवाजी के वीरतापूर्ण कार्यों की प्रशंसा में लिखा गया काव्य है। इसमें 384 छंदों एवं 105 अलंकारों का प्रयोग हुआ है । इन कविता उनके अद्भुत कारनामों का वर्णन है । छत्रपति में रहकर भूषण ने उनके व्यक्तित्व से करते हुए

प्रश्न 5. भूषण के प्रमुख आश्रयदाता राजाओं की चर्चा करते हुए भूषण के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालें ।

उत्तर- भूषण हिन्दी साहित्य के वीर रस के प्रसिद्ध कवि थे। इन्होंने छत्रपति शिवाजी और पन्ना के वीर बुंदेला राजा छत्रसाल के आश्रय में रहकर वीरोचित भाव से पूर्ण काव्य रचना की। भूषण का हृदय उदार एवं राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत था। उनके काव्य के नायक दो महापुरुष छत्रपति शिवाजी और छत्रसाल जी थे । भूषण हिन्दी के वीर रस के कवि थे । इनकी कविताओं में जातीय स्वाभिमान, आत्मगौरव, शौर्य एवं पराक्रम का दर्शन होता है ।

प्रश्न 6. आचार्य कवि या रीतिबद्ध कवि किसे कहते हैं ?

उत्तर – हिन्दी साहित्स के रीतिकाल में रस- अलंकार नायिका भेद आदि का निरूपण करते हुए उदाहरण के रूप में कविता करनेवाले कवियों की एक लंबी परंपरा थी। ऐसे कवियों को ‘आचार्य कवि’ या ‘रीतिबद्ध’ कवि कहते हैं । भूषण भी एक रीतिबद्ध कवि ही थे किन्तु अंलकार-निरूपण करते हुए आचार्य रूप पर कवि रूप भारी पड़ गया । वे प्रधान प्रवृत्ति और भाव-प्रवाह से अलग हटकर वीर रस की कविताएँ लिखने लगे । वे स्वतत्रं पथ की ओर अग्रसर हुए ।

प्रश्न 7. भूषण ने अपने काव्य में किस रस की प्रधानता दी और क्यों ?

उत्तर- भूषण रीतिकाल के रीतिमुक्त धारा के प्रखर कवि थे । इन्होंने अलंकार निरूपण तो किया किन्तु प्रधान प्रवृत्ति और भाव प्रवाह से अलग हटकर स्वतंत्र पथ का निर्माण करते हुए वीर रस की कविताएँ ही लिखी । इस कारण उन्होंने शृंगारिक कविताएँ लिखकर ओजपूर्ण शैली में वीरकाव्य की रचना की ।

प्रश्न 8. “इंद्र जिमि जंभ पर बाड़व ज्यौं अंभ पर, रावण सदंर्भ पर रघुकुल राज है – पंक्तियों के आधार पर भूषण के काव्य सौंदर्य पर प्रकाश डालें ।

उत्तर- जिस प्रकार इन्द्र का यम पर अधिकार है, बड़वाग्नि जैसे समुद्र के जल को शांत करती है, ठीक उसी प्रकार रघुकुल के राजा श्री रामचंद्र जी का घंमडी रावण पर राज है । इस कवित्त में महाकवि भूषण ने राष्ट्रवीर छत्रपति शिवाजी के व्यक्तित्व की तुलना राम, इन्द्र, वड़वाग्नि से करते हुए उनकी महिमा का गान किया है। उनकी प्रखरता और तेजस्विता की प्रशंसा की है ।

प्रश्न 9. ‘दावा द्रुम-दंड पर चीता मृग- झुंड पर,
भूषन वितुंड पर जैसे मृगराज हैं ।”
इन पंक्तियों का भावार्थ बतलाएँ ।

उत्तर – जंगल की आग यानि दावाग्नि जिस प्रकार जंगल के वृक्षों की टहनियों को जला देती है, जिस प्रकार चीता (शेर) मृग – झुंड पर ही वार करता है ठीक उसी प्रकार हाथी पर मृगराज सिंह भारी पड़ते हैं। इन पंक्तियों के द्वारा महाकवि भूषण छत्रपति शिवाजी के निर्भीक एवं तेजस्वी व्यक्तित्व की तुलना करते हुए उनकी महिमा की प्रशंसा करते हैं यानि छत्रपति शिवाजी भी शत्रु- दल पर भारी पड़ते हैं ।

प्रश्न 10. तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर,
यौं मलेच्छ बंस पर सेर सिवराज हैं,
इन पंक्तियों में भूषण ने क्या कहना चाहा है ?

उत्तर- महाकवि भूषण उक्त पंक्तियों के माध्यम से छत्रपति शिवाजी के पराक्रम की प्रशंसा करते हैं । सूर्य प्रकाश जिस प्रकार अंधकार को विनष्ट कर देता है। कृष्ण जिस प्रकार कंस पर भारी पड़ते हैं उसी प्रकार मुसलमानों पर हमारे शेर शिवाजी भारी पड़ते हैं। इन पंक्तियों में छत्रपति शिवाजी की शौर्य गाथा है ।

प्रश्न 11. – “निकसत म्यान ते मयूखै प्रलै भानु कैसी,
फारै तम-तोम से गयंदन के जाल को ॥
का भाव स्पष्ट करें ।

उत्तर – कविवर भूषण कहते हैं कि छत्रसाल की म्यान से निकली तलवार सूर्य की प्रखर किरणों के समान प्रखर है यानि तेज धार वाली है। जिस प्रकार सूर्य की किरणें अंधकार को मिटा देती है, उसके जाल को निष्प्रभ कर देती है, ठीक उसी प्रकार छत्रसाल की तलवार भी विशाल हाथियों के समूह को गाजर-मूली की तरह काट गिराती है ।

प्रश्न 12. “लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिनि सी, रुद्रहि रिझावै दै दै मुंडन की माल को ।”
के आधार पर भूषण के मंतव्य को स्पष्ट करें।

उत्तर – छत्रसाल की तलवार शत्रुओं के गर्दन से नागिन की तरह जा लिपटती है । इस प्रकार मुंड़ों की ढेर लगा देती है। कहने का आशय यह है कि छत्रसाल की तलवार नागिन सदृश है जो लपक लपककर शत्रुओं की गर्दनों को काटकाट कर ढेर लगा देती है, ऐसा लगता है कि भगवान शिव को मुंडों की माला देकर मना रही है। इन पंक्तियों में छत्रसाल की वीरता और उनके तलवार की तेज गति, का सफल चित्रण है।

प्रश्न 13. “लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली ।
कहाँ लौं बखान करौं तेरी करवाल को ॥”
के आधार पर भूषण के कथन की व्याख्या करें ।

उत्तर- इन पंक्तियों के माध्यम से महाकवि भूषण कहते हैं कि बलिष्ठ और विशाल भुजावाले ‘‘महाराजा छत्रसाल ” ! मैं आपकी तलवार के गुणगान कहाँ तक करूँ ! आपकी तलवार शत्रुओं को काट-काटकर काल का ग्रास बनाती है । इन पंक्तियों में वीर छत्रसाल की वीरता, धीरता, तेजस्विता, रणकौशल के साथ उनकी प्रखर धारवाली तलवार की भी प्रशंसा है ।

व्याख्याएँ

प्रश्न 1. “पौन बारिबाह पर संभु रतिनाह पर, ज्यौं सहस्रबाहु पर राम द्विगराज हैं । “

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगन्त भाग- II के भूषण के ‘कवित्त’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में छत्रपति शिवाजी के प्रखर, तेजस्वी व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। यह प्रसंग शिवाजी की सुकीर्त्तियों से संबंधित है।
प्रस्तुत पंक्तियों में महाकवि भूषण कहते हैं कि जिस प्रकार पवन बादलों को तितर-वितर कर देता है, जिस प्रकार भगवान शिव कामदेव पर अधिकार कर लेते हैं, जिस प्रकार परशुराम सहस्रार्जुन पर विजय पा लेते हैं, ठीक उसी प्रकार छत्रपति शिवाजी भी अपने अरि शत्रू पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। कहने का भाव यह है कि पवन, भगवान शिव, पाशुराम के व्यक्तित्व के समान ही हमारे राष्ट्रनायक छत्रपति शिवाजी का व्यक्तित्व है। उनमें भी देवत्व है, तेजस्विता है, प्रखरता है, शौर्य है, आत्मगौरव है ।

उपरोक्त पंक्तियों में महाकवि भूषण ने पवन, भगवान शिव एवं परशुराम आदि के गुणों से संपन्न छत्रपति शिवाजी के चेतना संपन्न व्यक्तित्व की प्रशंसा की है ।

प्रश्न 2. “दावा द्रुम-दंड पर चीता मृग-झुंड पर,
भूषन बितुंड पर जैसे मृगराज हैं।”

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगन्त भाग- II के भूषण के ‘कवित्त’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में छत्रपति शिवाजी के प्रखर, तेजस्वी व्यक्तित्व की तुलना
अन्य प्रखर तथा शक्ति सम्पन्न जीवों (प्राणियों) से करते हुए भूषण ने उनके पराक्रम का वर्णन ओजपूर्ण शैली में किया है ।

प्रस्तुत पंक्तियों के द्वारा कवि के कहने का आशय यह है कि जिस प्रकार दावाग्नि जंगल के वृक्षों की टहनियों को जला देती है। जिस प्रकार चीता (शेर) मृग-झुंड पर वार करता है, भूषण जैसे अन्य कवियों पर भारी पड़ते हैं, जिस प्रकार मृगराज (शेर) हाथियों के झुंड पर भारी पड़ता है ठीक उसी प्रकार छत्रपति शिवाजी अरिदल पर भारी पड़ते हैं। कहने का अर्थ यह है कि छत्रपति शिवाजी दावाग्नि की तरह तेजस्वी महापुरुष हैं। शेर की तरह निर्भीक हैं। एवं मृगराज की तरह स्वयं महाराजा हैं । वीरोचित गुणों से संपन्न देशभक्त, न्यायप्रिय, पराक्रमी और जुझारू संकल्प शक्ति से संपन्न महामानव हैं ।

प्रश्न 3. “लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,
कहाँ लौं बखान करौं तेरी करवाल को ।”

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगन्त भाग- II के भूषण के ‘कवित्त’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में पन्ना नरेश बूंदेलावीर छत्रसाल की वीरता, धीरता, पौरुष का वर्णन है। ये पंक्तियों छत्रसाल के व्यक्तित्व से संबंधित हैं ।

उपरोक्त पंक्तियों में महाकवि भूषण ने महावीर छत्रसाल के सर्वगुण संपन्न व्यक्तित्व की भूरि-भूरि प्रशंसा की है । भूषण कहते हैं; हे बलिष्ठ और विशाल भुजावाले महाराजा छत्रसाल ! मैं आपकी तलवार का गुणगान कहाँ तक करूँ । आपकी तलवार शत्रु- योद्धाओं के कटक-जाल को काट-काटकर रणचंडी की भाँति किलकारी भारती हुई काल को ग्रास बनाती है ।

उक्त पंक्तियों में भूषण ने महाबली छत्रसाल की तलवार की प्रशंसा करते हुए प्रकरान्तर से महायोद्धा के गुणों से संपन्न, संस्कृति और स्मिता के रक्षक छत्रसाल की वीरता का गुणगान किया है।

प्रश्न 4. “निकसत म्यान ते मयूखें, प्रलै-भानु कैसी |फारै तम-तोम से गयंदन के जाल को ।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगन्त भाग-II के भूषण के ‘कवित्त’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में छत्रसाल की तलवार की प्रखरता का वर्णन है । यह प्रसंग छत्रसाल की तलवार की तेजधार की गुणवत्ता से जुड़ा हुआ है|

उपरोक्त पंक्तियों में महाकवि भूषण ने राजा छत्रसाल की वीरता का सांगोपांग वर्णन किया है। रणक्षेत्र में छत्रसाल की तलवार प्रलयंकारी सूर्य की किरणों के समान प्रखर और प्रचंड रूप रण कर म्यान से निकलती है । वह विशाल हाथियों के समूह जैसे गहन अंधकार को छिन्न-भिन्न कर डालते हैं। कहने का भाव यह है कि गाजर-मूली की तरह वह हाथियों को काट गिरती है ।

उक्त पंक्तियों के द्वारा महाराजा छत्रसाल की ‘युद्धवीर’ के रूप मे प्रशंसा करते हुए कवि ने काव्य-सृजन किया है । शौर्य संपन्न छत्रसाल महान राष्ट्रवीर हैं, राष्ट्रनायक हैं ।

Class 12 Hindi chapter 5 कवित्त

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. शिवाजी की तुलना भूषण ने किन-किन से की है ?

उत्तर- प्रस्तुत कवित्त में महाकवि भूषण ने छत्रपति शिवाजी महाराज की तुलना इन्द्र, वड़वाग्नि (समुद्र की आग), श्रीराम, पवन, शिव, परशुराम, जंगल की आग, शेर (चीता) प्रकाश अर्थात् सूर्य और कृष्ण से की है।

प्रश्न 2. शिवाजी की तुलना भूषण ने भृगराज से क्यों की है ?
उत्तर- महाकवि भूषण ने अपने कवित्त में क्षत्रपति शिवाजी की महिमा का गुणगान किया है। महाराज शिवाजी की तुलना कवि ने इन्द्र, समुद्र की आग, श्रीरामचन्द्रजी, पवन, शिव, परशुराम, जंगल की आग, शेर (चीता), सूर्य के प्रखर प्रकाश और कृष्ण से की है। छत्रपति शिवाजी के व्यक्तित्व में उपरोक्त सभी देवताओं के गुण विराजमान थे। जैसे उपरोक्त सभी अंधकार, अराजकता, दंभ, अत्याचार को दूर करने में सफल हैं, ठीक उसी प्रकार मृगराज अर्थात् शेर के रूप में महाराज शिवाजी मलेच्छ वंश के औरंगजेब से लोहा ले रहे हैं । वे अत्याचार और शोषण दमन के विरुद्ध लोकहित के लिए संघर्ष कर रहे हैं। छत्रपति का व्यक्तित्व एक प्रखर राष्ट्रवीर, राष्ट्रचिंतक, सच्चे कर्मवीर के रूप में हमारे सामने दृष्टिगत होता है । जिस प्रकार इन्द्र द्वारा यम का, वाड़वाग्नि द्वारा जल का, और घमंडी रावण का दमन श्रीराम करते हैं ठीक उसी प्रकार शिवाजी का व्यक्तित्व है ।

महावीर शिवाजी, भूषण कवि के राष्ट्रनायक हैं। इनके व्यक्तित्व के सभी पक्षों को कवि ने अपनी कविताओं में उद्घाटित किया है। छत्रपति शिवाजी को उनकी धीरता, वीरता और न्यायोचित सद्गुणों के कारण ही मृगराज के रूप में चित्रित किया है ।

प्रश्न 3. छत्रसाल की तलवार कैसी है ? वर्णन कीजिए ।

उत्तर- प्रस्तुत कविता में महाराजा छत्रसाल की तलवार की भयंकरता का चित्रण हुआ है । उनकी तलवार सूर्य की किरणों के समान प्रखर और प्रचण्ड है। उनकी तलवार की भयंकरता से शत्रु दल थर्रा उठता है ।

उनकी तलवार युद्धभूमि में प्रलयंकारी सूर्य की किरणों की तरह म्यान से निकलती है । वह विशाल हाथियों के झुंड को क्षणभर में काट-काटकर समाप्त कर देती है। हाथियों का झुण्ड गहन अंधकार की तरह प्रतीत होता है । जिस प्रकार सूर्य किरणों के समक्ष अंधकार का साम्राज्य समाप्त हो जाता है की ठीक उसी प्रकार तलवार की तेज के आगे अंधकार रूपी हाथियों का समूह भी मृत्यु को प्राप्त करता है ।

छत्रसाल की तलवार ऐसी नागिन की तरह है जो शत्रुओं के गले में लिपट जाती है और मुण्डों की भीड़ लगा देती है, लगता है कि रूद्रदेव को रिझाने के लिए ऐसा कर रही है । महाकवि भूषण छत्रसाल की वीरता धीरता से मुग्ध होकर कहते हैं कि हे बलिष्ठ और विशाल भुजा वाले महाराज छत्रसाल ! मैं आपकी तलवार का गुणगान कहाँ तक करूँ ? आपकी तलवार शत्रु – योद्धाओं के कटक जाल को काट-काटकर रणचण्डी की तरह किलकारी भरती हुई काल को भोजन कराती है ।

प्रश्न 4. नीचे लिखे अवतरणों का अर्थ स्पष्ट करें

(क) लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिनि सी,
रुद्रहि रिझावै दै दै मुंडन की माल को ।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ भूषण की काव्यकृति छत्रसाल दशक कविताओं में से ली गयी हैं । संकलित की गयी

इन पंक्तियों में महाकवि भूषण ने छत्रसाल की तलवार की प्रशंसा की है । छत्रसाल की तलवार नागिन के समान है । वह शत्रुओं की गर्दन से नागिन के समान लपटकर जा मिलती है और देखते-देखते नरमुंडों के ढेर लगा देती है। मानो भगवान शिव को रिझा रही हो । इस प्रकार छत्रसाल की तलवार की महिमा का गान कवि ने किया है । छत्रसाल की तलवार का कमाल प्रशंसा योग्य है। इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है । भयंकर रूप के चित्रण के कारण रौद्र रस का प्रयोग झलकता है ।

(ख) प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,
कालिकासी किलकि कलेऊ देति काल की ।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ भूषण कवि की कविता पुस्तक छत्रसाल दशक से ली गयी हैं जो पाठ्यपुस्तक में संकलित है। इस अवतरण में वीर रस के प्रसिद्ध कवि भूषण जी ने महाराजा छत्रसाल की तलवार का गुणगान किया है। तलवार की क्या-क्या विशेषताएँ हैं, आगे देखिए । इन पंक्तियों में कवि के कहने का भाव यह है कि छत्रसाल बुंदेला की तलवार इतनी तेज धारवाली है कि पलभर में ही शत्रुओं को गाजर- -मूली की तरह काट-काटकर समाप्त कर देती है। साथ ही काल को भोजन भी प्रदान करती है। यह तलवार साक्षात् कालिका माता के समान है। वैसा ही रौद्र रूप छत्रसाल की तलवार भी धारण कर लेती है ।

यहाँ अनुप्रास और उपमा अलंकार की छटा निराली है।

प्रश्न 5. भूषण रीतिकाल की किस धारा के कवि हैं, वे अन्य रीतिकालीन कवियों से कैसे विशिष्ट हैं ?

उत्तर – महाकवि भूषण रीतिकाल के एक प्रमुख कवि हैं, किन्तु इन्होंने रीति-निरूपण में शृंगारिक कविताओं का सृजन किया। उन्होंने अलंकारिकता का प्रयोग अपनी कविताओं में अत्यधिक किया है ।

अलंकार निरूपक आचार्यों में मतिराम, गोप, रघुनाथ, दलपति आदि और भी कुछ कवि आते हैं ।

। इस प्रकार भूषण शृंगार रस के आलंबन नायक-नायिकाओं के भेदोपभेदों के निरूपक रीति काव्य परंपरा के कवि हैं । अलंकार निरूपक रीति कवि के रूप में भूषण को ख्याति प्राप्त महाकत्रि भूषण का आर्विभाव रीतिकाल में हुआ । उस समय की समस्त कविताओं का विषय था- नख-शिखा और नायिका भेद । अपने आश्रयदाताओं को प्रसन्न करना और वाहवाही लूटना उनकी कविता का उद्देश्य था । अतः तब कविता स्वाभाविक उद्गार के रूप में नहीं होती थी वरन धनोपार्जन के साधन के रूप में थी । ऐसे ही समय में महाकवि भूषण का आविर्भाव हुआ। परन्तु उनका उद्देश्य कुछ और था । अतएव देश की करुण पुकार से उनका अंतर्मन गुंजरित हुआ | फलस्वरूप उनके काव्य में गार की धारा प्रवाहित नहीं हुई वरन वीर रस की धारा फूट पड़ी । ऐसी परिस्थिति में कहा जायगा कि वे तत्कालीन काव्यधारा के विरुद्ध प्रतीत होते हैं। परन्तु उनकी महत्ता सुरक्षित कही जाएगी। इसका एकमात्र कारण यही है कि उनकी कविता कवि-कीर्ति संबंधी एक अविचल सत्य का दृष्टांत है ।

प्रश्न 6. आपके अनुसार दोनों छंदों में अधिक प्रभावी कौन है और क्यों ?

उत्तर- पाठ्य पुस्तक के दोनों कवित्त छंदों में अधिक प्रभावकारी प्रथम छंद है । इसमें महाकवि भूषण ने राष्ट्रनायक छत्रपति शिवाजी के वीरोचित गुणों का गुणगान किया है। कवि ने अपने कवित्त में छत्रपति शिवाजी के व्यक्तित्व के गुणों की तुलना अनेक लोगों से करते हुए लोकमानस में उन्हें महिमामंडित करने का काम किया है । – कवि ने कथन को प्रभावकारी बनाने के लिए अनुप्रास और उपमा अलंकारों का प्रयोग कर अपनी कुशलता का परिचय दिया है। वीर रस में रचित इस कवित्त में अनेक प्रसंगों की तुलना करते शिवाजी के जीवन से तालमेल बैठाते हुए एक सच्चे राष्ट्रवीर के गुणों का बखान किया है। इन्द्र, राम, कृष्ण, परशुराम, शेर, कृष्ण, पवन आदि के गुण कर्म और गुण धर्म से शिवाजी के व्यक्तित्व की तुलना की गयी है। वीर शिवाजी शेरों के शेर हैं, जिन्होंने अपने अभियान में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा । गुण भाषा में ओजस्विता, शब्द प्रयोग में सूक्ष्मता, कथन के प्रस्तुतीकरण की दक्षता भूषण के कवि हैं। अनेक भाषाओं के ठेठ और तत्सम, तद्भव शब्दों का भी उन्होंने प्रयोग किया है ।

इस आर्टिकल में आपने Bihar Board Class 12th hindi Book के काव्य खंड के Chapter 5 के सभी कवित्त के भावार्थ एवं प्रश्न- उत्तर (Question-Answer) पढ़ा | अगर कोई सुझाव या परेशानी हो तो नीचे कमेंट में अपनी राय अवश्य दें | धन्यवाद |

Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 5 कवित्त

इसे भी पढ़ें –  

Chapter :- 1 कड़बक
Chapter :- 2 सूरदास के पद
Chapter :- 3 तुलसीदास के पद
Chapter :- 4 छप्पय
Chapter :- 5 कवित्त
Chapter :- 6 तुमुल कोलाहल कलह में
Chapter :- 7 पुत्र वियोग
Chapter :- 8 उषा
Chapter :- 9 जन-जन का चेहरा एक
Chapter :- 10 अधिनायक
Chapter :- 11 प्यारे नन्हें बेटे को
Chapter :- 12 हार-जीत
Chapter :- 13 गाँव का घर

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