जब मटर वाले प्रयोग को अन्य विशेषकों के संदर्भ में दोहराया गया तो पता चला कि कभी – कभार F1 में ऐसा Phenotype आ जाता है जो किसी भी जनक से नहीं मिलता-जुलता और इनके बीच का सा लगता है। श्वान पुष्प (Snap Dragon) में पुष्प-रंग की वंशागति अपूर्ण प्रभावित को समझने के लिए अच्छा उदाहरण है। तद्रूप प्रजननी लाल फूलवाली (RR) और तद्रूप जननी सफेद फूल वाली (rr) प्रजाति के संकरण के परिणामस्वरूप F1 पीढ़ी गुलाबी फूलों (Rr) वाली प्राप्त हुई। जब इस F1 संतति को स्वयं परागित किया गया तो परिणामों का अनुपात 1(RR) लाल : 2 (Rr) गुलाबी : 1 (rr) सफेद था। अतः विपर्यासी लक्षणों के युग्म में, एक लक्षण दूसरे पर अपूर्ण रूप से प्रभावी होता है। यह घटना अपूर्ण प्रभाविता कहलाती है।
यहाँ पर जीनोटाइप अनुपात वही था जो किसी भी मेंडलीय एक संकरण के संकरण में संभावित होता, किंतु फीनोटाइप अनुपात अर्थात् 3:1 प्रभावी : अप्रभावी बदल गया । इस उदाहरण में R कारक r कारक पर पूर्णतः प्रभावी नहीं रहा, अतः लाल (RR), सफेद (rr) से गुलाबी (Rr) प्राप्त हो गया ।
अपूर्ण प्रभाविता से तात्पर्य उस प्रभाविता से होता है, जब कोई प्रभावी जीन कम दक्ष एंजाइम बनाने के कारण पूर्ण रूप से अपनी प्रभाव पीढ़ी में प्रदर्शित नही करता है। अपूर्ण प्रभाविता की खोज कार्ल कोरेन्स 1903 ईस्वी में की थी।
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