Class 12 Hindi chapter 1 कड़बक | Bihar Board |BSEB 12th Hindi पद्यखंड Solution

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Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 1 कड़बक

Hello, इस वेबसाइट के इस पेज पर आपको Bihar Board Class 12th hindi Book के काव्य खंड के Chapter 1 के सभी पद्य के भावार्थ एवं प्रश्न- उत्तर (Question-Answer) पढने को मिलेंगे साथ ही साथ कवि परिचय एवं आपके परीक्षा के दृष्टिकोण से ओर भी महत्वपूर्ण जानकारियां पढने को मिलेंगे | इस पूरे पेज में क्या-क्या है उसका हेडिंग (Heading) नीचे दिया हुआ है आप उस पर क्लिक करके सीधा (Direct) वही पहुंच सकते है |

Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 1 कड़बक

कवि परिचय

जीवनी- लेखक मालिक मुहम्मद जायसी का जन्म लगभग 1492 ईo में जायस, अमेठी, उत्तर प्रदेश में हुआ था | इनके पिता का नाम मलिक शेख ममरेज था। बचपन से ही लेखक मृदुभाषी, मनस्वी और स्वभावतः संत थे । चेचक हो जाने के कारण इनका स्वरूप सुंदर तो नहीं था वरन् वे बाईं आँख और कान से भी वंचित थे । बचपन में ही अनाथ हो जाने के कारण वे वाल्य काल से ही साधु-फकीरों के सानिध्य में भ्रमण करते रहे । जायस में रहते हुए आरंभिक काल में इन्होंने कुछ समय किसानी भी की थी किन्तु स्वभाव से संत होने के कारण इनका शेष जीवन एक सच्चे फकीर के रूप में गुजरा । इनका निधन अनुमानतः 1548 ई० में हुआ।

रचनाएँ – लेखक मलिक मुहम्मद जायसी की मुख्य रचनाएँ- पद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम, चित्र रेखा, कहरानाम (महरी बाईसी), मसाला या मसलानामा आदि है । इसके अतिरिक्त चंपावत, होलीनामा, इतरावत आदि भी रचनाएं हैं ।

साहित्यिक विशेषताएँ- मलिक मुहम्मद जायसी चौपाई- दोहा आदि कड़बक शैली में लिखने वाले कवि थे। इनके लिखे अनेक काव्य हैं । आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डा० माताप्रसाद गुप्त आदि अनेक विद्वानों द्वारा अलग-अलग ‘जायसी ग्रंथावली’ नाम से ग्रंथ संपादित हुआ है। जायसी की उज्जवल अमर कीर्ति का आधार है महान कथाकाव्य ‘पदमावत’ जिसमें चित्तौड़ नरेश रतनसेन और सिंहल द्वीप की राजकुमारी पद्मावती की प्रेमकथा, जिसका विकास जनश्रुतियों एवं आगे स्वयं कवि की सर्जनात्मक कल्पना से संभव हुआ है।

मलिक मुहम्मद जायसी ‘प्रेम की पीर’ के कवि हैं । मार्मिक अन्तर्व्यथा से भरा हुआ यह प्रेम अत्यंत व्यापक तथा गूढ़ आशयों वाला और महिमामय है । यह प्रेम अनुभूतिमय रसायनिक एवं इस अर्थ में क्रांतिकारी है कि यह विभिन्न पात्रों को अमिट चरित्रों के रूप में निखारते हुए उन्हें एक दिशा देकर परिणतियों तक पहुँचा देता है। खाँड़ जैसी मीठी और खालिस अवधी में लिखे काव्य में कवि की विशालहृदयता, मार्मिक अंतर्दृष्टि और लोकजीवन के विस्तृत ज्ञान की अभिव्यक्ति हुई है।

कविता का भावार्थ

कड़बक कविता का भावार्थ :-

कड़बक – 1

एक नैन कबि मुहमद गुनी । सोई बिमोहा जेई कवि सुनी ||

चाँद जइस जग बिधि औतारा । दीन्ह कलंक कीन्ह उजिआरा ।

जग सूझा एकई नैनाहाँ । उवा सूक अस नखतन्ह माहाँ ||

जौं लहि अंबहि डाभ न होई । तौ लहि सुगंध बसाइ न सोई ।

कीन्ह समुद्र पानि जौं खारा । तौ अति भएइ असूझ अपारा ।

जौं सुमेरु तिरसूल विनासा । भा कंचनगिरि लाग अकासा ।।

जौं लहि घरी कलंक न पर । काँच होइ नहिं कंचन करा ।

एक नैन जस दरपन औ तेहि निरभल भाउ ।

सब रूपवंत गहि मुख जोवहिं कइ चाउ ।।

भावार्थ – गुणवान मुहम्मद कवि को एक ही नेत्र था। किन्तु फिर भी उनकी कवि-वाणी में वह प्रभाव था कि जिसने भी सुना वही विभुग्ध हो गया। जिस प्रकार विधाता ने संसार में सदोष, किन्तु प्रभायुक्त चन्द्रमा को बनाया है, उसी प्रकार जायसी जी की कीर्ति उज्ज्वल थी किन्तु उनमें अंग-भंग दोष था। जायसी जी समदर्शी थे क्योंकि उन्होंने संसार को सदैव एक ही आँख से देखा । उनका वह नेत्र अन्य मनुष्यों के नेत्रों से उसी प्रकार अपेक्षाकृत अधिक तेज युक्त था, जिस प्रकार कि तारागण के बीच में उदित हुआ शुक्रतारा । जब तक आम्र फल में डाभ काला धब्बा (कोइलिया) नहीं होता तबतक वह मधुर सौरभ से सुवासित नहीं होता। समुद्र का पानी खारयुक्त होने के कारण ही वह अगाध और अपार है। सारे सुमेरु पर्वत के जिसके स्वर्णमय होने का एकमात्र यही कारण है कि वह शिव – त्रिशूल द्वारा नष्ट किया गया, स्पर्श से वह सोने का हो गया । जब तक घरिया अर्थात् सोना गलाने के पात्र में कच्चा सोना गलाया नहीं जाता जबतक वह स्वर्ण कला से युक्त अर्थात् चमकदार नहीं होता ।

जायसी अपने संबंध में गर्व से लिखते हुए कहते हैं कि वे एक नेत्र के रहते हुए भी दर्पण के समान निर्मल और उज्ज्वल भाव वाले हैं। समस्त रूपवान व्यक्ति अधिक उत्साह से उनके मुख की ओर देखा करते हैं। यानि उन्हें नमन करते हैं ।

नोट- कहते हैं कि जायसी बायीं आँख के अन्धे थे । यह एक अंग-दोष था, किन्तु जायसी जी ऐसा मानने से इनकार करते हैं । ” जग सूझा एनै कइ नाहाँ । उआ सूक जस नखतन्ह माँहा’ । आदि अनेक उक्तियों से वह अपने पक्ष की पुष्टि करते हैं । आशय है- अंगहीन होने पर भी गुणी व्यक्ति पूजनीय होता है ।

कड़बक – 2

मुहमद यहि कबि जोरि सुनावा । सुना जो पेम पीर गा पावा ।

जोरी लाइ रकत कै लेई । गाढ़ी प्रीति नैन जल मेई ।

आ मन जानि कबित अस कीन्हा । मकु यह रहै जगत महँ चीन्हा ।

कहाँ सो रतन सेनि अस राजा । कहाँ सुवा असि बुधि उपराजा ।

कहाँ अलाउद्दीन सुलतानू । कहँ राघौ जेइँ कीन्ह बखानू ।।

कहँ सुरूप पदुमावति रानी। कोइ न रहा जग रही कहानी ।

धनि सो पुरुख जस कीरति जासू । फूल मरै पै मरै न बासू |

केइँ न जगत जस बेंचा केइँ न लीन्ह जस मोल ।

जो यह पढ़ कहानी हम सँवरै दुइ बोल ॥

भावार्थ- ‘मुहम्मद जायसी कहते हैं कि मैंने इस कथा को जोड़कर सुनाया है और जिसने भी इसे सुना उसे प्रेम की पीड़ा प्राप्त हो गयी। इस कविता को मैंने रक्त की लेइ लगाकर जोड़ा है और गाढ़ी प्रीति को आँसुओं से भिंगो-भिंगोकर गीली किया है। मैंने यह विचार करके कविता की रचना किया है कि यह शायद मेरे मरने के बाद संसार में मेरी यादगार के रूप में रहे। वह राजा रत्नसेन अब कहाँ ? कहाँ है वह सुआ जिसने राजा रत्नसेन के मन में ऐसी बुद्धि उत्पन्न की ? कहाँ है सुलतान अलाउद्दीन और कहाँ है वह राघव चेतन जिसने अलाउद्दीन के सामने पद्मावती का रूप वर्णन किया। कहाँ है वह लावण्यमय ललना रानी पद्मावती | कोई भी इस संसार में नहीं रहा, केवल उनकी कहानी बाकी बची है। धन्य वही है जिसकी कीर्ति और प्रतिष्ठा स्थिर है। पुष्प भले ही नष्ट हो जाए परन्तु, उसकी कीर्ति रूपी सुगन्ध नष्ट नहीं होती ।

संसार में ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने अपनी कीर्ति बेची न हो और ऐसे कितने हैं जिन्होंने कीर्ति मोल न ली हो ? जो इस कहानी को पढ़ेगा दो शब्दों में हमें याद करेगा।

इसे भी पढ़ें – Bihar Board Class 10th Sanskrit Book Solution कक्षा 10 संस्कृत पीयूषम् भाग 2

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

• निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ :-

1. इनमें से जायसी की कौन-सी रचना है ?

उत्तर- (ख) कड़बक

2. मल्लिक मुहम्मद जायसी का जन्म हुआ था ?

उत्तर-(ग) 1492 ई० में

3. जायसी का जन्मस्थान था-

उत्तर-(घ) अमेठी

4. जायसी के पिता का नाम था –

उत्तर-(क) शेख ममरेज

5. जायसी थे –

उत्तर-(ग) फकीर

Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 1 कड़बक

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

कड़बक कविता का Question Answer :-

प्रश्न 1. ‘रकत के लेई’ का क्या अर्थ है ?

उत्तर – यहाँ पर लेखक ने लेई के रूपक से यह बताने की चेष्टा की है कि उसने अपने कथा के विभिन्न प्रसंगों को किस प्रकार एक ही सूत्र में बाँधा है। कवि कहता है कि मैंने अपने रक्त की लेई बनाई है अर्थात् कठिन साधना की है। यह लेई या साधना प्रेमरूपी आँसुओं से अप्लावित की गई है । कवि का व्यंग्यार्थ है कि इस कथा की रचना उसने कठोर सूफी साधना के फलस्वरूप की है और फिर इसको उसने प्रेमरूपी आँसुओं से विशिष्ट आध्यात्मिक विरह द्वारा पुष्ट किया है । लौकिक कथा को इस प्रकार अलौकिक साधना और आध्यात्मिक विरह से परिपुष्ट करने का कारण भी जायसी ने “अपनी काव्यकृति के द्वारा लोक जगत में अमरत्व प्राप्ति की प्रबल इच्छा बताया है ।

प्रश्न 2. कवि ने अपनी एक आंख से तुलना दर्पण से क्यों की है ?

उत्तर- महाकवि जायसी ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से इसलिए की है कि दर्पण जिस प्रकार स्वच्छ और निर्मल होता है ठीक उसी प्रकार कवि की आँख है । कोई भी व्यक्ति अपनी छवि जिस प्रकार साफ एवं स्पष्ट रूप से दर्पण में देख पाता है, ठीक उसी प्रकार कवि की आँख भी स्वच्छता और पारदर्शिता का प्रतीक है। एक आँख से अंधे होकर भी कवि काव्य-प्रतिभा से युक्त है, अतः वह पूजनीय है, वंदनीय है । कवि अपनी निर्मल वाणी द्वारा सारे जनमानस को प्रभावित करता है जिसके कारण सभी लोग कवि की प्रशंसा करते हैं और । करते हैं। जैसी छवि वैसा ही प्रतिबिम्ब दर्पण में उभरता है। ठीक उसी प्रकार कवि की निर्मलता और लोक कल्याणकारी भावना उनकी कविताओं में दृष्टिगत होता है ।

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कवि ने अपनी एक आँख से तुलना दर्पण से क्यों की है ?

उत्तर- महाकवि जायसी ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से इसलिए की है कि दर्पण जिस प्रकार स्वच्छ और निर्मल होता है, ठीक उसी प्रकार कवि की आंख है। कोई भी व्यक्ति अपनी छवि जिस प्रकार साफ एवं स्पष्ट रूप से दर्पण में देख पाता है, ठीक उसी प्रकार कवि की आँख भी स्वच्छता और पारदर्शिता का प्रतीक है। एक आँख से अंधे होकर भी कवि काव्य-प्रतिभा से युक्त है, अतः वह पूजनीय है, वंदनीय है। कवि अपनी निर्मल वाणी द्वारा सारे जनमानस को प्रभावित करता है जिसके कारण सभी लोग कवि की प्रशंसा करते है और नमन करते हैं। जैसी छवि वैसा ही प्रतिबिंब दर्पण में उभरता है। ठीक उसी प्रकार कवि की निर्मलता और लोक कल्याणकारी भावना उनकी कविताओं में दृष्टिगत होती है।

प्रश्न 2. पहले कड़बक में कलंक, काँच और कंचन से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- अपनी कविताओं में कवि ने कलंक, काँच और कंचन आदि शब्दों का प्रयोग किया है । इन शब्दों की कविता में अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं । कवि ने इन शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्ति देने का कार्य किया है ।

जिस प्रकार काले धब्बे के कारण चन्द्रमा कलंकित हो गया फिर भी अपनी प्रभा से जग को आलोकित करने का काम किया। जिस प्रभा के आगे चन्द्रमा का काला धब्बा ओझल हो जाता है, ठीक उसी प्रकार गुणीजन की कीर्तियों के सामने उनके एकाध दोष लोगों की नजरों से ओझल हो जाते हैं ।

कंचन शब्द के प्रयोग करने के पीछे कवि की धारणा है कि जिस प्रकार शिव त्रिशूल द्वारा नष्ट किए जाने पर सुमेरू पर्वत सोने का हो गया ठीक उसी प्रकार सज्जनों के संगति से दुर्जन भी श्रेष्ठ भानव बन जाता है। संपर्क और संसर्ग में ही यह गुण निहित है लेकिन पात्रता भी अनिवार्य है । यहाँ भी कवि ने गुण-कर्म की विशेषता का वर्णन किया है ।

काँच शब्द को सार्थकता भी कवि ने अपनी कविताओं में स्पष्ट करने की चेष्टा की है। बिना धारिया में (सोना गलाने के पात्र में कच्चा सोना गलाया जाता है, उसे धारिया कहते हैं) गलाए काँच (कच्चा सोना) असली स्वर्ण रूप को प्राप्त नहीं कर सकता है ठीक उसी प्रकार संसार में किसी मानव को बिना संघर्ष, तपस्या और त्याग के श्रेष्ठता नहीं प्राप्त हो सकती है।

प्रश्न 3. पहले कड़बक में व्यंजित जायसी के आत्मविश्वास का परिचय अपने शब्दों में दें।

उत्तर- महाकवि जायसी अपनी कुरूपता और एक आँख से अंधे होने पर शोक प्रकट नहीं करते है बल्कि आत्मविश्वास के साथ अपनी काव्य प्रतिभा के बल पर लोकहित की बातें करते हैं। प्राकृतिक प्रतीकों द्वारा जीवन में गुण की महत्ता की विशेषताओं का वर्णन करते हैं ।

जिस प्रकार चन्द्रमा काले धब्बे के कारण कलंकित तो हो गया किन्तु अपनी प्रभायुक्त आभा से सारे जग को आलोकित करता है। अतः उसका दोष गुण के आगे ओझल हो जाता है |

सुमेरु- पर्वत की यश गाथा भी शिव- त्रिशूल के स्पर्श बिना निरर्थक है । घरिया में तपाए बिना सोना में निखार नहीं आता है ठीक उसी प्रकार कवि का जीवन भी नेत्रहीनता के कारण दोष-भाव उत्पन्न तो करता है किन्तु उसकी काव्य-प्रतिभा के आगे सबकुछ गौण पड़ जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि का नेत्र नक्षत्रों के बीच चमकते शुक्र तारा की तरह है जिसके काव्य का श्रवण कर सभी जन मोहित हो जाते हैं।

प्रश्न 4. कवि ने किस रूप में स्वयं को याद रखे जाने की इच्छा व्यक्त की है ? उनकी इस इच्छा का मर्म बताएँ ।

उत्तर – कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी स्मृति के रक्षार्थ जो इच्छा प्रकट की है, उसका वर्णन अपनी कविताओं में किया है।

कवि का कहना है कि मैंने जान-बूझकर संगीतमय काव्य की रचना की है ताकि इस प्रबंध के रूप में संसार में मेरी स्मृति बरकरार रहे । इस काव्य-कृति में वर्णित प्रगाढ़ प्रेम सर्वथा नयनों की अश्रुधारा से सिंचित है यानि कठिन विरह प्रधान काव्य है ।

दूसरे शब्दों में जायसी ने उस कारण का उल्लेख किया है जिससे प्रेरित होकर उन्होंने लौकिक कथा का आध्यात्मिक विरह और कठोर सूफी साधना के सिद्धान्तों से परिपुष्ट किया है । इसका कारण उनकी लोकैषणा है। उनकी हार्दिक इच्छा है कि संसार में उनकी मृत्यु के बाद उनकी कीर्ति नष्ट न हो । अगर वह केवल लौकिक कथा- मात्र लिखते तो उससे उनकी कीर्त्ति चिरस्थायी नहीं होती। अपनी कीर्ति चिरस्थायी करने के लिए ही उन्होंने पद्मावती की लौकिक कथा को सूफी साधना की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर प्रतिष्ठित किया है। लोकैषणा भी मनुष्य की सबसे प्रमुख वृत्ति है ।

अंग्रेज कवि मिल्टन ने तो इसे श्रेष्ठ व्यक्ति की अंतिम दुर्बलता कहा है ।

प्रश्न 5. भाव स्पष्ट करें

जौ लहि अंबहि डांभ न होइ ।

तौ लहि सुगंध बसाइ न सोई ॥

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कड़बक (1) से उद्धृत की गयी हैं । इस कविता के रचयिता मलिक मु० जायसी जी है। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने अपने विचारों को प्रकट करने का काम किया है। जिस प्रकार आम में नुकीली डाभें नहीं निकलती तबतक उसमें सुंगध नहीं आता यानि आम में सुगंधि आने के लिए डाभ युक्त मँजिरियों का निकलना जरूरी है। डाभ के कारण आम की खुशबू बढ़ जाती है, ठीक उसी प्रकार गुण के बल पर व्यक्ति समाज में आदर पाने का हकदार बन जाता है। उसकी गुणवत्ता उसके व्यक्तित्व में निखार ला देती है ।

काव्य शास्त्रीय प्रयोग की दृष्टि से यहाँ पर अत्यंत तिरस्कृत वाक्यगत वाच्य ध्वनि है । यह ध्वनि प्रयोजनवती लक्षण का आधार लेकर खड़ी होती है । इसमें वाच्यार्थ का सर्वथा त्याग रहता है और एक दूसरा ही अर्थ निकलता है।

इन पंक्तियों का दूसरा विशेष अर्थ है कि जबतक पुरूष में दोष नहीं होता तबतक उसमें गरिमा नहीं आती है। डाभ-मंजरी आने से पहले आम के वृक्ष में नुकीले टोंसे निकल आते हैं ।

प्रश्न 6. रकत के लेई का क्या अर्थ है ?

उत्तर – यहाँ पर लेखक ने लेई के रूपक से यह बताने की चेष्टा की है कि उसने अपने कथा के विभिन्न प्रसंगों को किस प्रकार एक ही सूत्र में बाँधा है। कवि कहता है कि मैंने अपने रक्त की लेई बनाई है अर्थात् कठिन साधना की है। यह लेई या साधना प्रेमरूपी आँसुओं से अप्लावित की गई है । कवि का व्यंग्यार्थ है कि इस कथा की रचना उसने कठोर सूफी साधना के फलस्वरूप की है और फिर इसको उसने प्रेमरूपी आँसुओं से विशिष्ट आध्यात्मिक विरह द्वारा पुष्ट किया है । लौकिक कथा को इस प्रकार अलौकिक साधना और आध्यात्मिक विरह से परिपुष्ट करने का कारण भी जायसी ने “अपनी काव्यकृति के द्वारा लोक जगत में अमरत्व प्राप्ति की प्रबल इच्छा बताया है ।

प्रश्न 7. मुहम्मद यहि कबि जोरि सुनावा ।

अथवा, यहाँ कवि ने जोरि शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया है ?

उत्तर – मलिक मुहम्मद जायसी ने अपने जीवन काल में समय-समय पर लिखे गए प्रसंगों को एक व्यवस्थित प्रबंध के रूप में प्रस्तुत किया है । यह जोरि – जोड़ना यानि व्यवस्थित करने के लिए प्रयुक्त हुआ है ।

कवि ने विविध प्रसंगों या घटनाओं को एक साथ प्रबंध-स्वरूप में व्यवस्थित कर लोक जगत में अपनी काव्यकृति को प्रस्तुत किया है ।

कवि ने अपनी कविता में ‘प्रेमपीर’ की चर्चा की है। सूफी साधना का सर्वस्व है-प्रेमपीर। इस प्रेम पीर की चर्चा सभी सूफी कवियों ने अपनी काव्य कृतियों में की है । जब साधक किसी गुरु की कृपा से उस दिव्य सौंदर्य स्वरूपी परमात्मा की झलक पा लेता है और उसके पश्चात जब उसकी वृत्ति की संसार की ओर पुनः पुनरावृत्ति होती है तब उसका हृदय प्रेम की पीर या आध्यात्मिक विरह-वेदना से व्यथित हो उठता है। यह विरह वेदना या प्रेय की पीर ही साधक के कल्ब के कालुल्यों को धीरे-धीरे जलाती रहती है और जब कल्ब के कालुष्य नष्ट हो जाते हैं तब वह सरलता से भावना लोक में उस सौंदर्य स्वरूपी परमात्मा के सतत दर्शन करने में समर्थ होते हैं ।

प्रश्न 8. दूसरे कड़बक का भाव सौंदर्य स्पष्ट करें

उत्तर- इस प्रश्न का उत्तर भावार्थ में कड़बक 2 का पूरा भावार्थ है |

प्रश्न 9. व्याख्या करें :-

धनि सो पुरुख जस कीरति जासू ।

फूल मरै पै मरैन बासू ॥

उत्तर– प्रस्तुत पंक्तियाँ कड़बक के द्वितीय अंश से उद्धृत की गयी हैं ।

उपरोक्त पंक्तियों में कवि का कहना है कि जिस प्रकार पुष्प अपने नश्वर शरीर का त्याग कर देता है किन्तु उसकी सुगन्धि धरती पर परिव्याप्त रहती है, ठीक उसी प्रकार महान व्यक्ति भी इस धाम पर अवतरित होकर अपनी कीर्ति पताका सदा के लिए इस भुवन में फहरा जाते है। पुष्प सुगंध सदृश्य यशस्वी लोगों की भी कीर्त्तियाँ विनष्ट नहीं होती । बल्कि युग-युगान्तर तक उनकी लोक हितकारी भावनाएँ जन-जन के कंठ में विराजमान रहती है ।

दूसरे अर्थ में पद्मावती की लौकिक कथा को आध्यात्मिक धरातल पर स्थापित करते हुए कवि ने सूफी साधना के मूल मंत्रों को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया है । इस संसार की नश्वरता की चर्चा लौकिक कथा काव्यों द्वारा प्रस्तुत कर कवि ने अलौकिक जगत से सबको रू-ब-रू कराने का काम किया है । यह जगत तो नश्वर है केवल कीर्त्तियाँ ही अमर रह जाती हैं। लौकिक जीवन में अमरता प्राप्ति के लिए अलौकिक कर्म द्वारा ही मानव उस सत्ता को प्राप्त कर सकता है ।

अन्य पढ़ें –

भाषा की बात

प्रश्न 1. पर्यायवाची शब्द लिखें ।

नैन – आँख, नेत्र, चक्षु, दृष्टि, दीप्ति, रोशनी, प्रकाश, दीठि, दृगेन्द्रिय, नजर, निगाह, वीक्षा, सूझ, जोह, ज्योति, लोचन, अँखिया, अक्षि, ईक्षण, ऐन, चश्म, दीदा, दृष्टीन्द्रिय, नयना, नयन, नैना, आदि ।

आम – रसाल, चुतम्, अंब, आंब, आम्र, फलश्रेष्ठ ।

चंद्रमा – शशि, चाँद, कुमुदिनी – पति, अंबुज, अंशुमान, अमृतांशु, इन्द उडुप, कलाधर, कलानाथ, कांत, कलानिधि, तारेश,द्विजपति, तुषारांशु, चंदा, चंदर, चंद, छायांक आदि ।

रक्त – खून, प्राणद, रूधिर, रक्तक, रोहित, लहू, लोहित, लोइ शोषित, हिरोदक, कीलाल आदि ।

राजा – नरेन्द्र, नरेश, नृप, नृपति, नरेश्वर, नराधिप, धरणीधर, धराधीश, छत्रपति, जनेश्वर, पृथ्वीनाथ, पृथ्वीराज, पृथ्वी वल्लभ प्रजापति, प्रभु, बादशाह, भूपति, भूप, भूपाल मंडलेश आदि |

फूल – प्रसून, माल्य, सुगम, सुकुम, पुष्प, गुल, पीलु, पुष्पक, पुहुप, सुमन ।

प्रश्न 2. पहले कड़बक में कवि ने अपने लिए किन उपमानों की चर्चा की है, लिखें ।

उत्तर- पहले कड़बक में कवि ने चाँद, सूक, अंब, समुद्र, सुमेरू, घरी दर्पण आदि उपमानों का अपने लिए प्रयोग किए हैं। यानि अपनी तुलना उपरोक्त उपमानों से की है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखें

उत्तर –

  • त्रिरसूल – त्रिशूल
  • निरमल – निर्मल
  • नखत – नख
  • रकत – रक्त
  • पुरुख – पुरुष
  • दरपन – दर्पण
  • पानि – पानी
  • पेम – प्रेम
  • कीरति – कीर्ति

प्रश्न 4. दोनों कड़बक के रस और काव्य गुण क्या हैं ?

उत्तर – जायसी के दोनों कड़बकों में शांत रस का प्रयोग हुआ है। दोनों कड़वकों में माधुर्य गुण है |

प्रश्न 5. पहले कड़बक से संज्ञा पद चुनें ।

उत्तर – संज्ञा पद : नयन, कवि, मुहम्मद, चाँद, जग, विधि, अवतार, सूक, नख, अंब, डाभ, सुगंध, समुद्र, पानी, सुमेरु, तिरसूल, कंचन, गिरि, अकाश, धरी, काँच, कंचन, दरपन, पाउ, मुख ।

प्रश्न 6. दूसरे कड़बक से सर्वनाम पद को चुनें।

उत्तर – यह, सो, अस, यह, मकु, सो, कहाँ, अब, अस, कँह, जेई, कोई, जस, केई, जस, जो |

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Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 1 कड़बक

इसे भी पढ़ें –  

Chapter :- 1 कड़बक
Chapter :- 2 सूरदास के पद
Chapter :- 3 तुलसीदास के पद
Chapter :- 4 छप्पय
Chapter :- 5 कवित्त
Chapter :- 6 तुमुल कोलाहल कलह में
Chapter :- 7 पुत्र वियोग
Chapter :- 8 उषा
Chapter :- 9 जन-जन का चेहरा एक
Chapter :- 10 अधिनायक
Chapter :- 11 प्यारे नन्हें बेटे को
Chapter :- 12 हार-जीत
Chapter :- 13 गाँव का घर

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