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Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 2 पद
कवि परिचय
कवि का नाम :– सूरदास ।
कवि का जन्म :- 1478 (अनुमानित)
कवि का निधन :- 1583
जन्म-स्थान :- ‘सीही’ नामक ग्राम जो दिल्ली के निकट है।
निवास स्थान :- ब्रजक्षेत्र में क्रमशः ‘गऊघाट’ , वृन्दावन एवं पारसोली
अभिरुचि :- सत्संग, कृष्णाभक्ति, पर्यटन एवं वैराग्य।
दीक्षाकल :- 1509-10 अनुमानित।
कृतियाँ :- ‘सूरसागर’ , साहित्य लहरी , सूरसारावली आदि।
सूरदास का जीवन वृत्त – कृष्ण अनन्य भक्त महाकवि सूरदास हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ गीतकार माने जाते हैं । वे कोमल मधुर गीतों के रससिद्ध गायक कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं । उनका जन्म दिल्ली से आठ किलोमीटर दूर सीही नामक ग्राम में सन् 1478 में सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। छह वर्ष की उम्र में ही वे घर छोड़कर निकल पड़े थे । एक दिन वहीं उनकी भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई । उन्होंने सूरदास को पुष्टिमार्ग की दीक्षा दी । धीरे-धीरे सूरदास की ख्याति बढ़ती चली गई । सन् 1545 में वल्लभाचार्य के पुत्र गोसाई विट्ठलनाथ ने जब अष्टछाप की स्थापना की तो उसमें सूरदास को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया। एक सफल गायक कवि के रूप में इनकी ख्याति को देखते हुए सम्राट अकबर ने उन्हें अपने दरबार में सम्मानित स्थान देने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन सूरदास ने इसके लिए अपनी स्वीकृति नहीं दी । उनका निधन वर्ष 1583 ई० माना जाता है।
साहित्यिक – परिचय – सूरदास की काव्य भाषा सरल, सरस और प्रवाहपूर्ण ब्रजभाषा है। इनकी भाषा-शैली संगीत के तत्त्वों से समन्वित है। इनकी ब्रजभाषा का साहित्यिक रूप बड़ा ही प्रामाणिक माना जाता है जिसमें अलंकारों का प्रयोग सहज रूप में मिलता है ।
कविता का भावार्थ
सूरदास के पद अर्थ सहित Class 12
पद- 1
जागिए, ब्रजराज कुँवर, कँवल – कुसुम फूले ।
कुमुद – वृंद संकुचित भए, भृंग लता भूले ।
तुमचुर, खग-रोर सुनहु बोलत बनराई ।
राँभति गो खरिकनि में बछरा हित धाई ।
बिधु-मलीन रवि प्रकास गावत नर-नारी ।
सूर- स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी |
भावार्थ – प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत-भाग 2 के “पद” शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता वात्सल्य रम के अनन्य कवि सूरदास हैं। नींद में सोए हुए बालक कृष्ण को जगाए जाने का रोचक वर्णन इस पद में है। उक्त पद में दुलार भरे कोमल-मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने पर जगाया जा रहा है।
-हे ब्रजराज ! भोर हो रही है, जागिए – कमल के फूल खिल उठे हैं, कुमुद के पुष्पों ने अपनी पँखुड़ियों को समेट लिया है। भौरे लताओं में छिप से गए हैं। मुर्गों एवं अन्य पक्षियों का कोलाहल सुनाई दे रहा है। वनराज (वन के वृक्ष) आवाज दे रहे हैं। बाड़ो (गौशालाओं) में गाएँ बोल रही हैं तथा बछड़ों को दूध पिलाने के लिए दौड़ी आ रही हैं। चन्द्रमा का प्रकाश क्षीण हो चुका है और सूर्य का प्रकाश (किरणें) फैला रहा है। नर और नारी भजन कीर्तन कर रहे हैं। हे कृष्ण! हे श्याम ! अब जागिए, सबेरा हो गया है ।
इस प्रकार उपर्युक्त ‘पद‘ में कवि बालक कृष्ण को प्रातः काल के समय नींद से जगाने का अत्यंत रोचक वर्णन कर रहे हैं। प्रातःकाल का रमणीक स्वाभाविक एवं सजीव वर्णन इन पंक्तियों में वर्णित है। भोर हो रही है, कमल के फूल खिल उठे हैं, कुमुद के पुष्पों ने अपनी पंखुड़ियों को समेट लिया है। भौरे लताओं में छिप से गए हैं, आदि वर्णन बालक कृष्ण को जगाने के क्रम में भक्तिधारा के महान कवि द्वारा अत्यन्त रोचक तथा मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। प्रकृति का स्वाभाविक तथा युक्तियुक्त चित्रण सराहनीय है। कविता में अलंकारों का पर्याप्त समावेश है।
पद – 2
जेंवत स्याम नंद की कनियाँ ।
कछुक खात कछु धरनि गिरावत छवि निरखति नंद रनियाँ।
बरी, बरा बेसन, बहु भाँतिनि, व्यंजन बिविध, अगनियाँ ।
डारत, खात, लेत अपनै कर, रुचि मानत दधि दोनियाँ ।
मिस्री, दधि, माखन मिस्रित करि मुख नावत छबि धनिया।
आपुन खात नंद-मुख नावत, सो छबि कहत न बनियाँ ।
जो रस नंद-जसोदा बिलसत, सोनहिं तिहूँ भुवनियाँ ।
भोजन करि नंद अचमन लीन्हौ, माँगत सूर जुठनियाँ |
भावार्थ – प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत – भाग 2 के “पद” शीर्षक कविता से उद्धृत है । इसके रचयिता सूरदास हैं। सूरदासजी भक्तिधारा के अन्यतम् कवि हैं। उपरोक्त ‘पद’ में इन्होंने बालक कृष्ण की बाल सुलभ चपलता तथा चिताकर्षक लीलाओं का दिग्दर्शन उनके (कृष्ण) द्वारा भोजन करते समय 1 प्रस्तुत किया है।
बालक कृष्ण नंदबाबा की गोद में बैठकर खा रहे हैं। कुछ खा रहे हैं, कुछ भूमि पर गिरा देते हैं । इस प्रकार उनके भोजन करने का ढंग से प्राप्त होनेवाली शोभा को माँ यशोदा (नंद की पत्नी) अत्यन्त प्रमुदित भाव से देख रही हैं । बेसन से बनी बरी-बरा विभिन्न प्रकार के अनेक व्यंजन को अपने हाथों द्वारा खाते हैं, कुछ छोड़ देते हैं। दोनी (मिट्टी के पात्र) में रखी हुई दही में विशेष रुचि ले रहे हैं, उन्हें दही अति स्वादिष्ट लग रहा है । मिश्री मिलाया हुआ दही तथा माखन (मक्खन) को अपने मुख में डाल लेते हैं, उनकी यह बाल सुलभ-लीला धन्य है । वे स्वयं भी खा रहे हैं तथा नंद बाबा के मुँह में भी डाल रहे हैं। यह शोभा अवर्णनीय है अर्थात् इस शोभा के आनंद का वर्णन नहीं किया जा सकता। जिस रस का पान नंद बाबा और यशोदा माँ कर रही हैं, जो प्रसन्नता उन दोनों को हो रही है वह तीनों लोक में दुर्लभ है, वह दूसरे को नहीं प्राप्त हो सकती है। नंद जी भोजन करने के बाद कुल्ला करते हैं। सूरदासजी जूठन (बना हुआ भोजन) माँगते हैं, उस जूठन को प्राप्त करना वे अपना सौभाग्य मानते हैं ।
इस प्रकार, कवि शिरोमणि सूरदासजी ने बालक कृष्ण की भोजन करते समय अनेक मनोरंजक लीलाओं का वर्णन करते हुए उस समय की शोभा का वर्णन अत्यन्त युक्तियुक्त तथा रोचक ढंग से किया है । बालक श्याम का नंदजी की गोद में बैठकर भोजन करना, कुछ खाना, को भूमि पर गिरा देना वस्तुतः दर्शनीय है। दही, मक्खन तथा स्वादिष्ट व्यंजनों को स्वयं खाते हुए नंद बाबा के मुख में देना नंदजी और माता यशोदा का पुलकित होना अत्यन्त ही सुन्दर ढंग से चित्रित किया है। वस्तुतः महान कवि सूरदासजी की कल्पना शक्ति तथा सहज स्वाभाविक बालक की प्रकृति का यह अपूर्व उदाहरण है।
Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 2 पद- sarkaricity
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
1. इनमें से सूरदास की कौन-सी रचना है ?
उत्तर :- (ग) पद
2. सूरदास का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर :- (क) 1478 ई०
3. सूरदास की अभिरुचि किसमें थी ?
उत्तर :-(क) पर्यटन
4. सत्संग में किनकी अभिरुचि थी ?
उत्तर :- (क) सूरदास
5. सूरदास किस भक्ति के कवि हैं ?
उत्तर :- (क) कृष्ण भक्ति
6. सुरदास की किसमें अभिरूचि थीं ?
उत्तर :- (क) वैराग्य
7. सूरदास जी के गुरु कौन थे ?
उत्तर :-(क) महाप्रभु वल्लभाचार्य
8. ‘सूरसागर’ किनकी प्रमुख कृति है ?
उत्तर :- (ख) सूरदास
9. ‘साहित्य लहरी’ के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर :- (ख) सूरदास
11. ‘सूरसागर’ कैसा ग्रंथ है ?
उत्तर :- (क) विश्वप्रसिद्ध
10. ‘राधारसकेलि’ और ‘सूरसारावली’ किनकी काव्य कृतियाँ हैं ?
उत्तर :- (ग) सूरदास
12. सूरसागर कैसे पदों का विशाल संग्रह है ?
उत्तर :- (क) गेय पदों का
13. सूरदास किस भाषा के प्रसिद्ध कवि हैं ?
उत्तर :- (क) ब्रजभाषा
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. ‘‘जागिए ब्रजराज कुँवर” यहाँ ब्रजराज कुँवर संबोधन किसके लिए आया है ? इस संबोधन का अर्थ स्पष्ट करें ।
उत्तर – यह संबोधन–‘कृष्ण’ के लिए आया है । भोर हो गई है । हे कृष्ण ! जागिए । सूर्य भी उग आया है। कमल के फूल भी खिल गए हैं। पक्षीगण चहचहा रहे हैं। गायें रंभा रहीं हैं । अतः हे कमल सदृश हाथों वाले कृष्ण उठो ।
प्रश्न 2. कवि कृष्ण को जगाने के लिए क्या-क्या उपमा दे रहा है ?
उत्तर – हे कृष्ण ! भोर हो गया है। अब जागिए । कमल के फूल खिल चुके, कुमुदनियों का समूह संकुचित हो गया है । कमल समान हाथों वाले हे कृष्ण जागिए ।
प्रश्न 3. कविता के दोनों पदों में किस रस की अभिव्यंजना हुई है ?
उत्तर – कविता के दोनों पदों में वात्सल्य रस की अभिव्यंजना हुई है ।
प्रश्न 4. सूरदास की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – सूरदास ने अपने प्रभु कृष्ण का बाल-वर्णन ही अधिक किया है। बालक का रूप-सौंदर्य एवं क्रीड़ाएँ सबको प्रभावित करती हैं। इसी कारण कृष्ण ने बाल- सौंदर्य का वर्णन बड़े ही मनोयोगपूर्वक किया है । वात्सल्य एवं शृंगारपरक अनेक कविताओं का सृजन कर कृष्ण-चरित को उद्घटित किया है । शृंगार के दो संयोग एवं वियोग दोनों पक्षों का सम्यक् वर्णन सूरदास जी ने किया है। वे कृष्ण को अराध्य के रूप में पूजते हैं। ईश्वर को बालक के रूप में चित्रित कर मोक्ष की आकांक्षा या भक्ति करना वात्सल्य भक्ति कहलाता है ।
प्रश्न 5. सूरदास भक्तिधारा की किस शाखा के प्रमुख कवि हैं ?
उत्तर :- सूरदास का प्रादुर्भाव मध्यकाल में हुआ था । हिन्दी की मध्यकालीन सगुण भक्तिधारा की कृष्णभक्ति शाखा के सूरदास अन्यतम कवि हैं। वे वल्लभाचार्य की पुष्टिमार्गीय भक्ति में ‘अष्टछाप’ के उत्कृष्ट कवियों में श्रेष्ठ माने जाते हैं । इस प्रकार वे पुष्टिमार्ग के प्रधान भक्त कवि हैं ।
प्रश्न 6. सूरदास लीला रसिक कृष्ण भक्त कवि हैं, कैसे ?
उत्तर – सूरदास जी ने श्रीकृष्ण के जन्म, शैशव और किशोर वय की विविध लीलाओं को विषय बनाकर काव्य सृजन किया है। अपने काव्य सौंदर्य में भावों एवं रसों की बाढ़ ला दी है । सूर के काव्य के तीन प्रधान विषय हैं- विनय – भक्ति, वात्सल्य और प्रेम शृंगार – इन तीनों भाव-वृत्तों में उनका काव्य सीमित है ।
प्रश्न 7. सूरदास के पदों में मध्यकालीन गीतिकला अपने शिखर पर पहुँच जाती है । इसका वर्णन करें ।
उत्तर – सूरदास के काव्य, संगीत का संसर्ग पाकर लोकमानस में नई जीवन-स्फूर्त्ति और उत्साह का संचार करते हैं। कविता, संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला, नाट्यकला आदि का ऐसा समागम अन्यत्र दुर्लभ है। अपनी चित्रात्मकता, बिंबात्मकता, कोमलता, सजीव बोधकता, संक्षिप्त भावगर्भिता आदि गुणों के कारण गीतिकाव्य और गीतिकला के सार्वकालिक आदर्श सूरदास जी बन जाते हैं ।
प्रश्न 8. सूरदास की काव्य भाषा पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – ब्रजभाषा अपनी कोमलता, लालित्य और माधुर्य के कारण अत्यधिक लोकप्रिय होकर अनेक सदियों तक हिन्दी क्षेत्र की प्रमुख काव्य भाषा बनी रही। कृष्ण और उनकी लीलाओं की जातीय स्मृति सँजोये ब्रजभाषा ब्रज की गोचारण प्रधान संस्कृति का संबल पाकर फैल चली। उसने अपनी गीत-संगीतमय प्रकृति और अभिरुचियों द्वारा ब्रजक्षेत्र से बाहर तक व्यापकता अर्जित की । सूरदास जो इसी ब्रजभाषा के महान कवि हैं ।
प्रश्न 9. सूरदास के दोनों पदों में वात्सल्य भाव की प्रचुरता है । इन पंक्तियों के भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर- पाठ्य पुस्तक में संकलित दोनों पद ‘सूरसागर’ से संकलित है । इन पदों में सूर की काव्य और कला से संबंधित विशिष्ट प्रतिभा की अपूर्व झलक मिलती है। दोनों पदों में विषय, वस्तुचयन, चित्रण, भाषा-शैली, संगीत आदि गुणों का प्रकर्ष दिखाई पड़ता है । दोनों पदों में प्रेम और भक्ति की मर्मस्पर्शी अंतर्धारावाहित है।
प्रश्न 10. “सूरदास जी जब अपने प्रिय विषय का वर्णन करते हैं तो मानो अलंकार शास्त्र हाथ जोड़कर उसके पीछे-पीछे दौड़ा करता है ।” आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के कथन पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – सूरदास जी ने विनय – भक्ति, वात्सल्य और प्रेम – शृंगार के वर्णन में अत्यधिक अलंकारों का प्रयोग किया है । उपमा अलंकार की तो बाढ़ ही आ जाती है। रूपक अलंकारों की वर्षा होने लगती है । संगीत के प्रवाह में कवि स्वयं बह जाता है । वह अपने को भूल जाता है | काव्य में इस तन्मयता के साथ शास्त्रीय पद्धति का निर्वाह विरल है। भाव, भाषा, छंद, अलंकार के प्रयोग में कवि सिद्धहस्त है ।
प्रश्न 11. सूरदास ने अपने काव्य सृजन द्वारा लोकजीवन का कैसा हित किया ?
उत्तर – अपने काव्य और कला से सूरदास ने अपने समय और समाज में सामंती उत्पीड़न, सामाजिक विभेद, विदेशी आक्रमण, सांस्कृतिक पराभव और मान मर्दन, निर्धनता, अशिक्षा, रोग शोक आदि के कारण आई मानसिक कटुता, उदासी, विद्वेष और निराशा को धोकर बहा दिया तथा लोकमानस में नव-जीवन की स्फूर्त्ति और उत्साह का संचार किया ।
प्रश्न 12. “सूर है कै ऐसो घिघियात काहे को हौ, कछु भगवत् लीला वर्णन करौ ” पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर – अपने गुरु वल्लभाचार्य से दीक्षित होने के पूर्व सूरदास जी दास्य, विनय और दैन्य भाव के आर्त्त पद गाया करते थे । दीक्षा के बाद सूर से कुछ ऐसे पद सुनकर गुरु ने उनसे कहा- सूर है कै ऐसो घिघियात काहे को हौ, कुछ भगवत् लीला वर्णन करौ” । दीक्षा के बाद गुरु श्रीमुख से भागवत दशम-स्कंध सुनकर उनके भीतर लीलागान की प्रेरणा और स्फुरण हुआ और वे तब से लीला पद गाने और रचने लगे |
व्याख्याएँ
प्रश्न 1. “जेंवत स्याम नंद की कनियाँ ।
कछुक खात, कछु धरनि गिरावत, छवि निरखत नंद- रनियाँ ||
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगन्त भाग- II के सूरदास के ‘पद’ से ली गई हैं। ये पंक्तियाँ ‘सूरदास’ काव्य कृति से संकलित की गई हैं। इन पंक्तियों में कृष्ण के बाल रूप का चित्रण अत्यंत ही मनोहारी रूप में हुआ है । उसी प्रसंग से जुड़ी हुई ये कविताएँ हैं। उक्त पंक्तियों में कवि कहता है कि बालक श्याम नन्द की गोद में बैठे भोजन कर रह हैं। वे कुछ खाते हैं, कुछ भूमि पर गिराते हैं। इस छवि को नंदरानी यशोदा देखकर अति प्रसन्न होती है। यहाँ कवि माता का पुत्र प्रेम दिखलाते हैं कि पुत्र कुछ भी गलती करे माता को बुरा नहीं लगता बल्कि वे हर्षित ही होती हैं। बालक कृष्ण की क्रियाएँ उसे आनंद ही प्रदान करती हैं।
उक्त कविता में वात्सल्य – भाव का अति सूक्ष्म रूप में चित्रण हुआ है। बालक कृष्ण के बाल रूप का भी सटीक चित्रण हुआ है ।
प्रश्न 2. “भोजन करि नंद अचमन लीन्हौं,
माँगत सूर जुठनियाँ ।”
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगन्त भाग- II के सूरदास के पद से ली गई हैं। इन पंक्तियों में नंद बाबा भोजनोपरांत जब कुल्ला करते हैं तब सूरदास जी जूठन (बचा हुआ भोजन) माँगते हैं। उस जूठन को प्राप्त करना वे अपना सौभाग्य समझते हैं । यह प्रसंग नंदबाबा के आचमन क्रिया से जुड़ा हुआ है ।
उक्त पंक्तियाँ नंद बाबा के बारे में कही गई हैं। जब कृष्ण के साथ भोजन कर नंद बाबा आचमन करते हैं तब उस दृश्य को देखकर सूरदास अति प्रसन्न होकर कृष्ण के जूठन की याचना करते हैं। यानि कृष्ण के जूठन को पाना भी सौभाग्य की बात है । इस प्रकार उक्त कविता में महाकवि सूरदास जी ने बालकृष्ण की भोजन करते समय अनेक मनोरंजक लीलाओं का वर्णन करते हुए उस समय की शोभा का वर्णन अत्यंत ही युक्तियुक्त तथा रोचक ढंग से किया है। इस प्रकार कृष्ण की चंचलता, बाल सुलभता, निर्मलता और मनोहारी दृश्यों का वर्णन कर अपने आपको सौभाग्यशाली बना लिया है ।
उक्त पंक्तियों में कृष्ण की बाललीलाओं का लौकिक धरातल पर चित्रण कर सूरदास जी ने सामाजिकता का निर्वाह किया है
पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. प्रथम पद में किस रस की व्यंजना हुई है ?
उत्तर :- सूरदास रचित “प्रथम पद” में वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है । वात्सल्य रस के पदों की विशेषता यह है कि पाठक जीवन की नीरस और जटिल समस्याओं को भूलकर उनमें तन्मय और विभोर हो उठता है। प्रथम पद में दुलार भरे कोमल-मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की सूचना देते हुए जगाया जा रहा है ।
प्रश्न 2. गायें किस ओर दौड़ रही हैं ?
उत्तर :- भोर हो गयी है, दुलार भरे कोमल मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने का संकेत देते हुए जगाया जा रहा है। प्रथम पद में भोर होने के संकेत दिए गए हैं, कमल के फूल खिल उठे हैं, पक्षीगण शोर मचा रहे हैं, गायें अपनी गौशालाओं से अपने-अपने बछड़ों की ओर दूध पिलाने हेतु दौड़ पड़ीं ।
प्रश्न 3. प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर :- अथवा, पठित पाठ से ‘सूरदास’ के एक पद का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।
प्रश्न 4. पठित पदों के आधार पर सूर के वात्सल्य वर्णन की विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर :- सूर के काव्य के तीन प्रधान विषय हैं- विनय भक्ति, वात्सल्य और प्रेम-गार । इन्हीं तीन भाव-वृत्तों में उनका काव्य सीमित है। उसमें जीवन का व्यापक और बहुरूपी विस्तार नहीं है, किन्तु भावों की ऐसी गहराई और तल्लीनता है कि व्यापकता और विस्तार पीछे छूट जाते हैं । वात्सल्य के सूर ही विश्व में अद्वितीय कवि हैं। बालक की प्रकृति का इतना स्वाभाविक वर्णन अन्यत्र दुर्लभ है। बाल स्वभाव के बहुरंगी आयाम का सफल एवं स्वाभाविक चित्रण उनके काव्य की विशेषता है। बालक की बाल सुलभ प्रकृति-उसका रोना, मचलना, रूठना, जिद करना आदि प्रवृत्तियों को उन्होंने अपने काव्य में बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से सजाया है ।
पाठ्य पुस्तक से संकलित पदों में सूरदासजी ने वात्सल्य रस की अनेक विशेषताओं वर्णन किया है। बालक कृष्ण सोए हुए हैं, भोर हो गई है। उन्हें दुलार से जगाया जा रहा है। जगाने के स्वर भी मधुर हैं। चहचहाते पक्षियों के, कमल के फूलों के, बोलती और दौड़ती हुई गायों के उदाहरण देकर बालक कृष्ण को जगाने का प्रयास किया जा रहा है ।
दूसरे पद में भी वात्सल्य रस की सहज अभिव्यक्ति के क्रम में अनेक विशेषताओं को निरूपित किया गया है। नंद बाबा की गोद में बालक कृष्ण भोजन कर रहे हैं। कुछ खा रहे हैं, कुछ धरती पर गिरा रहे हैं । बालक कृष्ण को मना-मनाकर खिलाया जा रहा है । विविध प्रकार के व्यंजन दिए जा रहे हैं। यहाँ पर वात्सल्य रस अपने चरम उत्कर्ष पर है । सूरदासजी लिखते हैं |
“जो रस नंद-जसोदा विलसत, सो नहिं विहुँ भुवनियाँ ।”
प्रश्न 5. काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें
(क) कछुक खात कछु धरनि गिरावत छवि निरखति नंद-रनियाँ ।
(ख) भोजन करि नंद अचमन लीन्हौं माँगत सूर जुठनियाँ |
(ग) आपुन खात, नंद-मुख नावत, सो छवि कहत न बनियाँ ।
उत्तर–
( क ) काव्य सौन्दर्य – प्रस्तुत पद्यांश में वात्सल्य रस के कवि सूरदासजी ने बालक कृष्ण के खाने के ढंग का अत्यंत स्वाभाविक एवं सजीव वर्णन किया है। पद ब्रज शैली में लिखा गया है। भाषा की अभिव्यक्ति काव्यात्मक है। यह पद गेय और लयात्मक प्रवाह से युक्त है । अतः, यह पंक्ति काव्य-सौंदर्य से परिपूर्ण है।
इसमें वात्सल्य रस है। इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ |
(ख) काव्य सौंदर्य – प्रस्तुत पद्यांश में वात्सल्य रस के साथ-साथ भक्ति रस की भी अभिव्यक्ति है। बालक कृष्ण के भोजन के बाद नंद बाबा श्याम का हाथ धोते हैं । यह देख सूरदासजी भक्तिरस में डूब जाते हैं। वे बालक कृष्ण की जूटन नंदजी से माँगते हैं । इस पद्यांश को ब्रज शैली में लिखा गया है। बाबा नंद का कार्य वात्सल्य रस को दर्शाता है तथा सूरदास की कृष्ण भक्ति अनुपम है। अभिव्यक्ति सरल एवं सहज है। इसमें रूपक अलंकार है ।
(ग) काव्य सौंदर्य – प्रस्तुत पद्यांश में बालक कृष्ण के बाल सुलभ व्यवहार का वर्णन है । कृष्ण स्वयं कुछ खा रहे हैं तथा कुछ नन्द बाबा के मुँह में डाल रहे हैं। इस शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता अर्थात् अनुपम है। इसे ब्रजशैली में लिखा गया है। इसमें वात्सल्य रस का अपूर्व समावेश है। इस पद्यांश में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है। –
प्रश्न 6. कृष्ण खाते समय क्या-क्या करते हैं ?
उत्तर :- (क) 1478 ई०उत्तर- बालक कृष्ण अपने बालसुलभ व्यवहार से सबका मन मोह लेते हैं। भोजन करते समय कृष्ण कुछ खाते हैं तथा कुछ धरती पर गिरा देते हैं। उन्हें मना-मना कर खिलाया जो रहा है। यशोदा माता यह सब देख-देखकर पुलकित हो रही हैं। विविध प्रकार के भोजन जैसे बड़ी, बेसन का बड़ा आदि अगणित प्रकार के व्यंजन हैं।
बालक कृष्ण अपने हाथों में ले लेते हैं, कुछ खाते हैं तथा जितनी इच्छा करती है उतना खाते हैं, जो स्वादिष्ट लगता है उसे ग्रहण करते हैं। दोनी में रखी दही ‘ विशेष रुचि लेते हैं। मिश्री मिली दही तथा मक्खन को मुँह में डालते हुए उनकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता । इस प्रकार, कृष्ण खाते समय अपनी लीला से सबका मन मोह लेते हैं।
भाषा की बात
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों से वाक्य बनाएँ –
मलिन – राम का मुख क्यों मलिन है ?
रस – सूरदासजी वात्सल्य रस के अनन्य कवि हैं।
भोजन- दूषित भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
रुचि – ज्योति की रुचि पढ़ाई में नहीं है ।
छवि- हमें अपनी छवि स्वच्छ रखनी चाहिए ।
दही – दही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है ।
माखन – बालक कृष्ण को यशोदा माता प्यार से माखनचोर कहती थीं
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची दें-
धरनि – वसुधा, धरती, भू, पृथ्वी
रवि – दिनकर, दिवाकर, प्रभाकर, भास्कर
अंबुज – सरोज, पंकज, जलज, कमल, नीरज
कमल – अरविन्द, पंकज, जलज, सरोज
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखें –
धरनि – धरणी
बिधु – विधु
प्रकास – प्रकाश
गो- गौ
कँवल – कमल
स्याम – श्याम
बनराई – वनराज
प्रश्न 4. निम्नलिखित के विपरीतार्थक शब्द लिखें–
मलिन- स्वच्छ
नर- नारी
संकुचित – विस्तृत
धरणी – आकाश
विधु – सूर्य
प्रश्न 5. पठित पदों के आधार पर सूर की भाषिक विशेषताओं को लिखिए ।
उत्तर- सूरदासजी ब्रजभाषा के प्रारंभिक कवियों में एक हैं तथापि उनकी कविता की भाषा इतनी विकसित, प्रौढ़ और समृद्ध है कि अपने वैभव और गांभीर्य से सबको चकित कर देते । वह काल ब्रजभाषा के उत्कर्ष का था । अवधी, मैथिली, ब्रज, खड़ी बोली, राजस्थानी आदि भाषाओं का साहित्यिक भाषा के रूप में मध्यकाल में विकास हुआ। ब्रजभाषा में अंतर्निहित लालित्य, माधुर्य तथा कोमलता के कारण इसे अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई। इसकी विशेषता के कारण कई सदियों (एक लम्बी अवधि) तक ब्रजभाषा हिन्दी क्षेत्र की प्रमुख काव्य भाषा रही ।
सूरदास के वाक्य के तीन प्रधान विषय हैं- विनयभक्ति, वात्सल्य और प्रेम गार | उनके काव्यों में जीवन का व्यापक और बहुरूपी विस्तार नहीं है, किन्तु भावों की गहराई और तल्लीनता में व्यापकता और विस्तार पीछे छूट जाते हैं। वात्सल्य भाव की बहुलता से पाठक जीवन की नीरस और जटिल समस्याओं को भूलकर उनमें तन्मय और विभोर हो जाता है। उनके पदों में वात्सल्य, प्रेम, वेदना आदि का मिश्रित आनन्द और लालित्य का पारावार उमड़ता है ।
प्रश्न 6. विग्रह करते हुए समास बताएँ
शब्द | विग्रह | समास |
नंद-जसोदा | नंद और जसोदा | द्वंद समास |
ब्रजराज | ब्रज का राजा | संबंध तत्पुरुष समास |
खगरोर | खग का रोर | संबंध तत्पुरुष समास |
अम्बुजकर धारी | कर में अम्बुज धारण करने वाला अर्थात कृष्ण | बहुब्रीहि समास |
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Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 2 पद
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Chapter :- 1 कड़बक
Chapter :- 2 सूरदास के पद
Chapter :- 3 तुलसीदास के पद
Chapter :- 4 छप्पय
Chapter :- 5 कवित्त
Chapter :- 6 तुमुल कोलाहल कलह में
Chapter :- 7 पुत्र वियोग
Chapter :- 8 उषा
Chapter :- 9 जन-जन का चेहरा एक
Chapter :- 10 अधिनायक
Chapter :- 11 प्यारे नन्हें बेटे को
Chapter :- 12 हार-जीत
Chapter :- 13 गाँव का घर
Nice bhut aacha laga hamne aapka language thank you
So nice launga ge aapka bhut hi aacha par sang likha gaya h
Hamne bhut hi aachi lagi aapka dura likhayae language