Bihar Board Class 10th Hindi Book Solution पद्य Chapter 5 ‘भारतमाता’ | 10th Hindi NCERT Solution | 10th hindi Bharatmata| BSEB 10th Hindi solution | BSEB Solution | 10 Hindi Bseb padykhand | Bihar Board Class 10th Hindi pady solution chapter 5| Bharatmata
Hello, SarkariCity के इस पोस्ट पर आपका स्वागत है । इस पोस्ट पर आपको Bihar Board Class 10th Hindi Book Solutions गोधूलि भाग 2 ka Chapter 5 ‘भारतमाता’ पढ़ने को मिलेंगे । यहां आपको बिहार बोर्ड कक्षा 10 के हिन्दी पुस्तक गोधूलि भाग 2 के सभी Chapters (अध्याय) का वस्तुनिष्ठ(Objectives) एवं गैर-वस्तुनिष्ठ(Subjectives) प्रश्न-उत्तर पढ़ने को मिलेंगे । यदि आप ये सभी जानकारी अपने मोबाईल पर सबसे पहले और आसानी से पाना चाहते है तो कृपया ऊपर दिए गए हमारे Whatsap Channel तथा Telegram Channel से अवश्य जुड़ जाईए |

कवि परिचय
सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन् 1900 में अलमोड़ा जिले के रमणीय स्थल कौसानी (उत्तरांचल) में हुआ था । जन्म के छह घंटे बाद ही माता सरस्वती देवी का देहान्त हो गया । पिता गंगादत्त पंत कौसानी टी स्टेट में एकाउंटेंट थे । पंतजी की प्राथमिक शिक्षा गाँव में हुई और फिर बनारस से उन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा पायी । वे कुछ दिनों तक कालाकांकर राज्य में भी रहे । उसके बाद आजीवन वे इलाहाबाद में रहे 1 29 दिसंबर 1977 ई० में उनका निधन हो गया।
पंतजी का आरंभिक काव्य प्रकृति प्रेम और शिशु सुलभ जिज्ञासा को लेकर प्रकट हुआ । उनकी आरंभिक रचनाएँ प्रकृति और सौंदर्य के प्रेमी कवि की संवेदनशील अभिव्यक्तियों से परिपूर्ण हैं।
पंतजी प्रवृत्ति से छायावादी हैं, परंतु उनके विचार उदार मानवतावादी हैं । उन्होंने प्रसाद और निराला के समान छंदों और शब्द योजना में नवीन प्रयोग किए । पंतजी की प्रतिभा कलात्मक सूझ से सम्पन्न है, अतः उनकी रचनाओं में एक विलक्षण मृदुता और सौष्ठव मिलता है । युगबोध के अनुसार अपनी काव्यभूमि का विस्तार करते रहना पंत की काव्य-चेतना की विशेषता है । वे प्रारंभ में प्रकृति सौंदर्य से अभिभूत हुए, फिर मानव सौंदर्य से । मानव सौंदर्य ने उन्हें समाजवाद की ओर आकृष्ट किया । समाजवाद से वे अरविन्द दर्शन की ओर प्रवृत्त हुए। वे मानवतावादी कवि थे, जो मानव इतिहास के नित्य विकास में विश्वास करते थे । वे अतिवादिता एवं संकीर्णता के घोर विरोधी रहे । उनका अंतिम काव्य ‘लोकायतन’ है जो उनके परिपक्व चिंतन को समेट देता है। उनकी प्रमुख काव्यकृतियाँ हैं – ‘उच्छ्वास’, ‘पल्लव’, ‘वीणा’, ‘ग्रंथि’, ‘गुंजन’, ‘युगांत’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्णधूलि’, ‘स्वर्णकिरण’, ‘युगपथ’, ‘चिदंबरा’ आदि । पंतजी ने नाटक, आलोचना, कहानी, उपन्यास आदि भी लिखा । ‘चिदंबरा’ पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ’ भी मिला।
कविता के साथ
1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारतमाता का कैसा चित्र प्रस्तुत करता है?
उत्तर- प्रथम अनुच्छेद में कवि ने भारतमाता के रूपों का सजीवात्मक रूप प्रदर्शित किया है। गाँवों में बसनेवाली भारतमाता आज धूल-धूसरित, शस्य-श्यामला न रहकर उदासीन बन गई है। उसका आँचल मैला हो गया है। गंगा-यमुना के निर्माण जल प्रदूषित हो गये हैं। इसकी मिट्टी में पहले जैसी प्रतिमा और यश नहीं है। आज यह उदास हो गई है।
2. भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है ?
उत्तर- भारत को अंग्रेजों ने गुलामी की जंजीर में जकड़ रखा था। इस देश पर अंग्रेजी हुकूमत कायम थी। यहाँ की जनता का कोई अधिकार नहीं था। अपने घर में रहकर पराये आदेश को मानना विवशता थी। परतंत्रता की बेड़ी में जकड़ी, काल के कुचक्र में फंसी विवश, भारत-माता चुपचाप अपने पुत्रों पर किये गये अत्याचार को देख रही थी। यहाँ की धरती दूसरे के अधीन थी। भारत माँ के पुत्र स्वतंत्र विचरण नहीं कर सकते थे। इसलिए कवि ने परतंत्रता को दर्शाते हुए मुखरित किया है कि भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी बनी है।
3. कविता में कवि भारतवासियों का कैसा चित्र खींचता है ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता में कवि ने दर्शाया है कि परतंत्र भारत की स्थिति दयनीय हो गई थी। अंग्रेजों ने सुसंपन्न, सुसंस्कृत, सभ्य, शिखित और सोने की चिडिया स्वरूप भारत को निर्धनता, दीनता की हालत में ला दिया था। परतंत्र भारतवासियों को नंगे बदन, भूखे रहना पड़ता था। यहाँ की तीस करोड़ जनता, शोषित पीड़ित, मूढ, असभ्य अशिक्षित, निर्धन एवं वृक्षों के नीचे निवास करने वाली थी। कवि ने भारतवासियों के दीन हालत की यथार्थता को दर्शाया है। अर्थात् तात्कालीन भारतीय मूढ़, असभ्य, निर्धन, अशिक्षित, क्षुधित का पर्याय बन गये थे।
4. भारतमाता का ह्रास भी राहुग्रसित क्यों दिखाई पड़ता है ?
उत्तर- विदेशियों के द्वारा बार-बार लूटने रौंदने से भारतमाता चित्र विकीर्ण हो गया है। मुगलों के बाद अंग्रेजों ने लूटना शुरू कर दिया है। आज यह दूसरों के द्वारा रौंदी जा रही है। जिस तरह धरती सब बोल सहन करती है उसी तरह यह भारतमाता भी सबका धौंस उपद्रव आदि सहज भाव से सहन करती है। चंद्रमा अनायास राहु द्वारा ग्रसित हो जाता है उसी तरह यह धरती भी विदेशी आक्रमणकारी जैसे राहु से ग्रसित हो जाया करती है।
5. कवि भारतमाता को गीता प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञान मूठ क्यों कहता है ?
उत्तर- भारत सत्य-अहिंसा, मानवता, सहिष्णुता, आदि का पाठ सारे विश्व को पढ़ाता था। किन्तु आज इस क्षितिज पर अज्ञानता की पराकाष्ठा चारों तरफ फैल गई है। लूटखसोट, अलगाववाद बेरोजगारी आदि जैसी समस्या उसको नि:शेष करते जा रहे हैं। मुखमण्डल सदा सुशोभित रहनेवाली भारतमाता के चित्र धूमिल हो गये हैं। धरती, आकाश आदि सभी इसके प्रभाव से ग्रसित हो गये हैं। आज सर्वत्र अंधविश्वास, अज्ञानता का साम्राज्य उपस्थित हो गया है। इसी कारण कवि ने इसे ज्ञानमूढ कहा है
6. कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप-संयम क्यों सफल है ?
उत्तर- विदेशियों द्वारा बार-बार पद-दलित करने के उपरान्त भी भारतमाता के सहृदयता के भाव को नहीं रौंदा गया है। इसकी सहनशीलता, आज भी बरकरार है। आज भी यह अहिंसा का पाठ पढ़ाती है। लोगों के भय को दूर करती है। सबकुछ खो देने के बाद भी यह अपने संतान. में वसुधैव कुटुम्बकम की ही शिक्षा देती है। यह भारतमाता के तप का ही परिणाम है कि उसकी संतान सहिष्णु बने हुए हैं।
व्याख्या करें
(क) स्वर्ण शस्य पर पद-तल-लुंठित, धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के सुमित्रानंदन पंत रचित ‘भारत माता’ पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि ने परतंत्र भारत का साकार चित्रण किया है। भारतीय ग्राम के खेतों में उगे हुए फसल को भारत माता का श्यामला शरीर मानते हुए कवि ने कहा है कि भारत की धरती पर सुनहरा फसल सुशोभित है और वह दूसरे के पैरों तले रौंद दिया गया है।
प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने कहा है कि भारत पर अंग्रेजी हुकूमत कायम हो गयी है। यहाँ के लोग अपने ही घर में अधिकार विहीन हो गये हैं। पराधीनता के चलते यहाँ की प्राकृतिक शोभा भी उदासीन प्रतीत हो रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ कवि की स्वर्णिम फसल पैरों तले रौंद दी गयी है और भारत माता का मन सहनशील बनकर कुंठित हो रही है। इसमें कवि ने पराधीन भारत की कल्पना को मूर्त रूप दिया है।
(ख) चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित, नमित नयन नम वाष्पाच्छादित।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के ‘भारत माता’ पाठ से उद्धत है जो सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। इसमें कवि ने भारत का मानवीकरण करते हुए पराधीनता से प्रभावित भारत माता के उदासीन, दुःखी एवं चिंतित रूप को दर्शाया है।
प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने चित्रित किया है कि गुलामी में जकड़ी भारत माता चिंतित है, उनकी भृकुटि से चिंता प्रकट हो रही है, क्षितिज पर गुलामी रूपी अंधकार की छाया पड़ रही है, माता की आँखें अश्रुपूर्ण हैं और आँसू वाष्प बनकर आकाश को आच्छादित कर लिया है। इसके माध्यम से परतंत्रता की दुःखद स्थिति का दर्शन कराया गया है। पराधीन भारत माता उदासीन है इसका बोध कराने का पूर्ण प्रयास किया है।
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भाषा की बात
कविता के अनुच्छेद में विशेषण का संज्ञा की तरह प्रयोग हुआ है। आप उनका चयन करें एवं वाक्य बनाएँ।
- ग्रामवासिनी – ग्रामवासिनी, अंग्रेजों की अत्याचार से त्रस्त थे।
- श्यामल – उसका श्यामल वर्ण फीका हो गया है।
- मैला – उसका आँचल मैला हो गया।
- दैन्य – उसका दैन्य देखने में बनता है।
- नत – उसका मस्तक नत है।
- नीरव – नंदी नीरव गति से बह रही है।
- विषण्ण – उसका हृदय विषण्ण है।
- क्षुधित – क्षुधित मनुष्य कौन-सा पाप नहीं करता है।
- चिर – चीर चिर है।
- मौन – उसने मौन वर्त रखा है।
- चिंतित – उसकी चिंतित मुद्राएँ अनायास आकर्षित करती है।
निम्नांकित के विग्रह करते हुए समास स्पष्ट करें
- ग्रामवासिनी – ग्राम में वास करने वाली – तत्पुरुष समास
- गंगा-यमुना – गंगा और यमुना – द्वन्द
- शरदेन्दु – शरद ऋतु की चाँद – तत्पुरुष
- दैत्यजड़ित – दैत्य से जड़ित – तत्पुरुष
- तिमिराकित – मिमिर से अंकित – तत्पुरुष
- वाष्पाच्छादित – वाष्प से आच्छादित – तत्पुरुष
- ज्ञानमूढ़ – ज्ञान में मूढ़ – तत्पुरुष
- तपसंयम – तप में संयम – तत्पुरुष
- जन-मन-भय – जन, मन और भय – द्वन्द
- भव-तम भ्रम – अंत में भ्रमित संसार- तत्पुरुष
कविता से तद्भव शब्दों का चयन करें।
उत्तर-
भारतमाता, ग्रामवासिनी, खेतों, मैला, आँसू, मिट्टी, उदासिनी रोदन, थार, तीस, मूढ़, निवासिनी, चिंतित।
कविता से क्रियापद चुनें और उनका स्वतंत्र वाक्य प्रयोग करें।
- नत – उसका मस्तक नत है।
- फैला – प्रकाश फैल गया।
- क्रंदन – उसका क्रंदन सुनकर हृदय द्रवित हो गया।
- पिला – उसने उसे अमृत पिला दिया।
- धरती – धरती सबका संताप हरती है।
शब्दार्थ
- श्यामल : साँवला
- दैन्य : दीनता, अभाव, गरीबी
- जड़ित : स्थिर, चेतनाहीन
- नत : झुका हुआ
- चितवन : दृष्टि
- चिर : पुराना, स्थायी
- नीरव : नि:शब्द, ध्वनिहीन
- तम : अधकार
- विषण्ण : (विषाद से निर्मित विशेषण) विषादमय
- प्रवासिनी : विदेशिनी, बेगानी
- क्षुधित : भूखा
- निरस्त्रजन : निहत्थे लोग
- शस्य : फसल
- तरु-तल : वृक्ष के नीचे
- पर-पद-तल : दूसरों के पाँवों के नीचे
- लुठित : रौंदा जाता हुआ
- सहिष्णु : सहनशील
- कुठित : रुका हुआ, रुद्ध, गतिहीन
- क्रंदन : रुदन, रोना
- अधरं : होठ
- स्मित : मुस्कान
- शरदेन्दु : शरद ऋतु का चन्द्रमा
- भृकुटि : भौंह
- तिमिरांकित : अंधकार से घिरा हुआ
- नमित : झुका हुआ
- वाष्पाच्छादित : भाप से ढंका हुआ
- आनन-श्री : मुख की शोभा
- शशि-उपमित : चंद्रमा से उपमा दी जानेवाली
- स्तन्य : स्तन का दूध
BSEB Class 10th Hindi काव्य-खंड (पद्य) Solutions
Chapter :- 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै
Chapter :- 2 प्रेम अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं
Chapter :- 3 अति सूधो सनेह को मारग है, मो अंसुवानिहिं लै बरसौ
Chapter :- 4 स्वदेशी
Chapter :- 5 भारतमाता
Chapter :- 6 जनतंत्र का जन्म
Chapter :- 7 हिरोशिमा
Chapter :- 8 एक वृक्ष की हत्या
Chapter :- 9 हमारी नींद
Chapter :- 10 अक्षर-ज्ञान
Chapter :- 11 लौटकर आऊँग फिर
Chapter :- 12 मेरे बिना तुम प्रभु
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