10th Sanskrit

Bihar Board Classs 10th Sanskrit Solution Chapter 7 नीतिश्लोकाः (नीति के श्लोक) | 10th Sanskrit NCERT Solution | by SarkariCity

Bihar Board Classs 10th Sanskrit Solution Chapter 7 नीतिश्लोकाः (नीति के श्लोक) | 10th Sanskrit NCERT Solution | BSEB 10 Solution | Nitishloka (Niti ke shlok)|BSEB Chapter 7 sanskrit

इन पोस्ट पर आपको बिहार बोर्ड (BSEB) के कक्षा 10 के संस्कृत पाठ्य पुस्तक का समाधान देखने को मिलेगा | इस पेज में आप 10th संस्कृत पीयूषम भाग -2 के सप्तम पाठः (Chapter-7) नीतिश्लोकाः (नीति के श्लोक) का सभी प्रश्न-उत्तर तथा परीक्षा के दृष्टिकोण तैयार किए गए अन्य कई महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ एवं गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न पढ़ने को मिलेंगे |

कहानी का अर्थ

अयं पाठः सुप्रसिद्धस्य……………………… स्वतन्त्र ग्रन्थरूपा वर्तते। 

अर्थ- (यह पाठ सुप्रसिद्ध ग्रन्थ महाभारत के उद्योगपर्व के अंश विशेष (अध्याय 33.40) रूप में विदुरनीति से संकलित है। युद्ध निकट पाकर धृतराष्ट्र ने मंत्री श्रेष्ठ विदुर को अपने चित्त की शान्ति के लिए कुछ प्रश्न पूछे। पूछे गये प्रश्नों का उत्तर विदुर देते हैं। वही प्रश्नोत्तर रूप ग्रन्थरत्न विदुरनीति है। यह भी भगवद् गीता की तरह महाभारत का अंग स्वतंत्र ग्रन्थ रूप में है।) 

 

यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः। समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते।।1।। 

अन्वयः- यस्य कृत्यं शीतं उष्णं भयं रतिः (आनन्दं) समृद्धिः

 असमृद्धिः वा (च) विघ्नन्ति सः वै पण्डित उच्यते।

अर्थ- जिसके कर्म को सर्दी-गर्मी, भय-आनन्द और उन्नति – अवनति विघ्न नहीं डालता वही व्यक्ति पण्डित कहे जाते हैं।

 

तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम् । उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते ।।2।।

अन्वयः- सर्वभूतानां तत्वज्ञः सर्वकर्माणां योगज्ञः मनुष्यानां (च) उपायइः नरः पण्डितः उच्यते। 

अर्थ- सभी जीवों के तत्व को जानने वाले, सभी कर्म के योग को जानने वाले और मनुष्यों में उपाय जानने वाले व्यक्ति पण्डित कहे गये हैं।

 

अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहुभाषते। अविश्वस्तें विश्वसिति मूढचेता नारधमः ।। 3 ।।

अन्वयः- मूढचेता नराधमः अनाहूत प्रविशति, अपृष्टः (अपि) बहुभाषते, अविश्वस्ते (च) विश्वसिति

अर्थ- मूर्ख हृदया वाला नीच व्यक्ति बिना बुलाये हुए प्रवेश करता (आता) है। बिना पूछे भी बहुत बोलता है और अविश्वसनीय पर भी विश्वास करता है।

 

एको धर्मः परंश्रेयः क्षमैका शन्तिरूत्तमा। विद्यैका परमा तृप्तिः अहिंसैका सुखावहा।।4।। 

अन्वयः- एकः धर्मः एव परं श्रेयः एकाक्षमा एव उत्तमाशान्ति एकाविद्या एव परमा तृप्तिः एका अहिंसा (च) (परमा) सुखावहा (भवति)

अर्थ- मात्र एक धर्म ही सबसे बड़ा धन है। एक क्षमा ही सबसे उत्तम शान्ति है। विद्या ही एक वस्तु है जिससे अत्यधिक तृप्ति मिलती है और एक अहिंसा ही ऐसी है जो श्रेष्ठ सुखों को प्रदान करती है।

 

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारा नाशनमात्मनः । कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत् ।।5।। 

अन्वयः- नरकस्य इदं त्रिविधं द्वारं कामः क्रोधः तथा लोभः। यः आत्मनः नाशं (करोति) तस्मात् एतत् त्रयं त्यजेत्।

अर्थ- नरक के ये तीन द्वार हैं – काम, क्रोध तथा लोभ जो अपने-आप को नष्ट कर देता है। इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए।

 

षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता। निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घ सूत्रता।।6।। 

अन्वयः- भूतिम् इच्छता पुरुषेण निद्रा, तन्द्रा, भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता च इह षड्दोषाः हातव्याः। 

अर्थ- उन्नति की इच्छा रखनेवाले पुरुषों के द्वारा निद्रा (अधिक सोना), तन्द्रा (उघना) भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता (लम्बे समय तक काम करने की आदत) इन छः दोषों को त्याग देना चाहिए।

 

सत्येन रक्ष्यतेधर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते। मृजया रक्ष्यते रूपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते।।7।। 

अन्वयः- धर्मः सत्येन रक्ष्यते, विद्या योगेन रक्ष्यते, रूपं मृजया रक्ष्यते, कुलं (च) वृत्तेन रक्ष्यते।

अर्थ- धर्म की रक्षा सत्य से होती है। विद्या की रक्षा योग (अभ्यास) से होती है। रूप की रक्षा मृजा (उबटन) से होती है और कुल (खानदान) की रक्षा वृत्त (आचरण) से होती है। 

 

सुलभाः पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिनः। अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ॥8॥ 

अन्वयः- हे राजन् सततं प्रियवादिनः पुरुषाः सुलभाः (सन्ति) तु अप्रियस्य पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः अस्ति।

अर्थ- हे राजन्! सदैव प्रिय बोलने वाले पुरुष आसानी से मिल जाते हैं लेकिन अप्रिय ही सही उचित बोलने वाला और सुनने वाला दुर्लभ है।

 

पूजनीया महाभागाः पुण्याश्च गृहदीप्तयः। स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्तास्तस्माद्रक्ष्या विशेषतः ॥9॥ 

अन्वयः- स्त्रियः गृहस्य श्रीयः, पूजनीयाः, महाभागाः पुण्याः गृहदीप्तयः च उक्ताः। तस्मात् (हताः) विशेषतः रक्ष्याः (भवन्ति)।

अर्थ- स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी, पूजनीय, महाभाग्यशालिनी, पुण्यमयी और घर को प्रकाशित करनेवाली कही गई है। इसलिए स्त्रियाँ विशेष रूप से रक्षा करने योग्य होती हैं। 

 

अकीर्ति विनयोहन्ति हन्त्यनर्थं पराक्रमः। हन्ति नित्यं क्षमा क्रोधमाचारो हन्त्यलक्षणम्।। 10॥ 

अन्वयः- विनयः अकीर्तिम् हन्ति, पराक्रमः अनर्थम् हन्ति, क्षमा नित्यं क्रोधं हन्ति, आचारः (च) अलक्षणम् हन्ति।

अर्थ- विनम्रता अपयश को दूर करती है, परिश्रम गरीबी दूर करता है, क्षमा सदैव क्रोध को दूर करता है और सुन्दर आचरण बूरी आदतों को दूर करता है ।

 

शब्दार्थाः 

  • पद – पर्यायवाची – पदार्थाः,
  • रतिः – आनन्दः – भावुकता,
  • तत्वज्ञः – रहस्यज्ञः – रहस्य को जानेवाला,
  • योगज्ञः – कौशलेन जानात – कौशलपूर्वक जाननेवाला,
  • उच्यते – कथ्यते – कहा जाता है,
  • उपायज्ञो – उपायं जानाति – उपाय को जाननेवाला,
  • अनाहूतः – न आहूतः – बिना बुलाये हुए,
  • अपृष्टः – न पृष्टः – बिना पूछे हुए,
  • अविश्वस्ते – न विश्वस्ते जने – अविश्वसनीय व्यक्ति पर,
  • मूढचेता – मूढं चेतः यस्य स – मूर्ख हृदय वाला,
  • नराधमः – नरेषु अध मः – मनुष्यों में नीच,
  • सुखावहा – सुखदा – सुख देनेवाली,
  • भूतिम् – ऐश्वर्यम् – ऐश्वर्य को
  • दूच्छता – वाञ्छता – चाहते हुए,
  • मृजया – शुद्धया – स्वच्छता या उबटन आदि के द्वारा,
  • प्रियवादिनः – प्रियं भाषन्ते ये – प्रिय बोलने वाला,
  • अकीर्ति – अपयश: – अपयश,
  • हन्ति – नाशयति – नाश करता है,
  • अलक्षणम् – कुलक्षणं – कुलक्षण

 

व्याकरणम्

(क) सन्धि विच्छेदः

  • समृद्धिरसमृद्धिर्वा – समृद्धिः + असमृद्धिः + वा,
  • विद्यैका – विद्या + एका,
  • अहिंसैका – अहिंसा + एका,
  • नरकस्येदं – नरकस्य + इदं,
  • नाशनमात्मनः – नाशनम् + आत्मनः,
  • गृहस्योक्तास्तस्माद्रक्ष्या – गृहस्य + उक्ताः + तस्मात् + रक्ष्याः,
  • क्रोधमाचारो – क्रोधम् + आचारो,
  • हन्त्यलक्षणम् – हन्ति + अक्षणम्

 

(ख) प्रकृतिप्रत्ययविभगः

  • निवर्त्य = नि + वृत् + ल्यप्,
  • अपगम्य = उप + गम् + ल्यप्,
  • वक्तव्यम् = वचु + तव्यत्,
  • परिहत्य = परि + ह + ल्यप्,
  • साध्यः = साध् + व्यत्,
  • गृहीत्वा = ग्रह् + क्त्वा,
  • गत्वा = गम् + क्त्वा,
  • जित्वा = जि + क्त्वा,
  • भेतव्यम् = भी + तव्यत्,
  • भेद्यम् = भिद् + ण्यत्,
  • दातव्यम् = दा + तव्यत्,
  • जनितम् = जन् + क्त,
  • आचारः = आङ् + चर् + घञ्,
  • लोभः = लुभ् + घञ्

 

अभ्यास:

मौखिकः

1. एकपदेन उत्तरं वदत- 

(क) विदुरः क : आसीत् ? 

उत्तर:- मंत्रीप्रवरः।

(ख) मूढचेता नराधमः कास्मिन् विश्वसिति ? 

उत्तर:- अविश्वस्ते।

(ग) उत्तमाशान्तिः का ? 

उत्तर:- क्षमा।

(घ) का परमा तृप्तिः ? 

उत्तर:- विद्या।

(ङ) नरकस्य कियद् द्वारं परिगणितम् ? 

उत्तर:- त्रिविधम्

(च) विद्या केन रक्ष्यते ? 

उत्तर:- योगेन।

(छ) विनयः कं हन्ति ?

उत्तर:- अपयशम् |

 

2. श्लोकांशं योजयित्वा वदत – (श्लोक के बचे अंश को जोड़कर बोलें) 

(क) त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं ………….। कामक्रोधस्तया ……… त्रयं त्यजेत्। 

उत्तर:- त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः। कामक्रोधस्तया लोभस्तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत्। 

 

(ख) सत्येन रक्ष्यते धर्मो ………… | ………….. कुलं वृत्तेन रक्ष्यते॥

उत्तर:- सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते। मृजया रक्ष्यते रूपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते।।

 

लिखितः

1. एकपदेन उत्तरं वदत- 

(क) केषां तत्वज्ञः पण्डितः उच्यते? 

उत्तर:- सर्वभूतानाम्।

(ख) अनाहूतः कः प्रविशन्ति? 

उत्तर:- मूढ़चेतानराधमः

(ग) धर्मः केन रक्ष्यते? 

उत्तर:- सत्येन।

(घ) क्षमा कं हन्ति? 

उत्तर:- क्रोधम्।

(ङ) सुखावहा का?

उत्तर:- अहिंसा 

(च) नरकस्य त्रिविधं द्वारं कस्य नाशनम्? 

उत्तर:- आत्मनः

(छ) केन षड् दोषाः हातव्याः?

उत्तर:- भूतिमिच्छतापुरुषेण।

 

2. उदाहरणमनुसृत्य क्तिन् प्रत्यय योगेन शब्द निर्माणं करणीयत् –

उदाहरणम् – भू + क्तिन् = भूतिः 

प्रश्नाः- 

  • गम् + क्तिन् – गतिः।
  • शम् + क्तिन् – शन्तिः।
  • तृप् + क्तिन् – तृप्तिः।
  • रम् + क्तिन् – रतिः।
  • श्रम् + क्तिन् – श्रान्तिः।
  • सम् + क्तिन् – समृद्धिः।
  • वृध् + क्तिन् – वृद्धिः।
  • नी + क्तिन् – नीतिः।
  • तम् + क्तिन् – तमितिः।
  • हन् + क्तिन् – हतिः।
  • कृ + क्तिन् – कृतिः।

3. उदाहरणानुसारम् वाच्य परिवर्तनम् कुरुत- (उदाहरण अनुसार वाच्य परिवर्तन करें) 

उदाहरणम्—(क) कर्तृवाच्य – विनयः अकीर्ति हन्ति। कर्मवाच्य – विनयेन उकीर्तिः हन्यते। (ख) कर्मवाच्ये धर्मः सत्येन रक्ष्यते। कर्तृवाच्ये – सत्यम् धर्म रक्षति।

प्रश्ना:-

(क) पराक्रमः अनर्थ हन्ति। 

उत्तर:- पराक्रमेन अनर्थः क्रोधं

(ख) क्षमया क्रोधः हन्यते। 

उत्तर:- क्षमया क्रोध हन्ति। 

(ग) योगः विद्यां रक्षति। 

उत्तर:- योगेन विद्या रक्षति।

(घ) मृजया रूपं रक्ष्यते। 

उत्तर:- मृजा रूपं रक्षति 

(ङ) आचारेण अलक्षणः हन्यते। 

उत्तर:- आचारः अलक्षणं हन्ति। 

(च) मया ग्रन्थः पठ्यते। 

उत्तर:- अहं ग्रन्थः पठामि। 

(छ) वयं वेदं पठामः। 

उत्तर:- अस्माभिः वेदः पठ्यते।

 

4. पूर्ण वाक्येन उत्तरं लिखत – (पूर्ण वाक्य से उत्तर लिखें)

(क) पुरुषेण के षड्दोषाः हातव्याः? 

उत्तर:- पुरुषेण निद्रा तन्द्रा भयं क्रोधं आलस्यं दीर्घसूत्रता चेति षड्दोषाः हातव्याः। 

(ख) पण्डितः कः उच्यते? 

उत्तर:- सर्वभूतानां तत्वज्ञः सर्वकर्मणाम् योगज्ञः मनुष्यानां उपायज्ञः नरः च पण्डितः उच्यते। 

(ग) एक एव धर्मः किं कथ्यते? 

उत्तर:-एकः एव धर्मः परंश्रेयः कथ्यते। 

(घ) नरकस्य कानि त्रीणि द्वाराणि सन्ति? 

उत्तर:- नरकस्य कामं क्रोधं लोभं च त्रीणि द्वाराणि सन्ति। 

(ङ) कस्य-कस्य च वक्ता श्रोता च दुर्लभः? 

उत्तर:- अप्रियस्य पथ्यस्य च वक्ता श्रोता च दुर्लभः। 

(च) स्त्रियः गृहस्य काः उक्ताः सन्ति? 

उत्तर:- स्त्रियः गृहस्य श्रियः पूजनीयाः महाभागाः गृहदीप्तयः पुण्याः च उक्ताः सन्ति। 

(छ) कुलं केन रक्ष्यते?

उत्तर:- कुलं वृतेन रक्ष्यते। 

 

5. निम्नांङ्कित पर्दैः एकैकं वाक्यं रचयत-

(क) उच्यते (ख) त्यजेत् (ग) बहुभाषते (घ) विश्वसिति (ङ) वर्तते (च) विघ्नन्ति (छ) रक्ष्या।

उत्तर:- 

(क) मनुष्यानां उपायज्ञः नरः पण्डितः उच्यते। 

(ख) मानवः कामं क्रोधं लोभं च त्यजेत्। 

(ग) नराधमः अपृष्टः अपि बहुभाषते। 

(घ) नराधमः अविश्वस्ते अपि विश्वसिति। 

(ङ) भारतस्य उत्तरे हिमालयः वर्तते। 

(च) पण्डितस्य कृत्यं शीत-उष्णादिन विघ्नन्ति। 

(छ) स्त्री विशेष रूपेण रक्ष्या।

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Question)

  1. नीतिश्लोका: पाठ किस ग्रन्थ से संकलित है ?- विदुरनीति से
  2. नीतिश्लोका: पाठ महाभारत के किस पर्व से संकलित है ?- उद्योगपर्व से
  3. धृतराष्ट का मंत्री कौन था ?- विदुर
  4. प्रश्नोत्तर रूप में कौन ग्रन्थ है ?- विदुरनीति
  5. किसके कर्म को सर्दी-गर्मी, भय-आनंद व उन्नति-अवनति विघ्न नहीं डालता है ?- विद्वान के
  6. बिना बुलाये ही कौन आ जाता है ?- नराधम
  7. बिना बजाए ही कौन अधिक बोलता है ?- नराधम
  8. अविश्वसनीय में भी कौन विश्वास कर लेता है ?- नराधम 
  9. सबसे बड़ा आश्रय क्या है ?- धर्म
  10. सबसे उत्तम शांति क्या है ?- क्षमा
  11. सबसे बड़ी तृप्ति क्या है ?- विद्या
  12. सबसे बड़ी सुख देने वाली क्या है ?- अहिंसा
  13. नरक लोक के कितने द्वार है ?-त्रयद् (तीन)
  14. काम,क्रोध तथा लोभ किसका द्वार है ?- नरक का
  15. ऐश्वर्य इच्छुक पुरुष के अन्दर कितने अवगुण रहते है ?- षड् (छः)
  16. धर्म किससे रक्षित होता है ?- सत्य से
  17. विद्या किससे रक्षित होती है ?- योग से
  18. मृजा से क्या रक्षित होता है ?- रूप
  19. सुन्दर आचरण से क्या रक्षित होता है ?- वंश या खानदान
  20. सत्य और प्रिय बोलने वाले पुरुष क्या होते है ?- सुलभ
  21. असत्य व अप्रिय वक्ता और श्रोता क्या होते है ?- दुर्लभ
  22. स्त्रियाँ घर की क्या होती है ?- लक्ष्मी
  23. पूजनीया, महाभाग्यशालिनी, पुण्यमयी और घर को प्रकाशित करने वाली कौन कही गयी है ?- स्त्रियाँ
  24. कौन विशेष रूप से रक्षा करने योग्य होती है ?- स्त्रियाँ
  25. अपयश को कौन नष्ट करता है ?- विनय
  26. पराक्रम किसको मार देता है ?- अनर्थ को
  27. क्या हमेशा क्रोध को मारती है ?- क्षमा
  28. सुन्दर आचरण किसको मार देता है ?- कुलक्षण को
  29. नीतिश्लोका: पाठ में कुल कितने मन्त्र लिए गये हैं ?- दश
  30. सभी जीवों के तत्व को जानने वाले, सभी कर्म के योग को जानने वाले व मनुष्यों में उपाय जानने वाले क्या कहे गये है ?- विद्वान

गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न(Subjective Question)

1. नीतिश्लोका: पाठ कहाँ से संकलित है तथा वह ग्रंथरत्न किस रूप में है ?

उत्तर:- नीतिश्लोका: पाठ सुप्रसिद्ध ग्रन्थ महाभारत के उद्योग पर्व के रूप में विदुरनीति से संकलित है | युद्ध निकट पाकर धृतराष्ट्र ने मंत्री श्रेष्ट विदुर को अपने चित की शांति के लिए कुछ प्रश्न पूछा | पूछे गए समुचित प्रश्नों का उत्तर महात्मा विदुर ने दिया | वही प्रश्नोत्तर रूप ग्रंथरत्न विदूरनीति है |

 

2. पण्डित या विद्वान को परिभाषित करें |

उत्तर:- जिसके कर्म को सर्दी – गर्मी, भय – आनंद व उन्नति – अवनति विघ्न नहीं डालते एवं सभी जीवों के आत्मा को जानने वाले, सभी कर्मो के योग को जानने वाले व मनुष्यों में उपाय को जानने वाले विद्वान कहे गये हैं |

 

3. नराधम के लक्षण को बताएँ 

उत्तर:- नराधम बिना बुलाये ही आ जाता है, बिना बजाये ही बहुत बोलता है तथा अविश्वसनीय में भी विश्वास करता है |

 

4. नरकलोक के कितने द्वार हैं और कौन- कैन से है ? लिखें |

उत्तर:- नरकलोक के तीन द्वार हैं – काम, क्रोध, तथा लोभ | इन्हें धारण करने वाले अपने आप को नष्ट कर लेते हैं | अतः मोक्ष प्राप्ति हेतु इन तीनो को त्याग देने चाहिए |

 

5. ऐश्वर्य इच्छुक पुरुष के द्वारा कौन छः दोष त्याग देने चाहिए ?

उत्तर:- ऐश्वर्य चाहने वाले पुरुष को ये छ: दोष – निद्रा, तंद्रा, भयं, क्रोध, आलस्य एवं दीर्घसूत्रता  त्याग देने चाहिए |

 

6. कौन पुरुष सुलभ हैं और कौन पुरुष दुर्लभ है ? पठित पाठ के आधार पर बताएँ |

उत्तर:- सत्य तथा प्रिय बोलने वाले पुरुष सुलभ होते हैं तथा असत्य व अप्रिय बोलने वाले तथा सुनने वाले पुरुष दुर्लभ होते हैं |

 

7. पठित पाठ के आधार पर स्त्रियों की विशेषता को बताएँ |

उत्तर:- स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी, पूजनीया, पुण्यमयी, महाभाग्यशालिनी और घर को प्रकाशित करने वाली कही गयी हैं | इसी विशेषता के कारण स्त्रियाँ विशेषतः रक्षा करने योग्य होती हैं |

 

योग्यताविस्तारः

धृतराष्ट्रेण सह………………………. विदुर: उक्तवान् –

अर्थ—धृतराष्ट्र के साथ विदुर का सम्पन्न संवाद “विदुरनीति’ कहा जाता है। अनुभवी विदुर विदुरः उक्तवान् के एक-एक श्लोक नीति-सम्मत, व्यावहारिक और अनुकरण के योग्य है। जब धृतराष्ट्र विदुर से पूछते हैं- हे विदुर इस संसार में सुख के कौन-कौन साधन हैं। विदुर ने कहा-

अर्थागमोऽनित्यमरोगिता च, प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च। 

वश्यश्च पुत्रोऽर्थकरी च विद्या, षड्जीवलोकस्य सुखानि राजन्।।

अर्थ—सदैव धन का आगमन होते रहना, सदैव नीरोग रहना, प्रिय और प्रियवादनी पत्नी का होना, वश में रहने वाला पुत्र होना, तथा अधिक से अधिक पैसा कमाने वाली विद्या का होना, ये छः चीजें इस संसार में सुख देने वाले साधन हैं।

Conclusion

इस पोस्ट में आपने बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के संस्कृत पाठ्य पुस्तक के पाठ (Chapter) – 7, Nitishloka (Niti ke shrlok)/नीतिश्लोकाः (नीति के श्लोक) के लगभग सभी प्रश्न-उत्तर पढ़ा तथा परीक्षा के दृष्टिकोण अन्य कई वस्तुनिष्ठ (Objective) एवं गैर-वस्तुनिष्ठ (Subjective) पढ़ा है | यह पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अपनी राय कमेंट (Comment) में अवश्य दे |

 

अन्य अध्याय (Other Chapters)

  1. Chapter 1 मंगलम
  2. Chapter 2 पाटलिपुत्रवैभवम
  3. Chapter 3 अलसकथा
  4. Chapter 4 संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः
  5. Chapter 5 भारतमहिमा (भारत की महिमा)
  6. Chapter 6 भारतीयसंस्काराः (भारतीय संस्कार)
  7. Chapter 7 नीतिश्लोकाः (नीति के श्लोक)
  8. Chapter 8 कर्मवीर कथा
  9. Chapter 9 स्वामी दयानन्दः
  10. Chapter 10 मन्दाकिनीवर्णनम्
  11. Chapter 11 व्याघ्रपथिककथा
  12. Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता
  13. Chapter 13 विश्वशान्तिः
  14. Chapter 14 शास्त्रकाराः

BSEB Class 10th Hindi काव्य-खंड (पद्य) Solutions

Chapter :- 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै
Chapter :- 2 प्रेम अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं
Chapter :- 3 अति सूधो सनेह को मारग है, मो अंसुवानिहिं लै बरसौ
Chapter :- 4 स्वदेशी
Chapter :- 5 भारतमाता
Chapter :- 6 जनतंत्र का जन्म
Chapter :- 7 हिरोशिमा
Chapter :- 8 एक वृक्ष की हत्या
Chapter :- 9 हमारी नींद
Chapter :- 10 अक्षर-ज्ञान
Chapter :- 11 लौटकर आऊँग फिर
Chapter :- 12 मेरे बिना तुम प्रभु

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