Bihar Board Classs 10th Sanskrit Solution Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता ( कर्ण की दानवीरता ) | 10th Sanskrit NCERT Solution | by SarkariCity

Follow Us

Bihar Board Classs 10th Sanskrit Solution Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता ( कर्ण की दानवीरता )| 10th Sanskrit NCERT Solution | BSEB 10 Sanskrit Solution | Karnasy Danvirta|BSEB 10 Chapter 12 sanskrit|BSEB SOLUTION

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now
इन पोस्ट पर आपको बिहार बोर्ड (BSEB) के कक्षा 10 के संस्कृत पाठ्य पुस्तक का समाधान देखने को मिलेगा | इस पेज में आप 10th संस्कृत पीयूषम भाग -2 के द्वादश: पाठः (Chapter-12) कर्णस्य दानवीरता ( कर्ण की दानवीरता ) / karnasy Danvirta का सभी प्रश्न-उत्तर तथा परीक्षा के दृष्टिकोण तैयार किए गए अन्य कई महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ एवं गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न पढ़ने को मिलेंगे |

कहानी का अर्थ

अयं पाठः …………………….. अभिनेयं च वर्तते ।
अर्थ :– (यह पाठ ‘भास’ रचित कुर्ण भार नामक नाटक का भाग विशेष है। इस नाटक की कहानी महाभारत से ग्रहण किया गया है। महाभारत युद्ध में कुन्तीपुत्र कर्ण कौरव के पक्ष करते हैं। कर्ण के शरीर में स्थित कवच और कुण्डल से वह रक्षित था। जब तक कवच और कुण्डल कर्ण के शरीर में है तबतक कोई भी कर्ण को नहीं मार सकता है। इसलिए अर्जुन की सहायता के लिए इन्द्र छलपूर्वक दानवीर कर्ण के शरीर से कवच और कुण्डल लेता है। कर्ण खुशी पूर्वक अंग में स्थित कवच और कुण्डल देता है। भास” के तेरह नाटक मिले हैं। उनमें ‘कर्णभारम्” अति सरल अभिनय है।
(ततः प्रविशति ब्राह्मणरूपेण शक्रः)
( इसके बाद प्रवेश करता है ब्राह्मण रूप में इन्द्र)
शक्रः भो मेघाः, सूर्येणैव ……………….. भिक्षां याचे।
अर्थ :– अरे मेघों, सूर्य से जाकर कहो आप जायँ। (कर्ण के समीप जाकर) ओ कर्ण! बहुत बड़ी भिक्षा माँग रहा हूँ।
 
 
कर्णः दृढ़ प्रीतोऽस्मि भगवन् ! ……………….. नमस्करोमि।
अर्थ :– भगवन्! मैं खूब प्रसन्न हूँ। यह कर्ण आपको प्रणाम करता है।
शक्रः (आत्मगतम्) किं नु खलु मया ………………………. इव, चन्द्र, इव, हिमवान् इव, सागर इव तिष्ठतु ते यशः 
अर्थ :– इन्द्र (मन में) क्या इस व्यक्ति के लिये बोला जाय, यदि दीर्घायु हो बोलता हूँ तो दीर्घायु हो जायगा, यदि ऐसा नहीं बोलता हूँ तो मुझको मूर्ख समझेगा। इसलिए दोनों को छोड़कर क्यों न ऐसा बोलूँ आप प्रसन्न हों। (खुलकर) ओ कर्ण! सूर्य की तरह, चन्द्रमा की तरह हिमालय की तरह, समुद्र की तरह आपका यश कायम रहे।
कर्णः–भगवन् ! किं न वक्तव्यं …………………… किमहं ददामि।
अर्थ :– – भगवन! क्या दीर्घायु हो ऐसा नहीं बोलना चाहिए? अथवा यही ठीक है। क्योंकि मनुष्य के द्वारा यत्न से धर्म अर्जित होता है। राजा का धन तो साँप के जीभ की तरह चंचल है। इसलिए मात्र प्रजापालन के विचार से उन गुणों को धारण करते हैं। भगवन! आप क्या चाहते हैं? मैं क्या दूँ ?
शक्रः- महत्तरां भिक्षां याचे ।
अर्थ :– बहुत बड़ी भिक्षा माँगता हूँ।
कर्णः- महत्तरां भिक्षां ………………………. गोसहस्रंददामि।
अर्थ :– बड़ी भिक्षा आपको देता हूँ। अलंकृत हजार गायें देता हूँ।
 
 
शक्रः- गोसहस्रमिति | मुहूर्त कं ………………………. नेच्छामि|
अर्थ :– एक हजार गाय | मुहूर्त भर दूध पिऊँगा। नहीं चाहता हूँ कर्ण ! नहीं चाहता हूँ। 
 
 
कर्णः- किं नेच्छति भवान् । इदमपि …………………… ते ददामि। 
अर्थ :– आप क्या चाहते हैं। यह भी आप सुनें। अनेकों हजार घोड़े देता हूँ। 
 
 
शक्र:- अश्वमिति । मुहूर्तकम् …………………… नेच्छामिं कर्ण! नेच्छामि। 
अर्थ :– घोड़ा की ? क्षण भर के लिए चढूग, कर्ण इसकी इच्छा नहीं है। नहीं चाहता हूँ। 
 
 
कर्णः-  किं नेच्छति भगवान् । अन्यदपि ………………….. वृन्दमपि ते ददामि।
अर्थ :–  भगवन् आप क्या चाहते हैं? अन्य भी सुनिये । हाथियों का अनेक समूह भी आपको  देता हूँ।
शक्रः- राजमिति। मुहूर्त कम् …………………….. नेच्छामि |
अर्थ :– राजन! क्षण भर के लिए चढ़ूंगा, मेरी इच्छा नहीं है कर्ण ! मैं नहीं चाहता हूँ।   
 
 
कर्णः–किं नेच्छति भवान् । …………………. कनकं ददामि। 
अर्थ :– क्या चाहते हैं आप ? दूसरा भी सुन लें अपर्याप्त ( अधिकाधिक) सोना देता हूँ। 
 
 
शक्रः- गृहीत्वा गच्छामि। (किंचिद गत्वा ) ………………….. नेच्छामि। 
अर्थ :– लेकर जाता हूँ (थोड़ा बढ़कर) नहीं चाहता हूँ कर्ण नहीं चाहता हूँ। 
 
 
कर्णः- तेन हि जित्वा पृथिवीं ददामि। 
अर्थ :– तो जीतकर पृथ्वी देता हूँ।
शक्रः- पृथिव्यां किं करिष्यामि। 
अर्थ :– मत काटो मत काटो ।
कर्णः- तेन ह्यग्निष्टोमफलं कार्यम् । 
अर्थ :–  उससे यज्ञ के फल देने वाला कार्य कीजियेगा।
कर्णः- तेन हि मच्छिरो ददामि। 
अर्थ :- तो अपना सिर देता हूँ।
शक्रः- अविहा अविहा। 
अर्थ :– अलविदा – अलविदा (फिर नहीं आऊँगा)
कर्णः– ने भेतव्यं न भेतव्यम् । ……………………. रुचितं यदि स्यात् 
अर्थ :– कर्ण– मत डरें! मत डरें! आप प्रसन्न होवें, अन्य भी सुनिये । देह रक्षा के लिए मेरे अंग के साथ स्थित कवच के साथ कुण्डल को भी आप जानते हैं। जो हजारों देवता और दानवों के द्वारा भी अभेद्य है। इसके बाद भी दोनों को देता हूँ। अगर आपकी इच्छा हो तो ग्रहण करें और मुझ पर प्रसन्न होवें।
शक्रः-(सहर्षम् ) ददातु, ददातु।
अर्थ :– इन्द्र- (खुशीपूर्वक) दीजिये – दीजिये।
कर्ण:- ( आत्मगतम्) एष एवास्य कामः । किं ………………… नास्ति संशयः । (प्रकाशम्) गृह्यताम् ।
अर्थ :– कर्ण (अपने मन में सोचता है) यही इसकी कामना है। क्या यह अनेक कपट वुद्धि अर्जित करने का उपाय कृष्ण का है। वह भी हो, अधिक सोचना बेकार है। इसमें कोई शंका नहीं करना चाहिए। (खुल कर बोलता है।) ग्रहण कीजिए
शल्यः–अङ्गराज ! न दातव्यं न दातव्यम्।
अर्थ :– शल्य अंगराज! नहीं देना चाहिए, नहीं देना चाहिए। 
 
कर्णः- शल्यराज ! अलमलं वारयितुम् । पश्य-
शिक्षा क्षयं ……………………………………..,
जलं जलस्थानगतं ………………….. पादपः ।
तस्मात् गृह्यताम् (निकृत्य ददाति ) |
अर्थ :– शल्यराज ! मना करना बेकार है, बेकार है। देखिये –
समय के परिवर्त्तन से शिक्षा का क्षय हो रहा है। अच्छे ढंग से जड़ जमें पेड़ गिर रहे हैं। जलाशय (नदी-तालाव आदि) से जल सूख रहे हैं। दिया दान और दी गयीं आहूति (हवन) सदैव स्थिर रहती है। इसलिए ग्रहण कीजिये ( निकालकर देता है )

व्याकरणम्

शब्दार्था:-
  • निवर्त्य – जाकर,
  • प्रीतः – खुश,
  • महत्तराम् – बड़ी,
  • वक्ष्ये- कहूँगा,
  • परिहत्य – हटाकर,
  • इव- जैसा,
  • भुजङ्गः – सांप,
  • क्षीरम् – दूध,
  • वाजिन् – घोड़ा
  • वारणः – हाथी,
  • कनकम् – सोना,
  • सह- साथ,
  • असुरः- राक्षस,
  • काम: -इच्छा,
  • पादपाः- पेड़,
  • निकृत्य- काटकर,
  • मूढ़: – मूर्ख,
  • वृन्दम् -समूह,
  • दत्तम् -दान।
सन्धिविच्छेदः
  • सूर्येणैव – सूर्येण + एव,
  • कर्णमुपगम्य – कर्णम् + उपगम्य,
  • प्रीतोऽस्मि – प्रीतः + अस्मि,
  • भवन्तमहमेष – भवन्तम् + अहम् + एष,
  • नमस्करोमि – नमः + करोमि,
  • दीर्घायुर्भविष्यति-  दीर्घ + आयु: + भविष्यति,
  • तस्मादुभयम् – तस्मात् + उभयम्,
  • एतदेव – एतत् + एव,
  • तस्मात्प्रजापालनमात्रबुद्धया – तस्मात् + प्रजापालनमात्रबुद्धया,
  • किमिच्छसि – किम् + इच्छसि,
  • किमहम् – किम् + अहम्,
  • सालङ्कारम् – स + अलङ्कारम्,
  • गोसहस्रमिति – गोसहस्रम् + इति,
  • नेच्छामि – ने+ इच्छामि,
  • नेच्छति – न + इच्छति,
  • इदमपि – इदम् + अपि,
  • अन्यदपि – अन्यत् + अपि,
  • किंचिद् – किम् + चितु,
  • ह्यग्निष्टोमफलम् – हि + अग्निष्टोमफलम्,
  • मेच्छिर: – मत् + शिरः,
  • सहैव – सह + एव,
  • देवासुरैरपि – देव + असुरैः +  अपि,
  • वारणानामनेकम् – बारणानाम् + अनेकम्,
  • भेद्यमिदम् – भेद्यम् + इदम्,
  • तथापि – तथा +  अपि,
  • एवास्य – एवं + अस्य,
  • खल्वनेककपटबुद्धेः – खलु+ अनेककपटबुद्धेः,
  • कृष्णस्योपाय: – कृष्णस्य + उपाय:,
  • सोऽपि – स: + अपि
  • धिगयुक्तमनुशोचितम् – धिक् + अयुक्तम् + अनुशोचितम्,
  • तथैव – तथा + एव,
  • प्रकृतिप्रत्ययविभागः – प्रकृति + प्रत्यय + विभाग,
  • उपगम्य – उप + गम् + ल्यप्
  • वक्तव्यम् – वच् + तव्यत्,
  • परिहृत्य – परि + हृ + ल्यप्,
  • निवर्त्य – नि+ वृत् + णिच् + ल्यप्
  • गृहीत्वा – ग्रह + त्वा ( क्त्वा),
  • जित्वा – जि + त्वा (क्त्वा),
  • कार्यम् – कृ + यत्,
  • गत्वा – गम् + त्वा ( क्त्वा),
  • भेतव्यम् – भी + तव्यत्,
  • वारयितुम् – वृ + णिच् + तुमुन्,
  • निकृत्य – नि + कृन्त् + ल्यप् ।
अभ्यास:

मौखिकः

1. अधोलिखितानां पदानां पर्यायवाचिपदानि वदत-
मूढः – मूर्खः, अज्ञः, अज्ञानी
वाजिन् – अश्व:, घोटक:, तुरंग:
वारणः – गज :, हस्ती , मातंग:
क्षीरम् – दुग्धम , पय:
भुजङ्गः –  सर्प:, अहि, विषधर : , भुजंग:
कनकम् – स्वर्णम , कंचन, दीप्त:, दीप्तक:
2. अघोलिखितानां पदानां प्रकृति-प्रत्यय-विभागं वदत-
वक्तव्यम् – वच् + तव्यत्,
उपगम्य –  उप + गम् + ल्यप्
इच्छामि – इष् + मिप् (तिङ्),
श्रूयताम् – श्रू + आताम् (तिङ्)
3. विपरीतार्थकान् शब्दान् वदत –
उत्तर –
दीर्घायुः – अल्पायुः,
प्रीतः – अप्रीतः,
दत्वा – गृहीत्वा,
यश: – अपयशः
प्रविशति – निर्गच्छति।
4. सन्धिविच्छेदं कुरुत –
उत्तर-
सूर्येणैव – सूर्यो + एव,
एतदेव – एतत् + एव,
प्रीतोऽस्मि – प्रीतः + अस्मि
कर्णमुपगम्य –  कर्णम् + उपगम्य,
तस्मादुभयम् – तस्मात् + उभयम्
नेच्छामि – न + इच्छामि।

लिखितः

1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषायां लिखत- 
( क ) ततः ब्राह्मणरूपेण कः प्रविशति ?
उत्तर:- ततः ब्राह्मणरूपेण इन्द्रः प्रविशति
( ख ) कर्णः प्रथमं किं दातुम् इच्छति ?
उत्तर:- कर्ण: प्रथमं सालंकार गोसहस्रं दातुम् इच्छति स्म स्म
(ग) कालपर्ययात् का क्षयं गच्छति ?
उत्तर:- कालपर्ययात् शिक्षा क्षयं गच्छति
(घ) कर्णः कस्य देशस्य राजा आसीत् ?
उत्तर:- कर्ण: अंग देशस्य राजा आसीत्
(ङ) किं तथैव तिष्ठति ?
उत्तर:- दत्तं तथैव तिष्ठति
2. निम्नलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां स्थाने कोष्ठात् उचित रूपम् आदाय प्रश्ननिर्माणं कुरुत – (निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित शब्दों के स्थान पर कोष्ठक से उचित रूप लेकर • प्रश्न निर्माण करें )
(क) ततः प्रविशति ब्राह्मणरूपेण शक्र: (क:/का)
उत्तर:- ततः प्रविशति ब्राह्मणरूपेण कः?
( ख ) महत्तगं भिक्षां याचे (किं / काम्)
उत्तर:- महत्तरा काम् याचे?
(ग) मुहूर्तक क्षीरं पिबामि । (कम् / किम्)
उत्तर:- मुहूर्तकं किम् पिबामि ?
(घ) सुबद्धयूलाः पादपाः निपतन्ति । (कः/के).
उत्तर:- सुबद्धमूला: के निपतन्ति ?
(ङ) जलस्थानगतं जलं शुष्यति। (का / किम्)
उत्तर:- जलस्थानगतं किम् शुष्यति ?
3. अधोलिखितानाम् अव्ययपदानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क)..यदि ..न वक्ष्ये मूढ इति मां परिभवति ।
(ख) एषा ..एव..तिष्ठतु ते यशः ।
(ग) सूर्य..इव.. तिष्ठतु  ते यश: ।
(घ) इदं देवासुरै..अपि..न भेद्यम्।
(ङ) जलं जलस्थानगम।..च.. शुष्यति |
 4. सन्धिः विच्छेद  वा करूत –
(क) मच्छिरो – मत् + शिरो
(ख) दीर्घायुर्भवेति- दीर्घ + आयुः भव+इति
(ग) ह्यग्निष्टोमफलम् – हि+अग्निष्टोमफलम्
(घ) अन्यदपि – अन्यत्+अपि
(ङ) कृष्णस्योपाय: – कृष्णस्य + उपाय:
(च) सोऽपि – स:+अपि
(छ) सहैव – सह + एव
(ज) धिगयुक्तमनुशोचितम् – धिक्+अयुक्तम्
5. अधोलिखितानां पदानां प्रकृति-प्रत्यय-विभागं कुरुत
(निम्नलिखित पदों का प्रकृति -प्रत्यय अलग करें)
गृहीत्वा, दातव्यम्, वारयितुम, जित्वा, परिहृत्य
उत्तर-
गृहीत्वा – ग्रह + क्त्वा,
दातव्यम् – दा + तव्यत
जित्वा – जि + क्त्वा,
परिहत्य – परि + हृ + ल्यप
वारयितुम – वृ + णिच् + तुमुन
6. अधोलिखितानां पदानां स्ववाक्येषु संस्कृतभाषायां प्रयोगं कुरुत
कर्णः, क्षीरम्, अश्वः, करिष्यामि, इच्छसि
उत्तर –
कर्ण: – कर्ण: दानवीरः आसीत्,
क्षीरम् – क्षीरम् मधुरं भवति ।
अश्व: –  अश्वः धावति,
करिष्यामि – अहं इदं कर्मं न करिष्यामि।
इच्छसि –  त्वं किम् इच्छसि ।
 

Conclusion

इस पोस्ट में आपने बिहार बोर्ड के कक्षा 10 के संस्कृत पाठ्य पुस्तक के पाठ (Chapter) – 12karnasy danvirta/कर्णस्य दानवीरता ( कर्ण की दानवीरता) के लगभग सभी प्रश्न-उत्तर पढ़ा तथा परीक्षा के दृष्टिकोण अन्य कई वस्तुनिष्ठ (Objective) एवं गैर-वस्तुनिष्ठ (Subjective) पढ़ा है | यह पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अपनी राय कमेंट (Comment) में अवश्य दे |

 

अन्य अध्याय (Other Chapters)

  1. Chapter 1 मंगलम
  2. Chapter 2 पाटलिपुत्रवैभवम
  3. Chapter 3 अलसकथा 
  4. Chapter 4 संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः 
  5. Chapter 5 भारतमहिमा (भारत की महिमा)
  6. Chapter 6 भारतीयसंस्काराः (भारतीय संस्कार)
  7. Chapter 7 नीतिश्लोकाः (नीति के श्लोक)
  8. Chapter 8 कर्मवीर कथा 
  9. Chapter 9 स्वामी दयानन्दः
  10. Chapter 10 मन्दाकिनीवर्णनम् 
  11. Chapter 11 व्याघ्रपथिककथा
  12. Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता 
  13. Chapter 13 विश्वशान्तिः
  14. Chapter 14 शास्त्रकाराः

BSEB Class 10th Hindi काव्य-खंड (पद्य) Solutions

Chapter :- 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै
Chapter :- 2 प्रेम अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं
Chapter :- 3 अति सूधो सनेह को मारग है, मो अंसुवानिहिं लै बरसौ
Chapter :- 4 स्वदेशी
Chapter :- 5 भारतमाता
Chapter :- 6 जनतंत्र का जन्म
Chapter :- 7 हिरोशिमा
Chapter :- 8 एक वृक्ष की हत्या
Chapter :- 9 हमारी नींद
Chapter :- 10 अक्षर-ज्ञान
Chapter :- 11 लौटकर आऊँग फिर
Chapter :- 12 मेरे बिना तुम प्रभु

_______________________

Related Posts

Krishnakumar kunnath (KK)

Google pays tribute to Krishnakumar kunnath (KK) with animated doodle on his Bollywood debut anniversary

PM Awas Yojana 2024

PM Awas Yojana 2024 | ग्रामीण और शहरी इलाकों के 3 करोड़ लोगों को Pradhan Mantri Awas की लाभ

Bihar Deled Counselling 2024: Choice Filling, Online Registration, Merit List, Date & Notification

Bihar Deled Counselling 2024: Choice Filling, Online Registration, Merit List, Date & Notification