Bihar Board Class 12th Hindi Book Solution पद्य chapter 9 ‘जन-जन का चेहरा एक’

Follow Us

Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 9 ‘जन-जन का चेहरा एक’ | BSEB 12th Hindi padya Solution |jan jan ka chehara ek bhavarth and question-answer | BSEB 12 hindi padya adhyay 9 |Class 12 ka Hindi ka Objective | class 12th hindi book solution| Dingat bhag 2 pdf download| 12th hindi book solution pdf | chapter 9 जन-जन का चेहरा एक’

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now
Bihar Board Class 12th Hindi Book Solution पद्य chapter 9 'जन-जन का चेहरा एक'

Hello, इस वेबसाइट के इस पेज पर आपको Bihar Board Class 12th Hindi Book के काव्य खंड के Chapter 9 के सभी पद्य के भावार्थ एवं प्रश्न- उत्तर (Question-Answer) पढने को मिलेंगे साथ ही साथ कवि परिचय एवं आपके परीक्षा के दृष्टिकोण से ओर भी महत्वपूर्ण जानकारियां पढने को मिलेंगे | इस पूरे पेज में क्या-क्या है उसका हेडिंग (Heading) नीचे दिया हुआ है अगर आप चाहे तो अपने जरूरत के अनुसार उस पर क्लिक करके सीधा (Direct) वही पहुंच सकते है |Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 9 ‘जन-जन का चेहरा एक’

इसी प्रकार की और जानकारी जल्दी प्राप्त करने के लिए कृपया नीचे दीये गए telegram चैनल को अवश्य जॉइन करें –

कवि परिचय

जीवनी – कवि गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म श्योपुर, मध्य प्रदेश में सन् 1917 में हुआ था। इनके पिता माधव राव ग्वालियर रियासत के पुलिस विभाग में कार्यरत थे। पिता के शुभ व्यक्तित्व के प्रभाव से लेखक में ईमानदारी, न्यायप्रियता एवं दृढइच्छाशक्ति का विकास हुआ है। इन्होंने अपने जीवन में मुख्यतः अध्यापन कार्य ही किये हैं ।

रचनाएँ – मुक्तिबोध की रचनाओं में ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है, ‘भूरी भूरी खाक घूल’ ” ‘कविता संग्रह’ मुख्य हैं। विपात्र नामक उपन्यास एवं ‘एक साहित्यिक की डायरी’ उनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ मानी गयी हैं। ‘कामायनी एक पुनर्विचार’, ‘नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा ‘अन्य निबंध’, ‘नए साहित्य का सौंदर्य शास्त्र’ आदि उनकी रचनाएँ महत्व की हैं।

उपरोक्त सभी रचनायें छ: खंडों में ‘मुक्तिबोध रचनावली’ के नाम से प्रकाशित हैं। काव्यगत विशेषताएँ – छायावाद और स्वच्छंदतावादी कविता के बाद जब नई कविता आई तो अगुआ कवियों में से मुक्तिबोध’ एक माने जाते हैं | मराठी संरचना से प्रभावित लम्बे वाक्यों के कारण जटिल होते हुए भी उनमें विचारात्मक व भावनात्मक ऊर्जा अत्यंत भरपूर है। मुक्तिबोध का चिंतन व लेखन आलोचनात्मक भी रहा है।

मुक्तिबोध का जटिल व्यक्तित्व ज्ञान व संवेदना के संश्लिष्ट स्तर से युगीन प्रभाव की प्रौढ़ता के कारण उनकी कविताएँ सशक्त व विशिष्ट हैं। इन्होंने अधिकांशतः लम्बी नाटकीय कविताएँ लिखी हैं, जिनमें सम-सामयिक समाज, उनमें पलने वाले अंर्तद्वन्द्वों और इन अंर्तद्वन्द्वों से उत्पन्न भय, विद्रोह और दुर्दर्श संघर्ष भावना के विविध रूपों का चित्रण किया है।

मुक्तिबोध की कविताओं में संपूर्ण परिवेश के मध्य स्वयं को ढूँढने व पाने के साथ, स्वयं को परिवेश की पूर्णता के साथ – परिवर्तित करने की प्रक्रिया का भी वर्णन पाते हैं । मूलतः इनकी कविताएँ एक आधुनिक जागरूक व्यक्ति के आत्मसंघर्ष की कविताएँ मानी गयी हैं। गहन विचारशील और विशिष्ट काव्यशिल्प के कारण उनको कविताओं की विशेष पहचान है ? स्वतंत्र भारत के मध्यवर्गीय जीवन को विडम्बनाओं एवं विद्रूपताओं के चित्रण के साथ एक बेहतर मानवीय समाज व्यवस्था के निर्माण की चाहत इनको कविताओं की विशेष विशेषताएँ हैं ।

कविता का सारांश

प्रश्न – “जन-जन का चेहरा एक” शीर्षक कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें ।

उत्तर-“जन-जन का चेहरा एक” शीर्षक कविता में यशस्वी कवि मुक्तिबोध ने अत्यन्त सशक्त एवं रोचक ढंग से विश्व की विभिन्न जातियों एवं संस्कृतियों के बीच करूपता दर्शाते हुए प्रभावोत्पादक मनोवैज्ञानिक संश्लेषण किया है। कवि के अनुसार संसार व प्रत्येक महादेश, प्रदेश तथा नगर के लोगों में एक सी प्रवृति पायी जाती है।

विद्वान कवि की दृष्टि में प्रकृति समान रूप से अपनी ऊर्जा प्रकाश एवं अन्य सुविधाएँ समस्त प्राणियों को वे चाहे जहाँ निवास करते हों, उनकी भाषा एवं संस्कृति जो भी हो, बिना भेदभाव किए प्रदान कर रही है। कवि की संवेदना प्रस्तुत कविता में स्पष्ट मुखरित होती है।

ऐसा प्रतीत होता है कि कवि शोषण तथा उत्पीड़न की शिकार जनता द्वारा अपने अधिकारों के संघर्ष का वर्णन कर रहा है। यह समस्त संसार में रहने वाली जनता (जन-जन) के शोषण के खिलाफ संघर्ष को रंखांकित करता है। इसलिए कवि उनके चेहरे की झुर्रियों को एक समान पाता है। कवि प्रकृति के माध्यम से उनके चेहरे की झुर्रियों की तुलना गलियों में फैली हुई धूप (जो सर्वत्र एक समान है) से करता है। अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत जनता की बँधी हुई मुट्ठियों में दृढ़ संकल्प की अनुभूति कवि को हो रही है ।

गोलाकार पृथ्वी के चतुर्दिक जन समुदाय का एक दल है । आकाश में एक भयानक सितारा चमक रहा है और उसका रंग लाल है, लाल रंग हिंसा, हत्या तथा प्रतिरोध की ओर संकेत कर रहा है, जो दमन, अशांति एवं निरंकुश पाशविकता का प्रतीक है। सारा संसार इससे त्रस्त है। यह दानवीय कुकृत्यों की अन्तहीन गाथा है।

नदियों की तीब्र धारा में जनता (जन-जन) की जीवन धारा का बहाव कवि के अर्न्तमन की वेदना के रूप में प्रकट हुआ है। जल का अविरल कल-कल करता प्रवाह वेदना के गीत – जैसा प्रतीत होता है, प्रकारान्तर में यह मानव मन की व्यथा-कथा जिसे इस सांकेतिक शैली में व्यक्त किया गया है

जनता अनेक प्रकार के अत्याचार, अन्याय तथा अनाचार से प्रताड़ित हो रही है। मानवता के शत्रु जनशोषक दुर्जन लोग काली-काली छाया के समान, अपना प्रसार कर रहे हैं, अपने कुकृत्यों तथा अत्याचारों का काला दुर्ग (किला) खड़ा कर रहे हैं ।

गहरी काली छाया के समान दुर्जन लोग अनेक प्रकार के अनाचार तथा अत्याचार कर रहे हैं, उनके कुकृत्यों की काली छाया फैल रही है, ऐसा प्रतीत होता है कि मानवता के शत्रु इन दानवों द्वारा अनैतिक एवं अमानवीय कारनामों का काला दुर्ग काले पहाड़ पर अपनी काली छाया के रूप में प्रसार पा रहा है। एक ओर जन शोषण शत्रु खड़ा है, दूसरी ओर आशा की उल्लासमयी लाल ज्योति से अंधकार का विनाश करते हुए स्वर्ग के समान मित्र का घर है।

सम्पूर्ण विश्व में ज्ञान एवं चेतना की ज्योति में एकरूपता है। संसार का कण-कण उसके तीव्र प्रकाश से प्रकाशित है। उसके अन्तर से प्रस्फुटित क्रांति की ज्वाला अर्थात् प्रेरणा सर्वव्यापी तथा उसका रूप भी एक जैसा है। सत्य का उज्जवल प्रकाश जन-जन के हृदय में व्याप्त है तथा अभिनव साहस का संचार एक समान हो रहा है क्योंकि अंधकार को चीरता हुआ मित्र का स्वर्ग है ।

प्रकाश की शुभ्र ज्योति का रूप एक है । वह सभी स्थान पर एक समान अपनी रोशनी बिखेरता है । क्रांति से उत्पन्न ऊर्जा एवं शक्ति भी सर्वत्र एक समान परिलक्षित होती है। सत्य का दिव्य प्रकाश भी समान रूप से सबको लाभान्वित करता है। विश्व के असंख्य लोगों की वेदना में भी कोई अन्तर नहीं है। इसका कारण है कि समस्त जनता का चेहरा एक है ।

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solution पद्य chapter 9 ‘जन-जन का चेहरा एक’

भिन्न-भिन्न संस्कृतियों वाले विभिन्न महादेशों की भौगोलिक एवं ऐतिहासिक विशिष्टताओं के बावजूद, वे भारत वर्ष की जीवन शैली से प्रभावित हैं क्योंकि यह विश्वबन्धुत्व भूमि है जहाँ कृष्ण की बाँसुरी बजी थी तथा कृष्ण ने गाएँ चराई थीं ।

पूरे विश्व में दानव एवं दुरात्मा एकजुट हो गए हैं। दोनों की कार्य शैली एक है । शोषक, खूनी तथा चोर का भी लक्ष्य एक ही है। इन तत्वों के विरूद्ध छेड़े गए युद्ध की शैली भी एक

सभी जन के समूह (जन-जन) के मस्तिष्क का चिन्तन तथा हृदय के अन्दर की प्रबलता में भी एकरूपता है। उनके हृदय की प्रबल ज्वाला की प्रखरता भी एक समान है। क्रांति का सृजन तथा विजय के देश के निवासी का सेहरा एक है। संसार के किसी नगर, प्रान्त तथा देश के निवासी का चेहरा एक है तथा वे एक ही लक्ष्य के लिए संघर्षरत हैं ।

सारांश यह है कि संसार में अनेकों प्रकार के अनाचार, शोषण तथा दमन समान रूप से अनवरत जारी हैं। उसी प्रकार जनहित के अच्छे कार्य भी समान रूप से हो रहे हैं। सभी की आत्मा एक है। उनके हृदय का अन्तःस्थल एक है । इसीलिए कवि का कथन हैसंग्राम का घोष एक, जीवन संतोष एक । क्रांति का निर्माण का, विजय का सेहरा एक चाहे जिस देश, प्रांत, पुर का हो । -जन का चेहरा एक !

सप्रसंग व्याख्या

प्रश्न 1. संग्राम का घोष एक,

जीवन-संतोष एक ।

क्रांति का, निर्वाण का, विजय का सेहरा एक,

चाहे जिस देश, प्रान्त, पुर का हो जन-जन का चेहरा एक !

उत्तर – प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ हमारी पाठ्युपस्तक दिगंत, भाग-2 के “जन-जन का चेहरा एक” शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। इसके रचयिता यशस्वी कवि मुक्तिबोध हैं। कवि ने इस कविता में संसार की वर्तमान स्थिति तथा उसमें वास करने वाले लोगों की मानसिकता का वर्णन किया है ।

इन पंक्तियों में कवि की मान्यता है कि सभी के मस्तिष्क का समान महत्व है। हृदय के अन्दर से उठने वाली अत्यन्त तीव्र ज्वाला की प्रखरता भी एक समान होती है । युद्ध की घोषणा भी एक प्रकार की होती है। इसी प्रकार जीवन में संतोष की भावना में भी एकरूपता रहती है । क्रांति निर्माण तथा विजय के सेहरा का भी रूप एक है। संसार के किसी भी नगर, प्रान्त तथा देश के निवासी का चेहरा भी एक समान है।

कवि इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि संसार में अनेक प्रकार के अनाचार तथा शोषण समान रूप से अनवरत जारी हैं। उसी प्रकार जनहित के अच्छे कार्य भी समान रूप से हो रहे हैं । किन्तु सभी की आत्मा एक है। सबके अन्दर हृदय एक समान है-.

इसीलिए कवि कहता है – ” संग्राम का घोष एक, जीवन-संतोष एक “

अर्थात्, प्रत्येक व्यक्ति संघर्षरत है – वह चाहे निर्माण कार्य के लिए हो अथवा विनाश के लिए । क्रांति का आह्वान प्रत्येक मनुष्य के अन्तर में विद्यमान रहता है। निर्माण में भी उसकी अहम भूमिका होती है । अपने कार्यों के लिए समान रूप से अनेक मस्तक पर विजय का सेहरा बँधता है। प्रत्येक व्यक्ति वह चाहे जिस नगर, प्रान्त तथा देश – अर्थात् क्षेत्र का हो उसका चेहरा एक है । कवि को ऐसी आशा है कि अन्ततः मानवता की दानवता पर विजय होगी । वह इस दिशा में आश्वस्त दीखता है । कवि सारे विश्व के व्यक्तियों को समान रूप से देखता है । उसकी मान्यता है कि उनमें देश, काल की विभिन्नता रहते हुए भी मानसिकता एक है, बाहरी आचरण एक प्रकार का है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. गजानन माधव मुक्तिबोध बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के हिन्दी के प्रमुख कवि, चिंतक, आलोचक, और कथाकार थे, स्पष्ट करें ।

उत्तर – मुक्तिबोध का आगमन हिन्दी साहित्य में प्रयोगवाद के कवि के रूप हुआ। अपने युग की मार्क्सवादी एवं अस्तित्ववादी विचारधाराओं से प्रभावित होकर भी मुक्तिबोध ने अपना स्वतंत्र मार्ग चुना। वे प्रकृति और संवेदना से ही अथक सत्यान्वेषी, ज्ञान पिपासु और साहसी खोजी थे। उनमें बौद्धिक और नैतिक पराक्रम कूट-कूट कर भरा हुआ था। उन्होंने अपने प्रश्नों एवं आपत्तियों के साथ अनवरत संघर्ष करते हुए साहित की समृद्धि में अमूल्य योगदान किया । इनकी अनमोल कृतियाँ इसका प्रमाण हैं। वे गंभीर चिंतक, प्रखर आलोचक, और कथाकार के साथ क्रांतिकारी संवेदनशील कवि थे।

प्रश्न 2. मुक्तिबोध के जीवन और साहित्य में कोई फर्क नहीं दिखाई पड़ती। इस पंक्ति पर प्रकाश डालें।

उत्तर – मुक्तिबोध का जीवन मूल्य और रचना मूल्य दोनों एक है। मुक्तिबोध ने अपने जीवन से ही रचना की कीमत चुकाई । उनका जीवन और साहित्य दोनों अक्स-बर-अक्स और एक दिखाई पड़ते हैं। मुक्तिबोध का जीवन संघर्षमय था । अतः उसका प्रभाव काव्य- -कृतियों एवं अन्य रचनाओं पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। उन्होंने यथार्थ को भोगा और यथार्थ का चित्रण किया। निराला की तरह ही मुक्तिबोध अपनी पीढ़ी के महान क्रांतिकारी कवि हैं। उनका गंभीर अध्ययन पर्यवेक्षण, अनुभव, संवेदन और यथार्थ बोध असाधारण और अद्वितीय है।

प्रश्न 3. मुक्तिबोध की कविता में कवि की दृष्टि और संवेदना वौश्विक और सार्वभौम दिखाई पड़ती है। प्रस्तुत कविता के आधार पर प्रकाश डालें ।

उत्तर – मुक्तिबोध आम जन के क्रांतिकारी एवं संवेदनशील कवि हैं। इनकी कविता में विश्व के मानव की पीड़ा, संवेदना, करुणा, स्नेह, आत्मीयता की झलक मिलती हैं । कवि की दृष्टि में भौगोलिक या ऐतिहासिक सीमाएँ मानव-मानव के बीच दीवार बनाकर खड़ी नहीं दीखती क्योंकि कवि की दृष्टि पैनी, गहरी एवं सर्वव्यापक है । विश्व के जन सुख से कवि अपना संबंध जोड़ता है । कवि पीड़ित एवं संघर्षशील जनता का जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कर्मरत है, चित्र प्रस्तुत करता है । कवि जनता में अन्तर्वर्ती एकता देखता है। ।

प्रश्न 4. मुक्तिबोध की प्रमुख काव्य कृतियों की चर्चा करें ।

उत्तर – मुक्तिबोध हिन्दी साहित्य के महान क्रांतिकारी कवि हैं । इनकी तुलना महाकवि निराला से की जाती है। चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल ‘तारसप्तक’ प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं। ये हिन्दी की धरोहर हैं । मुक्तिबोध ने जो जीवन में भोगा उसे यथार्थ रूप में चित्रित किया।

प्रश्न 5. मुक्तिबोध के प्रमुख कथा-साहित्य के बारे में लिखें ।

उत्तर- काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी आदि प्रमुख कथा-साहित्य हैं। इन कृतियों में मुक्तिबोध ने अपने सत्यान्वेषी, ज्ञान पिपासु, खोजी दृष्टि के बल पर गंभीर चिंतन परक रचनाएँ दी हैं।

प्रश्न 6. मुक्तिबोध के प्रमुख आलोचना ग्रंथों का उल्लेख करें ।

उत्तर- मुक्तिबोध ने अपनी प्रखरता एवं तेजस्विता का परिचय अपने गंभीर आलोचनात्मक निबंधों में दिया है। इनके मौलिक एवं शोधपरक प्रमुख आलोचना ग्रंथों में महत्वपूर्ण हैंसमीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक की डायरी भी आलोचना ग्रंथ हैं ।

प्रश्न 7 मुक्तिबोध रचनावली का संवादन किसने किया है, ये कई खंडों में प्रकाशित हैं ।

उत्तर- मुक्तिबोध रचनावली (छ: खंण्डों में) का संपादन नेमिचंद्र जैन ने किया है । इस रचनावली का प्रकाशन राजकमल प्रकाशन द्वारा किया गया है।

प्रश्न 8 मुक्तिबोध की काव्य भाषा पर प्रकाश डालें ।

उत्तर – काव्य भाषा के संबंध में मुक्तिबोध का रूढ़ आग्रह नहीं रहा । उनकी नवीन चेतना भी संस्कृतनिष्ठ तत्सम् सामासिक पदावली की अलंकृत गलियों से गुजरती है, तो कभी अरबी-फारसी, उर्दू के नाजुक हाथों को थामकर चलती है। कभी बोल-चाल के सहज प्रवाह में प्रवाहित होती है तो कभी अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत के मिश्रित रूप का कुशलता पूर्वक सहारा लेती है। शब्द-रचना, शब्दावली प्रयोग के रूप में भी वे एक विशिष्ट कवि के रूप में जाने जाते हैं ।

प्रश्न 9. मुक्तिबोध की प्रस्तुत कविता से कुछ विशेषण चुनें । गहरी काली छायाएँ पसारकर खड़े हुए शत्रु का काले से पहाड़ पर काला-काला दुर्ग एक जन- शोषक शत्रु एक ।

उत्तर- गहरी, काली, छायाएँ, काले से, काला – शोषक आदि

प्रश्न 10. “मुक्तिबोध की कविता दुरूह होते हुए भी बौद्धिक, रोमानी । उनकी कविता अद्भुत संकेतों से भरी जिज्ञासाओं से अस्थिर कभी दूर से शोर मचाती, कभी कानों में चुपचाप राज की बातें कहती चलती हैं। हमारी बातें हमको सुनाती हैं ।” शमशेर बहादूर सिंह के इस कथन पर प्रकाश डालें ।

उत्तर – मुक्तिबोध की कुछ कविताएँ दुरूह भी हैं तो कुछ बौद्धिकता से बोझिल भी । अदुभुत संकेतों एवं जिज्ञासाओं से भरी हुई उनकी कविताएँ जीवन के विविध आयामों से परिचय कराती है । शब्दों में इतनी धार है कि वे शोर करती हुई प्रतीत होती है यानि क्रांतिकारी भावनाओं से ओत-प्रोत हैं । कभी इशारा ही इशारा में चुपचाप कानों को अपनी अनुगूंज से प्रभावित करती है यानि कान भी शब्द योजना की ध्वनि से अतिशय लाभान्वित होते हैं। श्रवण कर मन प्रफुल्लित हो उठता है ।

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. “जन-जन का चेहरा एक” से कवि का क्या तात्पर्य है ? अथवा, “जन-जन का चेहरा एक” शीर्षक कविता का भावार्थ लिखें ।

उत्तर- “जन-जन का चेहरा एक” अपने में एक विशिष्ट एवं व्यापक अर्थ समेटे हुए हैं । कवि पीड़ित संघर्षशील जनता की एकरूपता तथा समान चिन्तनशीलता का वर्णन कर रहा है। कवि की संवेदना, विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता के प्रति मुखरित हो गई है, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कार्यरत हैं। एशिया, यूरोप, अमेरिका अथवा कोई भी अन्य महादेश या प्रदेश में निवास करने वाले समस्त प्राणियों का शोषण तथा उत्पीड़न के प्रतिकार का स्वरूप एक जैसा है। उनमें एक अदृश्य एवं अप्रत्यक्ष एकता है । उनकी भाषा, संस्कृति एवं जीवन शैली भिन्न हो सकती है, किन्तु उन सभी के चेहरों में कोई अन्तर नहीं दीखता, आर्थात् उनके चेहरे पर हर्ष एवं विषाद, आशा तथा निराशा की प्रतिक्रिया, एक जैसी होती है। समस्याओं से जूझने ( संघर्ष करने) का स्वरूप एवं पद्धति भी समान है ।

कहने का तात्पर्य यह है कि यह जनता दुनियाँ के समस्त देशों में संघर्ष कर रही है अथवा इस प्रकार कहा जाए कि विश्व के समस्त देश, प्रान्त तथा नगर- सभी स्थान के “जन-जन ” (प्रत्येक व्यक्ति) के चेहरे एक समान हैं। उनकी मुखाकृति में किसी प्रकार की भिन्नता नहीं है । आशय स्पष्ट है विश्वबंधुत्व एवं उत्पीड़ित जनता जो सतत् संघर्षरत् है उसी की पीड़ा का वर्णन कवि कर रहा है।

प्रश्न 2. बँधी हुई मुट्टियों का क्या लक्ष्य है ?

उत्तर- विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता की संकल्पशीलता ने उनकी मुट्ठियों को जोश में बाँध दिया है। कवि ऐसा अनुभव कर रहा है मानो “जन-जन” (समस्त जनता) अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सम्पूर्ण ऊर्जा से लबरेज अपनी मुट्ठियों द्वारा संघर्षरत है । प्रायः देखा जाता है कि जब कोई व्यक्ति क्रोध की मनोदशा में रहता है, अथवा किसी कार्य को सम्पादित करने की दृढ़ता तथा प्रतिबद्धता के भाव में जाग्रत होता है तो उसकी मुट्ठियाँ बँध जाती हैं। उसकी भुजाओं में नवीन स्फूर्ति का संचार होता है। यहाँ पर “बँधी हुई मुट्ठियों” का तात्पर्य कार्य के प्रति दृढ़ संकल्पशीलता तथा अधीरता (बेताबी) से है. जैसा इन पंक्तियों में वर्णित है, “जोश में यों ताकत से बँधी हुई मुठ्ठियों का लक्ष्य एक ।”

प्रश्न 3. कवि ने सितारे को भयानक क्यों कहा है ? सितारे का इशारा किस ओर है ?

उत्तर- कवि ने अपने मन्तव्य (विचार) को प्रकट करने के लिए काफी हद तक प्रवृति का भी सहारा लिया है। कवि विश्व के जन-जन (प्रत्येक व्यक्ति) की पीड़ा, शोषण तथा अन्य समस्याओं का वर्णन करने के क्रम में अनेकों दृष्टान्तों का सहारा लेता है। इस क्रम में वह आकाश में भयानक सितारे की ओर इशारा करता है । वह सितारा जलता हुआ है और उसका रंग लाल है । प्रायः कोई वस्तु आग की ज्वाला में जलकर लाल हो जाती है। लाल रंग हिंसा, खून तथा प्रतिशोध का परिचायक है । इसके साथ ही यह उत्पीड़न, दमन, अशांति एवं निरंकुश पाशविकता की ओर भी संकेत करता है ।

‘जलता हुआ लाल कि भयानक सितारा एक उद्दीपित उसका विकराल से इशारा एक । ” उपरोक्त पंक्तियों में एक लाल तथा भयंकर सितारा द्वारा विकराल सा इशारा करने की कवि की कल्पना है । आकाश में एक लाल रंग का सितारा प्रायः दृष्टिगोचर होता है, “मंगल” तारा (ग्रह) । संभवतः कवि का संकेत उसी ओर हो, क्योंकि उस तांरा की प्रकृति भी गर्म है । कवि ने जलता हुआ भयानक, सितारा जो लाल है- इस अभिव्यक्ति द्वारा सांकेतिक भाषा में उत्पीड़न, दमन एवं निरंकुश शोषकों द्वारा जन-जन के कष्टों का वर्णन किया है ।

इस प्रकार कवि विश्व की वर्तमान विकराल दानवी प्रकृति से संवेदनशील (द्रवित) हो गया प्रतीत होता है ।

प्रश्न 4. नदियों की वेदना का क्या कारण है ?

उत्तर- नदियों की वेगवती धारा में जिन्दगी की धारा के बहाव, कवि के अन्त: मन की वेदना को प्रतिबिम्बित करता है। कवि को उनके कल-कल करते प्रवाह में वेदना की अनुभूति होती है। गंगा, इरावती, नील, आमेजन नदियों की धारा मानव-मन की वेदना को प्रकट करती है, जो अपने मानवीय अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। जनता की पीड़ा तथा संघर्ष को जनता से जोड़ते हुए बहती हुई नदियों में वेदना के गीत कवि को सुनाई पड़ते हैं ।

प्रश्न 5.अर्थ स्पष्ट करें:

( क ) आशामयी लाल-लाल किरणों से अंधकार,

चीरता सा मित्र का स्वर्ग एक;

जन-जन का मित्र एक

उत्तर – आशा से परिपूर्ण लाल-लाल किरणों से अंधकार को चीरता हुआ मित्र का एक स्वर्ग । वह जन-जन का मित्र है। कवि के कहने का अर्थ यह है कि सूर्य की लाल किरणें अंधकार का नाश करते हुए मित्र के स्वर्ग के समान हैं। समस्त मानव समुदाय का वह मित्र है । विशेष अर्थ यह प्रतीत होता है कि विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता जो अपने अधिकारों की प्राप्ति, न्याय, शांति एवं बंधुत्व के लिए प्रयत्नशील है, उसे आशा की मनोहारी किरणें स्वर्ग के आनन्द के समान दृष्टिगोचर हो रही हैं।

(ख) एशिया के, यूरोप के, अमरीका के

भिन्न-भिन्न वास स्थान;

भौगोलिक, ऐतिहासिक बंधनों के बावजूद,

सभी ओर हिन्दुस्तान, सभी ओर हिन्दुस्तान

उत्तर – भौगोलिक तथा ऐतिहासिक बन्धनों में बँधे रहने के बावजूद एशिया, यूरोप, अमरीका आदि जो विभिन्न स्थानों में अवस्थित हैं, उनमें केवल हिन्दुस्तान के ही शोहरत है । इसका आशय यह है कि एशिया, यूरोप, अमरीका आदि विभिन्न महादेशों में भारत की गौरवशाली तथा बहुरंगी परंपरा की धूम है, सर्वत्र भारतवर्ष (हिन्दुस्तान) की सराहना है । भारत विश्वबंधुत्व, मानवता, सौहार्द, करुणा, सच्चरित्रता आदि मानवोचित गुणों तथा संस्कारों का प्रणेता है । अतः सम्पूर्ण विश्व की जनता (निवासी) आशा तथा दृढ़ विश्वास के साथ इसकी ओर निहार रहो हैं ।

प्रश्न 6. “दानव दुरात्मा” से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर – पूरे विश्व की स्थिति अत्यन्त भयावह, दारुण तथा अराजक हो गई है। दानव और दुरात्मा का अर्थ है- जो अमानवीय कृत्यों में संलग्न रहते हैं, जिनका आचरण पाशविक होता है उन्हें दानव कहा जाता है । जो दुष्ट प्रकृति के होते हैं तथा दुराचारी प्रवृत्ति के होते हैं उन्हें ‘दुरात्मा’ कहते हैं । वस्तुतः दोनों में कोई भेद नहीं है, एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं । ये सर्वत्र पाए जाते हैं ।

प्रश्न 7. ज्वाला कहाँ से उठती है ? कवि ने इसे “अतिक्रुद्ध” क्यों कहा है ?

उत्तर-ज्वाला का उद्गम स्थान मस्तिष्क तथा हृदय के अन्तर की उष्मा है । इसका अर्थ यह होता है कि जब मस्तिष्क में कोई कार्य योजना बनती है तथा हृदय की गहराई में उसके प्रति तीव्र उत्कंठा की भावना निर्मित होती है तब वह एक प्रज्जवलित ज्वाला का रूप धारण कर लेती है। “अतिक्रुद्ध” का अर्थ होता है अत्यन्त कुपित मुद्रा में । आक्रोश की अभिव्यक्ति कुछ इसी प्रकार होती है । अत्याचार, शोषण आदि के विरुद्ध संघर्ष का आह्वान हृदय की अतिक्रुद्ध ज्वाला की मनःस्थिति में होता है ।

प्रश्न 8. समूची दुनिया में जन-जन का युद्ध क्यों चल रहा है ?

उत्तर – सम्पूर्ण विश्व में जन-जनका युद्ध जन मुक्ति के लिए चल रहा है । शोषक, खूनी चोर तथा अन्य अराजक तत्त्वों द्वारा सर्वत्र व्याप्त असन्तोष तथा आक्रोश की परिणति जन-जन के युद्ध अर्थात जनता द्वारा छेड़े गए संघर्ष के रूप में हो रहा है ।

प्रश्न 9. कविता का केन्द्रीय विषय क्या है ?

उत्तर – कविता का केन्द्रीय विषय पीड़ित और संघर्षशील जनता है । वह शोषण, उत्पीड़न तथा अनाचार के विरूद्ध संघर्षरत है। अपने मानवोचित अधिकारों तथा दमन की दानवी क्रूरता के विरूद्ध यह उसका युद्ध का उद्घोष है। यह किसी एक देश की जनता नहीं है, दुनिया के तमाम देशों में संघर्षरत जन-समूह है जो अपने संघर्षपूर्ण प्रयास से न्याय, शान्ति, सुरक्षा, बंधुत्व आदि की दिशा में प्रयासरत है । सम्पूर्ण विश्व की इस जनता (जन-जन) में अपूर्व एकता तथा एकरूपता है ।

प्रश्न 10. प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारू से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर – गंगा, इरावती, नील, आमेजन आदि नदियाँ अपने अन्तर में समेटे हुए अपार जलराशि निरन्तर प्रवाहित कर रही हैं। उनमें वेग है, शक्ति है तथा अपनी जीवन धारा के प्रति एक बेचैनी है। प्यार भी है, क्रोध भी है। प्यार एवं आक्रोश का अपूर्व संगम है। उनमें एक करूणाभरी ममता है तो अत्याचार, शोषण एवं पाशविकता के विरूद्ध दोधारी आक्रमकता भी है। प्यार का इशारा तथा क्रोध की दुधारू का तात्पर्य यही है ।

प्रश्न 11. पृथ्वी के प्रसार को किन लोगों ने अपनी सेनाओं से गिरफ्तार किया है ?

उत्तर – पृथ्वी के प्रसार को दुराचारियों तथा दानवी प्रकृति वाले लोगों ने अपनी सेनाओं द्वारा गिरफ्तार किया है। उन्होंने अपने काले कारनाओं द्वारा प्रताड़ित किया है। उनके दुष्कर्मों तथा अनैतिक कृत्यों से पृथ्वी प्रताड़ित हुई है। इन मानवता के शत्रुओं ने पृथ्वी को गम्भीर यंत्रणा दी है ।

प्रश्न 12. ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता का सारांश लिखिए ।

उत्तर – उत्तर के लिए कविता का सारांश देखें ।

भाषा की बात

प्रश्न 1. प्रस्तुत कविता के संदर्भ में मुक्तिबोध की काव्यभाषा की विशेषताएँ बताइए ।

उत्तर – आधुनिक हिन्दी साहित्य में गजानन मुक्तिबोध जी एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में ख्यात है। इनकी काव्य प्रतिभा से हिन्दी जगत अवगत है । प्रस्तुत कविता जन-जन का चेहरा एक’ में कवि की भाषा अत्यंत ही सहज, सरल और प्रवाहमयी है । हिन्दी के सरल एवं ठेठ बहुप्रचलित शब्दों का प्रयोग कर कवि ने अपने उदात्त विचारों को प्रकट किया है। मुक्तिबोध की काव्य भाषा में ऐसे शब्दों का प्रयोग हुआ है जिनके द्वारा भावार्थ समझने में कठिनाई नहीं होती । काव्यभाषा के जिन-जिन गुणों की जरूरत होती है उनका समुचित निर्वहन मुक्तिबोध जी ने अपनी कविताओं में किया है ।

मुक्तिबोध भारतीय लोक संस्कृति से पूर्णत वाकिफ है। इसी कारण उन्होंने पूरे देश की समन्वय संस्कृति की रक्षा के लिए अपनी कविता को नया स्वर दिया । इनकी कविताओं में इतनी सहज संप्रेषणशीलता है कि सभी लोगों को शीघ्र ही ग्राह्य हो जाती है। भाव पक्ष के वर्णन में कवि ने अत्यंत ही सुद्धता से काम लिया है। पूरे देश के इतिहास और संस्कृति की विशद व्याख्या इनकी कविताओं में हुई है। कवि ने शब्दों के चयन में अपनी कुशलता का उत्कृष्ट परिचय दिया है । वाक्य विन्यास भी सुबोध है । कविता में प्रवाह है । कहीं भी अवरोध नहीं मिलता | भावाभिव्यक्ति में कवि की संवेदशीलता और बौद्धिकता स्पष्ट दिखायी पड़ती है। अपने ज्ञान अनुभव और संवेदनशीलता के काव्य जगत में अपनी सृजनशीलता के द्वारा बहुमूल्य कृतियों का सृजन कर सराहनीय काम किया है।

भाषा की सहजता, शब्दचयन द्वारा भावों की सहज अभिव्यक्ति, बहुप्रचलित सरल, बोध-गम्य शब्दों का प्रयोग कल्पना एवं यथार्थ का सम्यक संयोग कवि की निजी विशेषताएँ हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित मुहावरे, लोकोक्तियों एवं गद्य से युक्त इनकी कविताओं में देश के विविध स्वरूपों का सम्यक चित्रण हुआ है । कवि ने अपनी पैनी शोधकारक दृष्टि एवं गंभीर चिंतन का दर्शन अपनी कविताओं द्वारा हमें कराया है ।

प्रश्न 2. संधि विच्छेद करें- संताप, संतोष

उत्तर – (i) सम् + ताप : संताप ।

(ii) सम् + तोष = संतोष ।

प्रश्न 3. निम्नलिखित काव्य पंक्तियों से विशेषण चुने ।

उत्तर – विशेषण : गहरी, काली, काले से, काला – काला, शोषक

प्रश्न 4. उत्पाती की दृष्टि से निम्नलिखित शब्दों की प्रकृति बताएँ- कष्ट संताप भयानक विकराल

उत्तर-

प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें

धूप, गली, दानव, हिय, ज्वाला ।

उत्तर-(i) धूप : घाम, आतप, धर्म, सूर्य प्रकाश, सूर्यातप ।

(ii) गली : कटरा, कूचा, तंग, सड़क, लेन, स्ट्रीट |

(iii) दानव : असुर, दैत्य, राक्षस, निशिचर, निशाचर, रजनीचर आदि ।

(iv) हिये : छाती, उर, कलेजा, दिल, हृदय, रिदा, हिय, जान ।

(v) ज्वाला : ज्योति, जोत, शिखा, दीपज्योति, दीपशिखा आदि

इस आर्टिकल में आपने Bihar Board Class 12th hindi Book के काव्य खंड के Chapter 9 ‘जन-जन का चेहरा एक’ में के भावार्थ एवं प्रश्न- उत्तर (Question-Answer) पढ़ा | अगर कोई सुझाव या परेशानी हो तो नीचे कमेंट में अपनी राय अवश्य दें | धन्यवाद |

इसे भी पढ़ें –  

Chapter :- 1 कड़बक
Chapter :- 2 सूरदास के पद
Chapter :- 3 तुलसीदास के पद
Chapter :- 4 छप्पय
Chapter :- 5 कवित्त
Chapter :- 6 तुमुल कोलाहल कलह में
Chapter :- 7 पुत्र वियोग
Chapter :- 8 उषा
Chapter :- 9 जन-जन का चेहरा एक
Chapter :- 10 अधिनायक
Chapter :- 11 प्यारे नन्हें बेटे को
Chapter :- 12 हार-जीत
Chapter :- 13 गाँव का घर

Related Posts

Krishnakumar kunnath (KK)

Google pays tribute to Krishnakumar kunnath (KK) with animated doodle on his Bollywood debut anniversary

PM Awas Yojana 2024

PM Awas Yojana 2024 | ग्रामीण और शहरी इलाकों के 3 करोड़ लोगों को Pradhan Mantri Awas की लाभ

Bihar Deled Counselling 2024: Choice Filling, Online Registration, Merit List, Date & Notification

Bihar Deled Counselling 2024: Choice Filling, Online Registration, Merit List, Date & Notification

Leave a Comment