Bihar Board Class 12th Hindi Book Solution पद्य chapter 12 ‘हार-जीत’

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Bihar Board Class 12th Hindi Book Solution पद्य chapter 12 'हार-जीत'

Hello, इस वेबसाइट के इस पेज पर आपको Bihar Board Class 12th Hindi Book के काव्य खंड के Chapter 11 के सभी पद्य के भावार्थ एवं प्रश्न- उत्तर (Question-Answer) पढने को मिलेंगे साथ ही साथ कवि परिचय एवं आपके परीक्षा के दृष्टिकोण से ओर भी महत्वपूर्ण जानकारियां पढने को मिलेंगे | इस पूरे पेज में क्या-क्या है उसका हेडिंग (Heading) नीचे दिया हुआ है अगर आप चाहे तो अपने जरूरत के अनुसार उस पर क्लिक करके सीधा (Direct) वही पहुंच सकते है |Bihar Board Class 12th Hindi पद्य Solution chapter 10 ‘प्यारे नन्हें बेटे को’

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कवि परिचय

जीवनी – अशोक बाजपेयी का जन्म 16 जनवरी 1941 को दुर्ग, छत्तीसगढ़ (मध्य प्रदेश) में हुआ था। उनकी माता का नाम निर्मला देवी एवं पिता का नाम परमानन्द वाजपेयी था । उनकी प्राथमिक शिक्षा गवर्नमेंट हायर सेकेन्ड्री स्कूल, सागर में हुई। सागर विश्वविद्यालय से बी० ए० और सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली से अंग्रेजी में एम० ए० किया । वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे तथा महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्व विद्यालय के प्रथम कुलपति पद से सेवा निवृत्त हुए। वे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए। सम्प्रति वे दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन कार्य कर रहे हैं ।

रचनाएँ – तीन दर्जन के लगभग उनकी मौलिक एवं संपादित रचनाएँ प्रकाशित हुईं । इनकी निम्नलिखित कविताएँ प्रकाशित हुईं- “शहर ‘अब भी संभावना है”, “एक पतंग अनन्त में’’, ‘‘अगर इतने से”, “तत्पुरुष”, “कहीं नहीं वहीं”, “बहुरि अकेला”, “थोड़ी सी जगह”, ‘‘घास में दुबका आकाश’, आविन्यो, अभी कुछ और, समय के पास समय, इबादत से गिरी मात्राएँ, कुछ रफू कुछ थिगड़े, उम्मीद का दूसरा नाम, विवक्षा, “दुख चिट्ठीरसा है”।

साहित्यिक विशेषताएँ – अशोक बाजपेयी समसामयिक हिन्दी के एक प्रमुख कवि, आलोचक, विचारक, कला मर्मज्ञ, संपादक एवं संस्कृति कर्मी हैं। उनकी संवेदना, भाषा और रचनात्मक चिंताओं ने व्यापक पाठक वर्ग का ध्यान आकृष्ट किया। उनकी कविता में वैयक्तिक आग्रह बढ़ने लगे । खुशहाल मध्यवर्ग की अभिरूचियों को तुष्ट करने में उनकी कविता में एक तरह की स्वच्छंदता विकसित हुई । एक समर्थ कवि की पहचान उनकी कविता में कौंधती है; एक ऐसा कवि जिसका मानस विस्तृत है, उदार है; संवेदनायुक्त है और भाषा स्फूर्त, समर्थ, भारहीन और अर्थग्रहिणी है ।

कविता का सारांश

प्रश्न – “हार-जीत” कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें ।

उत्तर – ” हिन्दी साहित्य के प्रखर प्रतिभा संपन्न कवि अशोक वाजपेयी की “हार-जीत” कविता अत्यंत ही प्रासंगिक है। इसमें कवि ने युग-बोध और इतिहास बोध का सम्यक ज्ञान जनता को कराने का प्रयास किया है। इस कविता में जन-जीवन की ज्वलंत समस्याओं एवं जनता की अबोधता, निर्दोष छवि को रेखाकिंत किया गया है ।

कवि का कहना है कि सारे शहर को प्रकाशमय किया जा रहा है और वे यानी जनता जिसे हम तटस्थ प्रजा भी कह सकते हैं, उत्सव में सहभागी हो रही हैं। ऐसा इसलिए वे कर रहे हैं कि ऐसा ही राज्यादेश है। तटस्थ प्रजा अंधानुकरण से प्रभावित है। गैर जबाबदेही भी है। तटस्थ जनता को यह बताया गया है कि उनकी सेना और रथ विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं लेकिन उनमें (नागरिकों में से) से अधिकांश को सत्यता की जानकारी नहीं है। उन्हें सही-सही बातों की जानकारी नहीं है कि किस युद्ध में उनकी सेना और शासक शरीक हुए थे। उन्हें यह भी ज्ञात नहीं था कि शत्रु कौन थे ? बिडंबना की बात यह है कि इसके बावजूद भी वे विजय पर्व मनाने की तैयारी में जी-जान से लगे हुए हैं। उन्हें सिर्फ यह बताया गया है कि उनकी विजय हुई है। ‘उनकी’ से आशय क्या है यानी उनकी माने किनकी ? यह एक प्रश्न उभरता है। यह भी स्थिति साफ नहीं है वे जश्न मनाने में इतना मशगूल हैं कि उन्हें यह भी सही-सही पता नहीं है कि आखिर विजय किसकी हुई- सेना की, शासक की या नागरिकों की। कितनी भयावह शोचनीय स्थिति है कि किसी के पास यह फुर्सत नहीं है कि वह पूछे कि आखिर ये कैसे और क्यों हुआ ? वे अपनी निजी समस्याओं में इतना खोए हुए हैं कि मूल समस्याओं की ओर ध्यान ही नहीं जाता, यह उनकी विवशता ही तो है। वह कौन-सी विवशता है, यह भी विवेचना का विषय है। नागरिकों को यह भी सही-सही पता नहीं है कि युद्ध में कितने सैनिक गए थे और कितने विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं। खेत रहने वालों यानी जो शहीद हुए हैं उनकी सूची ही नदारद है।

कवि ने उपरोक्त पंक्तियों में इतिहास और लोक जीवन की ज्वलंत समस्याओं की ओर पनी कविताओं के माध्यम से सच्चाई से वाकिफ कराने का प्रयास किया है। प्रस्तुत कविता अत्यंत ही यथार्थपरक रचना है। कवि सच्चाई से वाकिफ कराना चाहता । वर्त्तमान में राष्ट्र और जन की क्या स्थिति है, इस ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। उक्त गद्य कविता में कवि द्वारा प्रयुक्त शासक, सेना, नागरिक और मशकवाला शब्द प्रतीक प्रयोग हैं। शासक वर्ग अपनी दुनिया में रमा हुआ है। उसमें उसके अन्य प्रशासकीय वर्ग भी सम्मिलित हैं। नागरिकों की स्थिति बड़ी ही असमंजस वाली है। मशकवाला पूरे घटनाक्रम की सही जानकारी रखता है लेकिन उस पर बंदिशें हैं कि वह किसी सत्य से अवगत नहीं कराये । उसे सख्त हिदायत है न लिखने की, न बोलने की ।

उक्त कविता में कवि ने पूरे देश की वस्तुस्थिति से अवगत कराने का काम किया है- राज्यादेश के कारण तटस्थ प्रजा जश्न मनाने में मशगूल है । प्रजा चेतना के अभाव में गैर जिम्मेवार भी है । उसे यह भी ज्ञान नहीं है कि उसकी जिम्मेवारी, कर्त्तव्य और अधिकार क्या है ? नागरिकों को पेट की चिन्ता है । वे स्वार्थ में अंधे हैं, वे अपनी स्वार्थपरता में इतना अंधे हैं कि राष्ट्र की चिन्ता ही नहीं याद आती । यह एक प्रश्न खड़ा करता है हमारे राष्ट्र के समक्ष । जबतक जनता सुशिक्षित प्रज्ञ एवं चेतना जनता संपन्न नहीं होगी तबतक राष्ट्र विकसित और कल्याणकारी नहीं हो सकता ।

इस कविता में देश के नेताओं के चरित्र को भी उद्घाटित किया गया है। नेताओं के चारित्रिक गुणों का पर्दाफाश किया गया है। लड़ाई के मैदान से वे लौटे हैं लेकिन सेना के साथ । इसका तात्पर्य है कि सेना सच बोलकर भेद नहीं खोल दे कि वे हार कर लौट रहे हैं और झूठी प्रशंसा में जीत का प्रचार कर रहे हैं । उक्त गद्य कविता में कवि का कहना है कि देश की वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं कराया जा रहा है। झूठे-प्रचारतंत्र के द्वारा यह शासन चल रहा है। मशकवाला बुद्धिजीवी वर्ग का प्रतीक है। बुद्धिजीवियों के आगे भी संकट है – क्या वे सत्य के उद्घाटन में स्वयं को सक्षम पाते हैं ? कई प्रकार की बंदिशें है- सत्य कहने, लिखने की । जनता मूकदर्शक बनकर सही स्थितियों को देख रही है किन्तु उसे ज्ञान ही नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है, क्योंकि अपनी विवशता से वह अभिशप्त है । घोर दुर्व्यवस्था, प्रपंच, झूठे आडम्बरों एवं दकियानूसी बातों में समय व्यतीत हो रहा है। लोक जीवन में अराजकता, अशिक्षा, बेकारी, बेरोजगारी भयावह रूप से परिव्याप्त है। उसे और किसी का भी ध्यान नहीं आ रहा है। राष्ट्रीय चेतना सुषुप्तावस्था में है। सांस्कृतिक और राजनीतिक संकट के आवरण से देश घिरा हुआ है। अनेक सामाजिक विसंगतियों एवं समस्याओं से जन-जीवन त्रस्त है। कवि व्यग्र है, चिंतित है। इन समस्याओं से कैसे मुक्ति मिले ।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. अशोक वाजपेयी की कविताओं के बारे में संक्षेप में लिखें:

उत्तर – अँग्रेजी साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान के नाते इनकी हिन्दी कविताओं पर अंग्रेजी का प्रभाव साफ दिखाई पड़ता है। अनेक काव्य कृतियों की रचना कर इन्होंने अपनी काव्य प्रतिमा का परिचय दिया है। वाजपेयी जी ने अनेक गद्य कविताएँ भी लिखीं हैं। इनकी कविताओं में सामाजिकता, सामयिकता, परिवेशगत यथार्थ, आम आदमी की पीड़ा का चित्रण हुआ है। आप एक संवेदनशील एवं प्रतिभा संपन्न कवि हैं ।

प्रश्न 2. अशोक वाजपेयी एक गद्य कवि हैं, प्रकाश डालें

उत्तर- अशोक वाजपेयी जी हिन्दी के एक सशक्त गद्य कवि हैं। इन्होंने अनेक हिंदी गद्य कविताएँ लिखी हैं । कविता विद्या का हिंदी में प्रादुर्भाव अँग्रेजी के प्रभाव के फलस्वरूप हुआ। इनकी कविताओं में, समाज, देश, व्यक्ति, शासक, इतिहास, संस्कृति का यथार्थ वर्णन है । सरल, बोधगम्य भाषा में काव्य रचना कर वाजपेयी जी ने हिंदी कविता जगत को समृद्ध और सशक्त किया है ।

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. उत्सव कौन और क्यों मना रहे हैं ?

उत्तर – तटस्थ प्रजा उत्सव मना रही है। ऐसा राज्यादेश है । प्रजा अंधानुकरण और गैर जबाबदेही का शिकार है ।

प्रश्न 2. नागरिक क्यों व्यस्त हैं ? क्या उनकी व्यस्तता जायज है ?

उत्तर- नागरिकों को पेट की चिन्ता है । नागरिक स्वार्थी हैं। वे देश की चिन्ता से लापरवाह हैं। स्वार्थ और अज्ञानता ने राष्ट्रीय समस्याओं से उन्हें दूर कर दिया है। वे अपने निजी सुख-दुख में ही व्यस्त हैं जो जायज नहीं है ।

प्रश्न 3. किसकी विजय हुई सेना की, कि नागरिकों की ? कवि ने यह प्रश्न क्यों खड़ा किया है ? यह विजय किनकी है ? आप क्या सोचते हैं ? बताएँ ।

उत्तर- किसी की विजय नहीं हुई। विजय प्रतिपक्ष की हुई । कवि ने देश की वस्तुस्थिति से अवगत कराया है। कवि के विचारों पर चिंतन करते हुए यही बात समझ में आती है कि झूठ-मूठ के आश्वासनों एवं भुलावे में हमें रखा गया है। यथार्थ का ज्ञान हमें नहीं कराया जाता। यानि सत्य से दूर रखने का प्रयास शासन की ओर से किया जा रहा है।

प्रश्न 4. ‘खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है ?’ इस पंक्ति के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है ? कविता में इस पंक्ति की क्या सार्थकता है बताइए |

उत्तर – कवि कहना चाहता है कि खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है, यानि आजादी की लड़ाई में जिन-जिन लोगों ने कुरबानी दी है उनका सही आकलन एवं मूल्यांकन नहीं किया गया है। शहीदों का पूरा ब्योरेवार इतिहास अभी भी अपूर्ण है। राष्ट्र के लिए जिन राष्ट्रवीरों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया आज हम उन्हें भुला बैठे हैं। उनका न उचित सम्मान राष्ट्र की ओर से मिला, न हम याद ही रख पाते हैं। उनके प्रति कृतज्ञ न होकर हम कृतघ्न हो गए । इसमें इतिहास की और शहीदों की शहादत की ओर कवि ने सबका ध्यान आकृष्ट किया है ।

प्रश्न 5. सड़कों को क्यों सींचा जा रहा है ?

उत्तर- ‘सड़कों को क्यों सींचा जा रहा है ?’ इस पंक्ति में राष्ट्र के श्रमिक वर्ग की ओर कवि ने ध्यान आकृष्ट किया है। हमारे देश के श्रमिकों/मजदूरों/किसानों की स्थिति आजादी के इतने वर्षों बाद भी दयनीय है। राष्ट्र के निर्माण में उनका श्रम लग रहा है किन्तु उन्हें यथोचित लाभ एवं सम्मान नहीं मिल रहा है। यह बात अत्यंत ही दुःखद और पीड़ादायी है। सड़कों यानि पूरे देश के निर्माण, विकास और खुशहाली के लिए ये ईमानदारी से लगे हुए हैं, फिर भी देश की वस्तुस्थिति से अनभिज्ञ हैं ।

प्रश्न 6. बूढ़ा मशकवाला क्या कहता है और क्यों कहता है ?

उत्तर – बूढ़ा मशकवाला प्रतीक प्रयोग है । वह देश के बुद्धिजीवी वर्ग से तात्पर्य रखता है। वह वास्तविक स्थिति से अवगत है । वह कहता है कि किसी की भी जीत नहीं हुई है। सेना विजयी नहीं है बल्कि हारी हुई सेना है। इन पंक्तियों में बूढ़ा मशकवाला देश की जो भयावह स्थिति है, उससे वह अवगत होते हुए सत्य के निकट है। सभी लोग तो धोखा में जी रहे हैं लेकिन मशकवाला यथार्थ का जानकार है। इसीलिए वह कहता है कि जीत न शासक की, न नागरिक की, न सेना की हुई । ये सारी बातें झूठे प्रचार तंत्र का खेल है । प्रजा के साथ छल है, धोखा है। सबको धोखे में रखा जा रहा है और सत्य को छिपाया जा रहा है ।

प्रश्न 7. बूढ़ा, मशकवाला किस जिम्मेवारी से मुक्त है ? सोचिए, अगर वह जिम्मेवारी उसे मिलती तो क्या होता ?

उत्तर – बूढ़ा मशकवाला देश की राजनीति में हिस्सा लेने से वंचित है। अगर उसे जिम्मेवारी मिली होती तो हार को हार कहता जीत नहीं कहता । वह सत्य प्रकट करता । उसे तो मात्र सड़क सींचने का काम सौंपा गया है। यही उसकी जिम्मेवारी है । सत्य लिखने और बोलने की मनाही है। इसलिए वह मौन है और अपनी सीमाओं के भीतर ही जी रहा है । वह विवश है, विकल है फिर भी दूसरे क्षेत्र में दखल नहीं देता केवल सींचने से ही मतलब रखता है। इसमें बौद्धिक वर्ग की विवशता झलकती है। अगर उसे सत्य कहने और लिखने की जिम्मेवारी मिली होती तो राष्ट्र की यह स्थिति नहीं होती तथा झूठी बातों और झूठी शान में जश्न नहीं मनाया जाता । जीवन के हर क्षेत्र में अमन-चैन, शिक्षा-दीक्षा, विकास की धारा बहती। अबोधता और अंधकार में प्रजा विवश बनकर नहीं जीती ।

प्रश्न 8. ‘जिन पर है वे सेना के साथ ही जीतकर लौट रहे हैं’ ‘जिन’ किनके लिए आया है ? वे सेना के साथ कहाँ से आ रहे हैं ? वे सेना के साथ क्यों थे ? वे क्या जीतकर लौटे है ? बताएँ ।

उत्तर – इन पंक्तियों में ‘जिन’ नेताओं के लिए प्रयोग हुआ है । वे लड़ाई के मैदान से लौट रहे हैं। वे सेना के साथ इसलिए हैं कि सेना सच न बोले। वे हारकर लौटे हैं। इन पंक्तियों में नेताओं के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है। उनका जीवन चरित्र कितना भ्रम में डालने वाला है। कथनी-करनी में कितना अंतर है ? झूठी प्रशंसा और अविश्वनीय कारनामों के बीच उनका समय कट रहा है। उनके व्यवहार और विचार में काफी विरोधाभास है। तनिक समानता और स्वच्छता नहीं दिखायी पड़ती । “

प्रश्न 9. गद्य कविता किसे कहते हैं ? इसकी क्या विशेषताएँ हैं ? इस कविता को देखते-परखते हुए बताएँ।

उत्तर – हिन्दी साहित्य में गद्य काव्य या गद्य कविता का भी सृजन आधुनिक काल में अधिक हुआ है। गद्य – कविता या गद्य-काव्य की परिभाषा अनेक विद्वानों ने अपने-अपने विचारानुसार प्रकट की है।
गद्य काव्य को विद्वानों ने भावात्मक निबंधों की श्रेणी के अंतर्गत रखा है। किन्तु दोनों में भावना की प्रधानता तो रहती है किन्तु भावात्मक निबंधों की अपेक्षा गद्य काव्य में कुछ वैयक्तिकता और एक-तथ्यता अधिक रहती है। गुलाब राय जी कहते हैं कि गद्य काव्य की भाषा गद्य की होती है किन्तु भाव प्रगीत काव्यों के होते हैं। गद्य शरीर में पद्य की आत्मा बोलती दिखायी पड़ती है । भाषा का प्रभाव भी साधारण गद्य की अपेक्षा कुछ अधिक सरल और संगीतमय होता है ।

उपरोक्त परिभाषाओं के निष्कर्ष के आधार पर ‘हार-जीत’ गद्य कविता का अगर हम परीक्षण करें तो उसकी कई विशेषताएँ परिलक्षित होंगी। अशोक वाजपेयी जी ने हार-जीत में जीवन की विविध समस्याओं की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। राष्ट्र की वस्तुस्थिति का सही चित्रण अपने शब्द-साधना द्वारा प्रस्तुत कर हमें बताने का प्रयास किया है कि राष्ट्र ज्वलंत समस्याओं से घिरा है और जिसे चिंता करनी चाहिए, सजग रहना चाहिए वह सोया हुआ है । बेखबर है ।

गद्य-कविता के सृजन में कवि सिद्ध हस्त है । शब्दों के प्रयोग में कवि प्रवीण है । सरल और सहज शब्दों द्वारा भावों का सम्यक् चित्रण करने में कवि को सफलता मिली है । सांकेतिक तत्वों एवं प्रयोगों द्वारा कवि ने गद्य कविता में जान फूंक दी है। सरल रूप में यह कविता सबको ग्राह्य है। अर्थ ग्रहण करने में किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं होती है । अभिव्यक्ति में भी कवि को सफलता मिली है । लोक जीवन या राष्ट्र जीवन का सही मूल्यांकन हार-जीत कविता में हुआ ।

प्रश्न 10. कविता में किस प्रश्न को उठाया गया है ? आपकी समझ में इसके भीतर से और कौन से प्रश्न उठते हैं ?

उत्तर – प्रस्तुत कविता में देश की ज्वलंत समस्याओं की ओर कवि ध्यान आकृष्ट किया है। इस देश की जनता अबोध और चेतनाविहीन है । वह अंधविश्वासों, अफवाहों में जी रही है। देश के नीति-नियम सत्य से कोसों दूर एवं पाखंडपूर्ण हैं । सिद्धान्त और व्यवहार में काफी असमानता है ।

कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन की विसंगतियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। जनता की हालत दयनीय है। श्रमिक वर्ग कष्ट में जी रहा है। बौद्धिक वर्ग संकट में जी रहा है। उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं मिली है। संस्कृति पर खतरा दिखायी पडता है। शासक वर्ग बेपरवाह तथा मौज- मस्ती, जश्न में अपना समय व्यतीत कर रहा है और नागरिक भूख की ज्वाला में तड़प रहा है। सुरक्षा देनेवाले भी गैर जिम्मेवार हैं। झूठ-मूठ के भुलावा में सभी लोग जी रहे हैं । सत्य से प्रजा को दूर रखने की कोशिश हो रही है। बौद्धिक वर्ग सर्वाधिक संकट में जी रहा है । वह राष्ट्र निर्माण में संकल्पित होकर तो लगा है लेकिन उसे उचित सम्मान और स्थान नहीं मिलता । इतिहास हम भूल रहे हैं । दिग्भ्रमित होकर भटकाव की स्थिति में जी रहे हैं । ।

भाषा की बात

प्रश्न 1. हार-जीत में कौन समास है ?

उत्तर- द्वन्द्व समास

प्रश्न 2. ज्यादातर में ‘तर’ प्रत्यय है, ‘तर’ प्रत्यय से पाँच अन्य शब्द बनाएँ :उदाहरण-ज्यादा + ‘तर’ = ज्यादातर |

उत्तर –

  • कम + तर = कमतर
  • अधिक + तर = अधिकतर
  • निम्न + तर = निम्नतर
  • लघु + तर = लघुतर
  • सुंदर + तर = सुंदरतर
  • मेह + तर = मेहतर

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solution पद्य chapter 12 ‘हार-जीत’

इस आर्टिकल में आपने Bihar Board Class 12th hindi Book के काव्य खंड के Chapter 12 ‘हार-जीत’’ में के भावार्थ एवं प्रश्न- उत्तर (Question-Answer) पढ़ा | अगर कोई सुझाव या परेशानी हो तो नीचे कमेंट में अपनी राय अवश्य दें | धन्यवाद |

इसे भी पढ़ें –  

Chapter :- 1 कड़बक
Chapter :- 2 सूरदास के पद
Chapter :- 3 तुलसीदास के पद
Chapter :- 4 छप्पय
Chapter :- 5 कवित्त
Chapter :- 6 तुमुल कोलाहल कलह में
Chapter :- 7 पुत्र वियोग
Chapter :- 8 उषा
Chapter :- 9 जन-जन का चेहरा एक
Chapter :- 10 अधिनायक
Chapter :- 11 प्यारे नन्हें बेटे को
Chapter :- 12 हार-जीत
Chapter :- 13 गाँव का घर

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